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Rajasthan Panchayati Raj Rules 1996 in Hindi (CHAPTER 15-Administration of Panchayati Raj Institutions) | राजस्थान पंचायती राज नियम 1996

Rajasthan Panchayati Raj Rules 1996 in Hindi (CHAPTER 15-Administration of Panchayati Raj Institutions) | राजस्थान पंचायती राज नियम 1996

 Rajasthan Panchayati Raj Rules

Rajasthan PanchayatI Raj Rules,1996 in Hindi

राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996
अध्याय 15 

पंचायती राज संस्थाओं का प्रशासन 

316.   कार्यालय  –  (1) पंचायती राज संस्था का कार्यालय उस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से बनाए गए भवन में या उसके मुख्य कार्यालय पर उपलब्ध किसी अन्य सार्वजनिक भवन में रखा एवं चलाया जायेगा। 
(2) जहॉ उप – नियम (1) में वर्णित किए गए अनुसार कोई भवन उपलब्ध  होवहॉ उस प्रयोजन के लिए कोई उपयुक्त भवन किराये पर लिया जा सकता है। 

(3) कार्यालय का अध्यक्ष पंचो/सदस्यों एवं पंचायती राज संस्था के स्टाफ के लिए तथा कार्यालय में उपस्थित होने वाली जनता के लिए बैठने हंतु उपयुक्त व्यवस्था करेगा। 

(4) कार्यालय रविवारों एवं सार्वजनिक छुटटियों के दिनों को छोडकर 10.00 बजे प्रातः से 5.00 सायं तक सामान्य रूप से खुला रहेगा। 

(5) कार्यालय का अध्यक्ष लेखन सामग्रीफर्नीचरप्रपत्र एवं रजिस्टरों आदि अपेक्षित वस्तुओं के लिए व्यवस्था करेगा तथा उसकी अभिरक्षा एवं सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रबन्ध करेगा। 

317.   मुहर  – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था की एक मुहर होगी जिस पर उसका नाम खुदा होगा तथा वह उसका उपयोग पत्राचारउसके द्वारा जारी किए गए आदेशों एवं प्रतियों पर करेगी। 

(2) वह मुहर साधारण रूप से कार्यालय के अध्यक्ष की अभिरक्षा में रहेगी। 

318.   पत्रावलियॉ एवं रजिस्टर  – (1) समस्त पत्राचारफार्म एवं अन्य कागजातों को विषयवार खोलकर अलग –  अलग पत्रावलियों में उचित ढंग से रखा जायेगा। 

(2) समस्त पत्रावलियां एवं रजिस्टर कार्यालय में रखे जायंेगे तथा किसी सदस्य या स्टाफ द्वारा पंचायती राज संस्था के कार्यालय के अलावा अन्य स्थान पर नहीं ले जाऐ जाएंगे तथा समस्त पत्रावलियां जिन पर कार्यवाही पूर्ण हो गई है तथा उन पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाती हैंउन्हें बन्द किया जायेगा तथा अभिलेख कक्ष में भेज दिया जायेगा। 

319.   पत्राचार की चैनल  –  जब तक अधिनियम मं या तदधीन निर्मित किसी नियम या उप – विधि मे या राज्य सरकार के किसी निर्देश में स्पष्ट रूप से अन्यथा अभिव्यक्त नहीं किया जायेपंचायतपंचायत समिति के साथ पत्र व्यवहार करेगीपंचायत समिति जिला परिषद के साथ तथा जिला परिषद राज्य सरकार के साथ पत्र –  व्यवहार करेगी। 

320.   अधिकारी प्रभारी पंचायती राज  – (1) मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिले में सभी पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य अधीक्षणमार्ग निर्देशन एंव निदेशन हेतु जिला स्तर पर अधिकारीप्रभारी पंचायती राज के रूप में कार्य करेगा।  

(2) निदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राजराज्य स्तर पर पंचायती राज अधिनियम 1994 एवं तदधीन बनाए गए नियमों या जारी की गयी अधिसूचनाओं के प्रावधानों के प्रवर्तन के लिए पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारी प्रभारी के रूप में कार्य करेगा।

अभिलेखों का निरीक्षण एवं प्रतियां देना 

321.निरीक्षण हेतु आवेदन पत्र  –  (1) कोई भी व्यक्ति जो किसी  पंचायती राज संस्था के किसी रजिस्टरपुस्तिकापत्रावली या अभिलेख का निरीक्षण करना चाहता है लिखित में एक आवेदन पत्र देगा जिसमें वह निरीक्षण किए जाने वाली प्रविष्टियां या कागजों काजैसी भी स्थिति होउल्लेख करेगा तथा उस अभिलेख की तलाश करने के लिए 5 रुपये के शुल्क का अग्रिम में भुगतान करेगा। 

(2) यदि आवेदन पत्र तुरन्त निरीक्षण करने के लिए दिया गया होतो दुगुना शुल्क 10 रुपये का भुगतान किया जायेगा। 

