Rajasthan Panchayati Raj Niyam 1996
(Adhyay 5 PRI ke Adhyakshon or Sadsyon ki shaktiyan, krity evam karttavy)
राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996
अध्याय 5
पंचायती राज संस्थाओं के अध्यक्षों और सदस्यों की शक्तियाँ, कृत्य और कर्त्तव्य
33. सरपंच के कर्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 3 के अनुसार ग्राम सभा बैठकें और धारा 45 में यथा-उपबंधित प्रत्येक पखवाडे पंचायत बैठकें आयोजित करने के अलावा सरपंच अधिनियम की धारा 32 में अधिकथित कृत्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कर्त्तव्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करने में सहायता करेगा:-
(1) नियमित कृत्य जैसे-
(क) स्वच्छता,
(ख) मार्ग में प्रकाश व्यवस्था,
(ग) सुरक्षित पेयजल,
(घ) जल-निकास,
(ड) सार्वजनिक वितरण प्रणाली,
(च) ग्रामीण सडकों का अनुरक्षण,
(छ) जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण,
(ज) सरपंच बाढ, अग्नि, महामारी और सरकारी सम्पत्तियों, भवनों, पाइप लाइनों, हैण्डपम्पों, विद्युत लाइनों के नुकसान के बारे में आवश्यक कार्यवाही इत्यादि करने के लिए कलेक्टर/ विकास अधिकारी को सूचना देगा।
(2) प्रशासनिक कृत्य जैसेः-
(क) आबादी क्षेत्र का विकास,
(ख) चरागाहों में, बाड़े बंदी और नियंत्रित चराई के माध्यम से घास और वृक्षों का विकास,
(ग) आबादी और गोचर भूमियों में अप्राधिकृत अतिक्रमणों को रोकना,
(घ) जलाशयों, नालों, प्राकृतिक उपज, मृत पशुओं की खाल और चर्म, भूमि के अस्थाई उपयोग, भूमि इत्यादि के विक्रय से स्वयं के आय के अधिकतम स्रोत जुटाना।
(3) पंचायत के निवासियों के कल्याण को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय भौतिक संसाधनों का विकास एवं समुचित उपयोग करना।
(4) मानव एवं पशु स्वास्थ्य, पोषण एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों में सहायता करना।
(5) ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का संचालन।
(6) राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गो पर सेवा सुविधाओं का विकास करना जिससे दुकानों, ढ़ाबों, एस.टी.डी. बूथ, पेट्रोल पम्प, मरम्मत और सर्विस केन्द्रों इत्यादि के लिए स्थलों के नीलाम के माध्यम से स्त्रोत जुटाये जा सके।
(7) सामुदायिक संकर्मो के लिए लोक अभिदाय जुटाने हेतु प्रयत्न करना।
(8) सम्पूर्ण साक्षरता, महिला शिक्षा हेतु विशेष प्रयास करना, मृत्यु-भोज रोकना, बाल विवाह रोकना, अस्पृष्यता एवं महिलाओं के विरुद्ध उत्पीड़न रोकना!