322.   अभिलेख आदि की तलाशी एवं निरीक्षण के लिए आदेश  –  नियम 321 के अधीन आवेदन पत्र के प्राप्त होने पर एवं उसमें प्रवाहित शुल्क के भुगतान करने परकार्यालय का अध्यक्ष सुसंगत रजिस्टरपुस्तिकापत्रावली या अभिलेख की तलाश कराएगा तथा उसके समक्ष रखाएगा तथा जिन प्रविष्टयों या कागजों के निरीक्षण के लिए मॉंग की गई हैउन्हें जांचेगा तथा यदि वह जनहित के विपरीत या आपत्तिजनक नहीं विचारता हो या यदि ऐसे निरीक्षण का निषेध नहीं किया गया होतो उनका निरीक्षण करने की अनुमति देते हुए आदेश देगा। 

323.   निर्माण काार्यों पर व्यय के सम्बन्ध में सूचना  –  (1) प्रत्येक पंचायत/पंचायत समिति उसके मुख्य कार्यालय में किसी एक सहज दृष्य प्रमुख स्थान पर एक सूचना पट्ट परस्वीकृत किए गए निर्माण कार्योका तथा गत पांच वर्षो में निष्पादित कराए गए कार्यो का उसके अनुमानों एवं वास्तविक रूप में खर्च की गई  राशि  का ब्यौरा प्रदर्शित    करेगी। 

(2) सम्बन्धित पंचायत/पंचायत समिति मौके पर चल रहे कार्यो को भीकार्य के नामखर्च की गई  राशि  एवं परू  किए जाने की तारीख आदि का जनता की सामान्य सूचना के लिए उल्लेख करते हुए नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित    करेगी। 

(3) कोई भी व्यक्ति या स्वयंसेवी संगठन 5 रुपये जमा कर किसी ऐसे कार्य से संबंधित अभिलेखों का निरीक्षण करने के लिए आवेदन करेगा तथा ऐसे मस्टररोल्स एवं वाऊचरों को उसे दिखाया जायेगा। उसे ऐसी सूचना के ब्यौरों को किसी एक कागज के टुकड़े पर पृथक़ से लिखने की अनुमति दी जायेगी तथा उसके लिए उसे आवश्यकसुविधा प्रदान कराई जायेगी। 

(4) पैनस्याहीफाउण्टेन पैन एवं ऐसी अन्य एसी चीजों का उपयोग निरीक्षण के दौरान नहीं किया जायेगाकिन्तु पैंसिल से नोट लिखे जा सकेंगे तथा निरीक्षण कर्ता व्यक्ति अभिलेख को विकृत नहीं करेगा अथवा उसे विभाजित नहीं करेगा। 

324.   प्रतियॉं देना –   (1) यदि नियम 322 के अन्तर्गत तलाश किए जाने परसुसंगत पंजिकापुस्तिकापत्रावली या अभिलेख पाया जाता हैतथा कार्यालय अध्यक्ष द्वारा उसकी प्रतियॉं या उससे उद्धरण देने का निर्णय किया जाताहैतो आवेदक प्रत्येक 200 शब्दों या उसके भाग के लिए नकल शुल्क 2 रुपये की दर से जमा कराएगा तथा ऐसे शुल्क की राशि की गणना करने के लिए जहॉं अंकों को टंकित किया जाता हैवहॉं पांच अंकों को एक शब्द के बराबर समझा जायेगा। 

(2) अत्यावष्यक रूप से शीघ्र प्राप्त करने के लिएप्रतिलिपि शुल्क उप – नियम (1) में विनिर्दिष्ट दर से दुगुनी दर पर वसूल किया जाना चाहिए। 

325.   प्रतिलिपियॉं तैयार करना एवं जारी करना  –  प्रतिलिपि शुल्क प्राप्त हो जाने परप्रतिलिपियों या उद्धरणों को तैयार कराया जायेगा तथा जॉंच के बाद कार्यालय अध्यक्ष या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी कार्यालय के अधिकारी द्वारा उसे सही रूप में होने को प्रमाणित किया जायेगा तथा यदि आवेदक व्यक्तिषः उसे प्राप्त करने के लिए उपस्थिति होता है या उसे प्राप्त करने के लिए किसी को प्राधिकृत करता है तो उसे दे दी जायेगी या यदि आवेदक ने उस प्रयोजन हेतु डाक टिकट जमा करा दिये हैं तो डाक द्वारा उसे भेज दी जायेगी।

326. प्रतियॉं देने के लिए समय – (1) प्रतियॉं साधारणतया 4 दिन के भीतर जारी की जायेंगी। 

(2) अत्यावष्यक प्रतियॉं 24 घंटों के भीतर दे दी जायेंगी। 

327.   रद्द करने के कारण – (1) जब निरीक्षण प्रति का दिया जाना अनुज्ञात किया जावे तो उसके लिए दिये गये आवेदन – पत्र को उसके कारणों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए एक पृष्ठांकन द्वारा रद्द कर दिया जाएगा तथा आवेदक को तद्नुसार सूचित किया जायेगा। (2) शासकीय पत्राचारकागजों की या किसी ऐसे दस्तावेज की जो स्वयं में एक प्रति हैकोइ्र प्रतिलिपि नहीं दी जायेगी। 

328.   निरीक्षण करने/प्रतियॉं देने के लिए आवेदन – पत्रों की पंजिका – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था के कार्यालय में ऐसे आवेदन पत्रों को दर्ज करने के लिए प्रपत्र सं. 44 में एक पंजिका तैयार की जायेगी जिसमें आवेदक/स्वयंसेवी संस्था का नामआवेदन करने की तारीख तथा जमा कराई गई  राशि  का उल्लेख किया जायेगा। 

(2) सभी निरीक्षणकर्ता अधिकारी उस पंजिका का अपने निरीक्षण करने के समय अवलोकन करेंगे। 

(3) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियम 321 से 325 तक के नियमों की पालना कराये जाने कासुनिश्चियन करेगा तथा समय – समय पर उसकी समीक्षा करेगा। वकीलों की नियुक्ति 

329.   पंचायती राज संस्था द्वारा उसके विरूद्ध वादों एवं कार्यवाहियों में वकील की नियुक्ति – (1) जब राज्य सरकार एवं पंचायती राज संस्था दोनों किसी एक सिविल कार्यवाही में पक्षकार हों तथा उस कार्यवाही में दोनेां के हित समान होंतो दोनों के लिए एक वकील की नियुक्ति की जायेगी तथा उसे एक ही शुल्क का भुगतान किया जायेगातथा आधा भुगतान राज्य सरकार द्वारा एवं आधा पंचायती राज संस्था द्वारा किया जायेगा। 

(2) यदि पक्षकार एक और अतिरिक्त वकील नियुक्त करता हैतो उस वकील की फीस का भुगतान उसे नियुक्त करने वाले पक्षकार द्वारा किया जायेगा। 

330.   सिविल कार्यवाही जिसमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों – (1) सिविल कार्यवाहियों में जिनमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों तथा पंचायती राज संस्था किसी वकील की नियुक्ति करती हैतो वकील को संदेय शुल्क साधारणतया 2000 रुपये से अधिक नहीं होगा। कार्यालय अध्यक्ष इसे स्वीकृत करने के लिए सक्षम होगा। 

(2) प्रति मामले में 2000 रुपये से अधिक के शुल्कों के सदस्य के लिए स्थायी समिति प्रषासन की स्वीकृति अनिवार्य होगी। प्रशासनिक नियन्त्रण 

331.   सरपंच की प्रशासनिक शक्तियॉं एवं ग्राम सेवक – एवं – सचिव के कर्त्तव्य – (1) ग्राम सेवक – कम – सचिवपंचायत नियमित रूप से कार्यालय समय में  पंचायत के कार्यालय में उपस्थित होगा तथा सरंपच के  निर्देशों   के अधीन कार्य करेगा। 

(2) वह तत्प्रयोजनार्थ तैयार की गई एक पंजिका में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति अंकित करेगा। 

(3) यदि सचिव एक पंचायत से अधिक का प्रभारी हैतो विकास अधिकारी प्रत्येक सप्ताह के दिनो को निष्चित करेगा जब वह किसी विशेष पंचायत में उपस्थित होगा। ऐसे मामले में वह केवल उन्हीं  दिनों के लिए अपनी उपस्थिति अंकित करेगा। 

(4) सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव के वेतन के भुगतान के लिए पंचायत समिति को प्रत्येक माह की 20 तारीख को उन दिनों केलिए उपस्थिति का प्रमाण – पत्र भेजेगा। 

(5) ग्राम – सेवक – कम – सचिव का यह कर्त्तव्य होगा कि वह विकास अधिकारी द्वारा उसे स्वीकृत किए गएअवकाश के बारे मंे सम्बन्धित सरपंच को सूचना दे। 

(6) ग्राम सेवक – कम – सचिव पंचायत के अभिलेख के बारे में गोपनीयता रखेगा तथा सरपंच की विशेष अनुमति के बिना अभिलेख का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं देगा या आवेदक को उसकी प्रतियॉं नहीं देगा। 

(7) वह पंचायत के आ देशों को तत्परता से निष्पादन करेगापंचायती मीटिंगों में नियमित रूप से एवं समय – पर उपस्थित होगाइसकी कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलिखित करेगापंचायत की पत्रावलियोंअभिलेखें एवं पंजिकाओं को संधारित करेगा। 

(8) वह पंचायत की ओर से धन प्राप्त करेगालेखा पुस्तिकायें संधारित करेगाबजट तैयार करेगा तथा विहित तारीखों को पंचायत/पंचायत समिति को समस्त सूचनाओं एवं विहित विवरणियों एवं विवरणों को प्रस्तुत करेगा। 