(9) सामाजिक सुरक्षा दावे दिलाने में सहायता करना।
(10) वृद्धों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों के लिये पेंशन स्वीकृति में सहायता करना।
(11) पंचायत निधियों के दुरुपयोग को रोकना और रोकड़ बही में हस्ताक्षर करने के पूर्व प्रत्येक पंचायत बैठक में आय-व्यय ब्यौरे रखकर पंचायत के कृत्यकरण में पारदर्शिता लाना।
यदि सरपंच द्वारा आवंटित निधि का उपयेाग नहीं किया जावे तो ऐसी दशा में जिला कलेक्टर ऐसी निधि के उपयोग हेतु, इस उद्देश्य से एक समिति गठित करने के लिए प्राधिकृत होगा।
(12) संनिर्माण संकर्मो की क्वालिटी का संधारण ओर संकर्म के पूरा होने के एक मास के भीतर-भीतर समापन प्रमाण-पत्र प्राप्त करना।
(13) पंचायत शोध्यों की समय पर वसूली के लिए माँग नोटिस और कुर्की वारण्ट जारी करने की व्यवस्था करना और पंचों की समिति के माध्यम से सचिव की सहायता से समुचित निष्पादन सुनिश्चित करना।
(14) प्रतिवर्ष संपरीक्षा करवाने की व्यवस्था करना और अपने निर्वाचन की अवधि के पश्चात भी अपनी पदावधि के संपरीक्षा आक्षेपों का अनुपालन करना।
(15) मंजूर किये गये संकर्मो और खर्च की गई रकम का ब्यौरा पंचायत मुख्यालय के पट्ट के साथ-साथ संकर्म स्थानों पर प्रदर्शित करना।
(16) जनता के कल्याण के लिए ऐसे ही अन्य समस्त कृत्य करना जो आवश्यक प्रतीत हो।
34. पंचायत के स्त्रोत जुटाने का कर्तव्य – (1) कर राजस्व जुटाने के अतिरिक्त सरपंच अन्य, पंचों के परामर्श से दरों, फीसों, प्रभारों और शास्तियों में वृद्धि करके, हवेलियों और बड़े पक्के गृहों पर अभिहित मात्र कर, राष्ट्रीय और राज्यमार्गो पर के ढाबों, होटलों, ओटोमोबाइल सर्विस स्टेशनों और मरम्मत की दुकानों, पेट्रोल/ डीजल पम्पों पर कर/ फीस उद्गृहीत करके भी गैर-कर राजस्व में वृद्धि करेगा। स्वयं की आय के विद्यमान रूप के अतिरिक्त प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत अधिक आय जुटाने का प्रयास किया जायेगा।
(2) इस हेतु पंचायत का प्रस्ताव पारित किया जायेगा।
35. प्रधान के कर्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 33 में प्रमाणित कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रधान निम्नलिखित कृत्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करेगाः-
(1) पर्यवेक्षण कृत्यः-
(क) पंचायतों के कृत्याकरण का पुनर्विलोकन और मॉनिटरिंग करना,
(ख) नव निर्वाचित, विशेष रूप से महिला अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति सरपंचों और पंचों को प्रशिक्षण देना और उनका मार्गदर्शन करना,
(ग ) सरपंचों और पंचायत समिति और जिला परिषद् के सदस्यों में समन्वय,
(घ) सरपंचों की ऐसी बैठकें बुलाना जो आवश्यक हों!
(ङ) राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए नियंत्रण रजिस्टर रखना,
(च) पंचायत समिति बैठकों और स्थानीय समितियों के विनिश्चयों के अनुपालन को नियंत्रण रजिस्टर के माध्यम से सुनिश्चित करना,
(छ) प्रतिवर्ष निर्वाचन ओर पुनर्गठन के तीन मास के भीतर-भीतर स्थायी समितियों के बनाये जाने को इस बात को ध्यान में रखते हुए सुनिश्चित करना कि किसी स्थाई समिति का कोई भी सदस्य कम से कम एक ऐसी स्थाई समिति में निर्वाचित हो गये हों,
(ज) कार्यस्थल एवं पंचायत मुख्यालय पर वास्तविक व्यय के दर्शाने वाले बोर्ड लगवाना।
(2) संधारण कृत्य-पेयजल, विद्युत, सिंचाई, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राजस्व भूमियों, मानव और पशु रोगों, फसल रोगों आदि से संबंधित स्थानीय समस्याओं की पहचान और संबंधित जिला स्तरीय अधिकारियों को चर्चा हेतु और सार्वजनिक शिकायतों को दूर करने के लिए अगली पंचायत समिति बैठक में बुलाना,
(3) विकास कृत्य-स्थानीय जनता की सुस्पष्ट आवश्यकता की पहचान करना तथा अपना गांव अपना काम योजना में जनता की भागीदारी के लिए स्थानीय जनता और स्वैच्छिक संगठनों को प्रोत्साहित करना,