(9) पंचायत द्वारा स्वीकृत सभी भुगतानों को करने की व्यवस्था करेगा। 

(10) कर/षुल्कों के करदाताओं से मॉंग को तैयार करेगा तथा अप्रेल माह में मॉंग पर्चियॉं जारी करने का सु निश्च य करेगा। 

(11) पंचायत के लिए करों को मई के माह में वसूल करने में पटवारी की मदद करेगा। 

(12) वित्तीय वर्ष के अन्तिम त्रिमास में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा के समक्ष वार्षिक कार्य योजना तैयार कराएगा तथा डी.आर.

डी.द्वारा स्वीकृति हेतु पंचायत समिति को अग्रेषित करेगा। 

(13) निधियों के सम्भावित आवंटन को ध्यान में रखते हुये ग्राम सभा में प्राथमिकता वाले कार्यो को निष्चित करायेगा। 

(14) पंचों की समिति की देखरेख में स्वीकृत किए गए कार्यो को निष्पादित करायेगा।  

(15) स्वीकृति की शर्तो के अनुसार मस्टर रोल्स तथा निर्माण कार्यो के अन्य लेखे संधारित करेगा। 

(16) कार्य की गुणवत्ता (क्वालिटीएवं तकनीकी विनिर्देषेां को बनाए रखेगा। 

(17) काम पूरा होने की तारीख से एक सप्ताह में पंचायत समिति के कनिष्ठ इंजिनियर को सूचना देगा तथा एक माह में पूर्णता प्रमाण – प्रत्र प्राप्त करेगा। 

(18) प्रत्येक वर्ष जुलाई एवं जनवरी माहों में पंचों की समिति के साथ आबादी भूमि एवं गोचर भूमियों पर अनाधिकृत अतिक्रमण के मामलों का सर्वेक्षण करने हेतु जायेगा। 

(19) ऐसे अतिक्रमणों के लिए एक सर्वेक्षण पंजिका संधारित करेगा तथा ऐसे मामलों की रिपोर्ट पंचायत/तहसीलदार को बेदखल करने के लिए/पंचायत/राजस्व नियमों के अनुसार उनका विनियमन करने के लिए देगा। 

(20) आबादी भूमि के क्रय के लिए आवेदन – पत्रों को नियमानुसार शीघ्रतापूर्वक निपटायेगा। 

(21) विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर सामान खरीदने के लिए व्यवस्था करेगा। 

(22) नियम 33 एवं 34 में दिये गये कर्त्तव्यांेका कुशलतासे निर्वहन करने में पंचायत/सरपंच की मदद करेगा। 

(23) जन्म एवं मृत्यु पंजिकायें तैयार करेगा। 

(24) सतर्कता समिति की प्रथम मीटिंग आयोजित करेगा तथा मासिक मीटिंगोंमें सतर्कता समिति के सदस्यों की मदद करेगा। 

(25) ऐसे अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा जिन्हें पंचायत समय – समय पर उसे सौंपेगी। 

332.   ग्राम सेवक – कम – सचिव के कार्य – निष्पादन के बारे में वार्षिक प्रतिवेदन – सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव द्वारा उक्त कर्त्तव्यों के निष्पादन पर विकास अधिकारी को अपने अभिमत भेजेगा। वह ऐसी अभ्यूक्तियों को उस ग्राम सेवक – कम – सचिव के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा। 

333.   प्रधान की प्रशासनिक शक्ति एवं विकास अधिकारी के कर्त्तव्य – (1) प्रधानपंचायत समिति की प्रत्येक मीटिंग के बादपंचायत समिति के विनिश्चय ों एवं संकलें के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्व्यन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे। 

(2) विकास अधिकारी प्रधान को उन स्थायी समितियों के विनिश्चय ांे एवं संकल्पों के क्रियान्वन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे। 

(3) विकास अधिकारी पंचायत समिति की एवं उसकी समितियां कीजैसी भी स्थिति होअगली मीटिंग होने से पूर्व प्रधान को पंचायत समिति एवं उसकी स्थायी समितियों के विनिश्चय ों एवं संकल्पों के क्रियान्वयन की प्रगति पर एक प्रतिवेदन प्रधान को प्रस्तुत करेगाताकी प्रधान उसे पंचायत समिति के समक्ष रख सकंे। 

(4) विकास अधिकारी को आकस्मिकअवकाश प्रधान द्वारा स्वीकृत किया जायेगा। 

(5) विकास अधिकारी प्रधान की नियम 35 मं उल्लिखित कर्तव्यों को कुशलतासे निर्वहन करने में उसकी मदद करेगा। 

(6) विकास अधिकारी उन मदों को जिनके लिए प्रधाननिर्देशदेगा पंचायत समिति एवं स्थायी समितियांे की मीटिंगों के एजेण्डा में 

शामिल करेगा। 

(7) वह विकास अधिकारी एवं समस्त प्रसार अधिकारियों के दौरा – कार्यक्रम की प्रति प्रधान की सूचना हेतु प्रस्तुत करेगा। 

(8) वह कर्मचारियों के स्थानान्तरण के मामले में प्रधान से परामर्श  करेगा। 

(9) पंचायत समिति एवं जिला परिषद सेवा के कर्मचारियांे पर लघु शास्तियॉ आरोपित करने से पूर्व प्रधान की अनुमति प्राप्त करेगा। 

(10) प्राकृतिक आपदाओं के मामले में पीड़ितों को भोजन एवं शरण प्रदान कराने तथा पशुओं को चारा उपलब्ध कराने एवं मानवांे, पशुओं या फसलों की महामारी पर नियंत्रण करने में प्रधान के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करेगा। 

(11) प्रधान के समक्ष सभी महत्वपूर्ण कागजातों एवं परिपत्रों इत्यादि को नियमित रूप से प्रस्तुत करेगा तथा कार्यक्रमो का शीघ्रता से निष्पादन के लिए एवं नीतियों के सफल क्रयान्वयन के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर विचार – विमर्श  करेगा। 

(12) प्रधान प्रत्येक वर्ष के अप्रेल माह में विकास अधिकारी के कार्य निष्पादन के बारेमें अपनी टिप्पणी मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भेजेगा जो उन्हेंनिदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राज को भेजे जाने वाले वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा। 

334. विकास अधिकारी की अन्य शक्तियॉं एवं कर्त्तव्य – अधिनियम की धारा 81 में दिये गये अनुसार विकास अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा –  

(1) वह आकस्मिकअवकाश तथा विशेष असमर्थता अवकाश एवं भारत के बाहर जाने हेतु अवकाश के अलावा सभी प्रकार के अवकाश पंचायत समिति में कार्यरत सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को स्वीकृत करेगा। 

(2) वह पंचायत समिति में कार्य कर रहे सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के दौरों के कार्यक्रमों का अनुमोदन करेगा तथा उनके यात्रा भत्ता बिलों पर प्रति हस्ताक्षर करेगा। 

(3) वह स्थायी समितिप्रशसन की अनुमति से दो वर्ष के बाद या दो वर्ष से पूर्व पंचायत समिति क्षेत्र के भीतर सेवा के किसी भी सदस्य का स्थानान्तरण करेगा। 

(4) वह पंचायत समिति एवं स्थायी समितियों की मीटिंगों के लिए एजेण्डा तैयार करेगा।  

(5) कार्यवाहियेां को इतिवृत्त पुस्तिका (मिनट बुकसुरक्षितअभिरक्षा में रखेगा तथा कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलेख करेगा। (6) पंचायत समिति की मीटिंगों की कार्यवाहियों की प्रतियॉं जिला परषिद् को भेजेगा। 

(7) राज्य सरकार के अधिनियमनियमोंअधिसूचनाओं या  निर्देशों  उल्लंघन के सम्बन्ध में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के मार्फ्त राज्यसरकार को सूचित करेगा। 

(8) मीटिंगों के विनिश्चय ों पर शीघ्रता से कार्यवाही करेगा तथा अगली मीटिंगों में उसकी प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तथा स्थायी समितियों के जटिल विनिश्चय ों को पंचायत समिति की मीटिंग में हल करायेगा। 

(9) नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रसार अधिकारियों एवं पंचायतों के माफर्त सक्रिय रूप से क्रियान्वित करेगा। 

(10) विभिन्न कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा। 

(11) 20 सूत्री कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा। 

(12) शिक्षा एवं जल प्रदाय इत्यादि की अन्तरित स्कीमों का सफल निष्पादन करेगा। 

(13) सभी स्कीमों का प्रभावी ढंग से पर्यवेक्षण एवं परिनिरीक्षण करना। 

(14) विहित तारीखों को जिला परिषद्/डी.आर.डी.को प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। 

(15) विहित समय सूची के आधार पर पंचायत एवं विकास विभाग को त्रैमासिक एवं वार्षिक लेखे प्रस्तुत करेगा। 

(16) समय पर बजट तैयार करेगा तथा 15 फरवरी तक प्रस्तुत करेगा। 

(17) पंचायत समिति के सदस्यों को अपेक्षित सूचना एवं अभिलेख उपलब्ध करायेगा। 

(18) पंचायत समिति के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर निरीक्षण एवं प्रभावी नियन्त्रण रखेगा। 

(19) व्यय पर नियन्त्रण रखेगा। 

(20) नकद से संव्यवहार की प्रतिदिन जांच करेगा एवं लेखा – पुस्तिकाओं को सही ढंग से संधारित करेगा। 