(4) स्वयं के स्त्रोतों का जुटाया जाना- प्रधान अन्य सदस्यों के परामर्श से-
(क) अभियान के आधार पर शिक्षा उपकर के समय पर संग्रहण,
(ख) पंचायत समिति के स्वामित्व की दुकानों को नीलाम करना या उन्हें किराये देना,
(ग) पंचायत समिति के स्वामित्व के कृषि फार्मो का विकास,
(घ) हड्डी ठेकों इत्यादि में प्रतियोगी नीलामी बोलियों,
(ड़) पशु मेलों के उचित आयेाजन,
(च) तालाब तल खेती से आय और पंचायत समिति के प्रभाराधीन तालाबों के सिंचाई प्रभारों के संग्रहण
(छ) बेकार मदें और पुराने अभिलेखों आदि के निपटारें, के माध्यम से कर-राजस्व और गैर-कर राजस्व जुटाने के सभी प्रयास करेगा।
36. प्रमुख के कर्त्तव्य और कृत्य – अधिनियम की धारा 35 में प्रगणित कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रमुख निम्नलिखित कर्तव्यों का भी निर्वहन सुनिश्चित करेगाः-
(1) योजना-स्थानीय आवश्यकताओं और स्त्रोतों के अनुसार प्रतिवर्ष दिसम्बर मास में पंचायत समितियों और नगरपालिकाओं की क्षेत्रीय योजनाओं को समेकित करने की व्यवस्था करना और सदस्यों तथा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कार्य करने वाले संबंधित विभागों के जिला स्तरीय अधिकारियों के परामर्श से सम्पूर्ण जिले के लिए अंतिम योजना तैयार करवाना जैसा कि अधिनियम की धारा 121 द्वारा अपेक्षित है,
(2) पर्यवेक्षण भूमिका-जिले के लिए पंचायतों के भारसाधक अधिकारी के रूप में मुख्य कार्यपालक अधिकारी के माध्यम से यह सुनिश्चित करना किः-
(क) पंचायतों की ग्राम सभाएं अधिनियम और नियमों के उपबंधों के अनुसार नियमित रूप में आयोजित की जाती है,
(ख) पंचायतों की बैठकें प्रत्येक पखवाडे़ आयोजित की जाती हैं और अधिनियम तथा नियमों के माध्यम से पंचायतों पर डाले गये कर्तव्यों की उपेक्षा का कोई मामला नहीं है,
(ग) पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से संचालित कार्यक्रमों में जिला स्तरीय विभागों के साथ कठिनाईयों का निराकरण करना,
(घ) राज्य सरकार द्वारा विहित मानकों के अनुसार जिला परिषद् से संबंधित पंचायत समितियों और पंचायतों को निधियों का समय पर अंतरण करना,
(ड़) पर्यावरण सुधार के लिए जिले में ग्रामीण स्वच्छता और ग्रामीण आवासन कार्यक्रम चलाना,
(च) प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता का कालिक पुनर्विलोकन करना,
(छ) जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जनता की शिकायतें दूर करना,
(ज) लेखों का समुचित संधारण करके पंचायती राज संस्थाओं के कृत्यकरण में पारदर्शिता लाना, निधियों के दुरूपयोग को रोकना तथा प्रतिवर्ष समय पर संपरीक्षा कराना।
37. पंचायत समिति और जिला परिषद् के सदस्यों की भूमिका – (1) पंचायत समिति और जिला परिषद् का सदस्य पंचायतों की बैठकों में भाग ले सकते है, जिसमें वह साधारणतया निवास करता है।
(2) सदस्य ऐसी किसी पंचायत की, जिसमें ऐसा सदस्य निवास करता है, ग्राम सभा द्वारा सतर्कता समिति में नाम निर्देशित किये जा सकेंगे।
(3) ऐसा सदस्य पंचायती राज संस्था के सदस्य या स्थाई समिति के सदस्य के रूप में प्रदत्त कार्यो को सम्पन्न करेगा।
38. प्राकृतिक आपदाओं में सहायता – (1) बजट प्रावधानों के अध्यधीन रहते हुये प्रधान या प्रमुख क्रमशः अधिनियम की धारा 33 और 35 में अन्तर्विष्ट शक्तियों के अनुसार पीडितों को भोजन और आश्रय इत्यादि के लिये तुरन्त सहायता मंजूर कर सकेगा किन्तु वह प्रभावित परिवारों को राज्य सरकार की मार्फत सहायता पहुंचाने के लिये कलेक्टर को तुरन्त सूचित करेगा।
(2) वह इस हेतु स्वैच्छिक अंशदान जुटा सकेगा।
Rajasthan PanchayatI Raj Rules 1996 in Hindi (Chapter 5 Powers, Functions and Duties of Chairperson and Members of Panchayati Raj Institutions)