(21) चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियेां की नियुक्तियॉं। 

(22) गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करने के लिए गा्रम सेवकों एवं प्रसार अधिकारियों की मासिक मीटिंगें संचालित करवाना। 

(23) पंचायत समिति का वार्षिक प्रषासन प्रतिवेदन तैयार करना। 

(24) सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन को भेजना। 

(25) प्रत्येक वर्ष पंचायत समिति के स्वयं के स्त्रोतों में 15प्रतिशत तक की वृद्धि करना। 

(26) नवम्बर माह में पंचायत समिति के समक्ष छमाही आय – व्यय का लेखा प्रस्तुत करना। 

(27) राज्य सरकार से सहायता अनुदान का उचित उपयोग करना। 

(28) चैक पुस्तिकाओं एवं रसीद बुकों को अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखना। 

(29) डबल लॉक की चाबियांे को सुरक्षित ढंग से रखना तथा वैयक्तिक अभिरक्षा में प्राप्त करना। 

(30) खजान्ची एवं भण्डारी की  उचित प्रतिभूति लेना। 

(31) मौके पर जांच करने के बाद कार्य के पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना। 

(32) प्रत्येक वर्ष अप्रेल माह में स्थायी अग्रिम की  रसीदें प्राप्त करना। 

(33) गबनछल कपट (फ्राडएवं धन की हानि के लिए तुरन्त कार्यवाही करना। 

(34) अनुषासी कार्यवाही करनाहानि की वसूली करनाएवं यदि आवश्यकहो तो उचित समय पर पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना। (35) पंचायतों एवं पंचायत समिति के लेखों की समय पर लेखा परीक्षा कराना। 

(36) गबन एवं कपट (फ्राडके पंजीकृत पुलिस केसांेल के संबध में विशेष लेखा परीक्षा कराने की व्यवस्था करना। 

(37) कपट (फ्राडको रोकने के लिए संवेतन बिलों के साथ बैक द्वारा सामान्य प्रावधायी  निधि बीमा कटौतियों को साथ –  साथ जमा करवाना। 

(38) वाउचरों के दुबारा प्रयोग करने एवं दुर्विनियोग किए जाने से बचने के लिए उन पर तथा नकद की प्रविष्टियों पर लघु हस्ताक्षर करना। 

(39) नियमों के अनुसार वाहनों का उचित उपयोग करना। 

(40) कार्यालय अध्यक्ष के रूप में शक्तियों का पूर्ण उपयोग करना। 

(41) वर्ष में एक बार सभी पंचायतों का निरीक्षण करना तथा उन्हें करांे/षुल्कों एवं उनके व्ययन पर रखी अन्य सम्पतियों के द्वारा अपने 

स्वयं के स्त्रोतों में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करना। 

(42) 10प्रतिशत निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन करना एवं कार्याे की गुणवत्ता की जॉच करना। 

(43) 10प्रतिशत आई आर डी.पी ऋणियों की प्राप्तियों का भौतिक सत्यापन करना। 

(44) इन्दिरा आवास एवं जीवन – धारा कार्यो की विशेष जांच करवाना। 

(45) गा्रम सभा एवं पंचायत मीटिंगो के कन्ट्रोल रजिस्टर रखना। 

(46) पिछली तारीखों में पटटा जारी करने को रोकने के लिए पंचायत समिति कार्यालय में पंचायतों के पटटा रजिस्टर की मासिक विवरणी का परिनिरीक्षण करना। 

(47) जिला स्तरीय अधिकारियों से उचित तालमेल रखना तथा उचित तकनीकी  मार्गदर्शन  लेना। 

(48) वर्ष में दो बार अपने स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना। 

(49) प्रतिमाह दस स्कूलों का निरीक्षण करना तथा वह देखना कि सभी अध्यापकों का मंजूरषुदा संख्या के अनुसार विद्यालय में पदस्थापन किया गया है और पंचायत समिति के किसी भी विद्यालय में मुख्य कार्यपालक अधिकारी के लिखित अनुमोदन के बिना कोई भी अध्यापक प्रतिनियुक्ति पर कार्य नहीं कर रहा है। 

(50) सभी प्रसार अधिकारियों द्वारा जॉच चार्ट्स की अनुपालना करना। 

(51) प्रत्येक माह की 5 तारीख को प्राप्ति एवं समस्याआंे के संबंध मंे मुख्य कार्यकारी अधिकारी को डी.लेटर भेजना। 

(52) पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य करना। 

(53) पंचायत समिति अधिकारी/कर्मचारीयो के वतन भत्तो का भुगतान 

335.   अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति के लिए शर्ते – (1) राज्य सरकार अधिनियम के अधीन मुख्य कार्यकारी को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए उपयुक्त सवे  के अधिकारी को मुख्य कार्यपालक अधिकारी के रूप में नियुक्त करने के लिए आ देश जारी कर सकेगी। 

(2) वह अधिकारी प्रतिनियुक्त पर होगा वही वेतन एवं भते आहरित करेगा जो उसे उसके पैतृक विभाग में स्वीकार्य थें। 

(3) वह रैंक/वरिष्ठता में मुख्य कार्यकारी अधिकारी से कनिष्ठ (जूनियरहोगा। 

(4) जिला परिषद में पदस्थापित परियोजना अधिकारी (लेखाको निम्न शक्ति प्रत्यायोजित करती है 

1        वेतन सम्बधी पंजिकाओं एवं अभिलेखों का सधारण  

2        अन्तिम वेतन भुगतान प्रमाण पत्रबकाया नही होने का प्रमाण पत्रपेशन मामलो का पुननिरक्षिणवेतन निर्धारण 

3        कालातीत बिलांे की पूर्व जांचस्रोत पर आय कर कटौती करनाप्रपत्र 16 एवं 24 तैयार करना 

4        कर्मचारियो को समस्त ऋण एवं अग्रिम स्वीकृत कराना एवं मानीटरिगसामान्य वित एवं लेखा नियम अर्न्तगत आहरण/वितरण अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का निर्वहण करना। (अधिसूचना .165/लेखा/वि./लेखा संधारण/2003 – 2004/2202 दिनॉक 2 – 8 – 2004 

द्वारा जोडा गया

336.   मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अन्य शक्तियॉ एवं कर्तव्य –  अधिनियम की धारा 84 में दिये गये शक्तियों एवं कर्तव्यों के अलावाकार्यकारी अधिकारी नियम 36 में विनिर्दिष्ट कर्तव्यों के निर्वहन में प्रमुख की सहायता करेगा तथा अतिरिक्त कर्तव्यों का निष्पादन करेगा तथा शक्तियों का निम्न प्रकार प्रयोग करेगा –  

(1) वह जिले के लिए अधिकारी प्रभारी पंचायती राज में कार्य करेगा जो जिले में ग्रामीण विकासात्मक  स्कीमों के क्रियान्वयन में आवश्यक  मार्गदर्शन  एवं परामर्श  प्रदान करेगा। 

(2) वह अधिनियम एवं नियमों के प्रावधानों के क्रियान्वयन में पंचायतों एवं पंचायत समितियों को  मार्गदर्शन  प्रदान करेगा। 

(3) ग्राम सभाज्ञापंचायतों एवं पंचायत समितियों की नियमित एवं समय पर मीटिंगें आयोजित करने से सम्बन्धित प्रावधानों की अनुपालना का परिनिरीक्षण करेगा। 

(4) यदि उसके ध्यान में कोई अनर्हता आए तो एसी दशा में सदस्य को हटाना या प्रारम्भिक जांच करवाना तथा जब पंच/सरपंच/उप – प्रधान के विरूद्ध कोई अविष्वास प्राप्त हो जाये तो विशेष बैठक आयोजित करना। 

(5) यह सुनिश्चित करना कि अध्यक्षों के निर्वाचन के बाद या अधिकारियों के स्थानान्तरण के बाद पूर्ववर्ती व्यक्तियों द्वारा उत्तराधिकारियेां को पूर्ण कार्यभार संभाला दिया गया है। 

(6) यह सुनिश्चित करना कि निर्वाचन के बाद 3 माह में स्थायी समितियों का गठन कर लिया गया है तथा सभी सदस्यों को इन स्थायी समितियों में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। 

(7) अधिनियमनियमोंअधिसूचनाओं या सरकार के अन्य निर्देशों का उल्लंघन करके किए गए विनिश्चय ों या पारित किये गये संकल्पों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को तुरन्त सूचना देना। 

(8) मानवोंजानवरों या फसलों में महामारी फैलने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले मेंभोजननिवासचाराऔषधियों आदि हेतु तुरन्त सहायता पहुंचाने के लिए कार्यवाही प्रारम्भ करना। 

(9) जिले में पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर पूर्ण निरीक्षण एवं नियन्त्रण रखना। 

(10) जिले की पंचायती राज संस्थाओं में वित्तीय अनुषासन का सुनिश्चियन करना। 

(11) ग्रामीण विकास स्कीमों का निष्पादन करने वाले विभिन्न जिला स्तरीय अधिकारियों में समन्वय स्थापित करना। 

(12) जिला आयोजन समिति के मार्फत जिला आयेाजन को समय पर तैयार किये जाने को सुनिश्चित करना। 

(13) ऐसी योजना के क्रियान्वयन की त्रैमासिक प्रगति का अवलोकन करना। 

(14) जिला परिषद् के  निर्देशों   के अनुसार तुरन्त क्रियान्वयन के लिए उपाय अपनाना। 

(15) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत स्तर पर सतर्कता समितियॉं सक्रिय हैं। 

(16) यह पुनरीक्षण करना कि बजट पंचायती राज संस्थाआंे द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार तैयार किये जाते हैं तथा आय एवं व्यय की विहित त्रैमासिक एवं वार्षिक विवरणिकाएॅ नियत तारीख तक भेज दी जाती है। 

(17) ग्रामसेवक – कम – सचिव को पदस्थापित कर या पंचायत के स्वयं के स्त्रोतों में से या राज्य सरकार द्वारा उन्हें दी गई सामान्य प्रयोजनों हेतु ग्राण्ट में से ठेके पर व्यक्तियों की व्यवस्था कर पंचायतों के सुचारू रूप से काम करने का सुनिश्चयन करना। 

(18) राज्य सरकार से पंचायतों एवं पंचायत समितियों को प्राप्त निधियों को तुरन्त अन्तरित करना। 

(19) पंचायतों एवं पंचायत समितियों के कम से कम 10 निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन प्रतिमाह करेगा। 

(20) दौरों के दौरान जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलोंप्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रोंआयुर्वेद एवं पशुचिकित्सालयोंअंागन बाड़ी केन्द्रों एवं 

ऐसी अन्य संस्थाओं टीकाकरण कार्यक्रमोंपरिवार कल्याण षिविरोंपेयजल की स्थितिउचित मूल्य की दुकानोंग्रामीण सड़कोंग्रामीण 

स्वच्छताविद्युतीकरणजल निकास (ड्रेनेज), ग्रामीण आवासन कार्यक्रममत्स्य विकासग्राम के तालाबों तथा गोचर भूमियों के उपयोग

पशुओं के लिए तालाबों आदि का नियमित रूप से निरीक्षण करना। 

(21) जिला स्थापना समिति के द्वारा अभ्यर्थियों का सामप्य पर चयन तथा रिक्त पदों को भरने के लिए उनका आवंटन करना। 

(22) पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा के सदस्यों द्वारा कर्त्तव्यों की अवहेलना के लिए अनुषासनिक कार्यवाही करना। 

(23) पंचायत समितियों एवं जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों पर प्रभावी नियंत्रण रखना। 

(24) पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनयिुक्त कर्मचारियों को दो माह तक काअवकाश स्वीकृत करना। 

(25) जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन भेजना तथा उन्हें सौंपे गये कर्त्तव्यों एवं कृत्यों के अनुसार काम के आधार पर रिपोर्ट करना। 

(26) जिला परिषद् के सामान्य मार्ग  निर्देशों   एवं विनिश्चय ों के अनुसार जिले के भीतर पंचायत समिति एवं जिला परषिद् सेवा के सदस्यों का स्थानान्तरण करना। 

(27) एक वर्ष में पंचायत समितियों एवं 20 पंचायतों का निरीक्षण करना। 

(28) छह माह में एक बार स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना। 

(29) खरीदोंस्वीकृतियोंअपलेखनसमयबाधित क्लेमों एवं समस्त ऐसे अन्य वित्तीय मामलों के सम्बन्ध में सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के अनुसार प्रादेषिक अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करना। 

(30) नियम 214 में यथा प्रावहित स्वयं के स्त्रोतों को खर्च करने के लिए पंचायत समितियों को स्वीकृत करना। 

(31) जिले में ग्रामीण विकासात्मक कार्यक्रमों के निष्पादन से सम्बन्धित समस्त जिला स्तरीय अधिकारियों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना। 

(32) पंचायत एवं पंचायत समितियों द्वारा रोजगार पैदा करने एवं गरीबी उन्मूलन के सफल किृर्यान्वयन का सुनिश्चित करना। 

(33) स्कीमों की प्रगति की समीक्षा करने तथा सामान्य मार्ग निर्देशन देने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों की मीटिंगों में उपस्थिति

(34) करों एवं कर – भिन्न राजस्वों जैसे शुल्कों एवं उन्हें सौंपी गयी सम्पत्त्यिों के प्रबन्ध  के द्वारा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक स्वयं की आय को बढ़ाने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों को पा्रेत्साहित करना। 

(35) पंचायत समितियों द्वारा बकाया ऋणों की वसूली पर निगरानी रखना। 

(36) लेखापरीक्षकों द्वारा ढँूढे गए या बतलाये गये राजस्वगबन एवं दुर्विनियोग/व्यक्तिक्रम के मामलों में हानियांे की वसूली के लिए कार्यवाही करना। 

(37) कपट (फ्राड), कूट रचना (फोरजरी), गबन आदि में शामिल व्यक्तियों के विरूद्ध पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना तथा ऐसे मामलों में विशेष लेखा परीक्षा की व्यवस्था करना। 

(38) अप्रेल माह में वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करवाना। 

(39) पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली में परादर्षकता का सुनिश्चयन करना। 

(40) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत/पंचायत समिति गत पांच वर्षो में कराये गये निर्माण कार्यो के वर्ष बार सूची उन कार्यो के अनुमानों तथा वास्तविक व्यय के साथ प्रदर्शित  करती हैं तथा किसी व्यक्ति या स्वयंसेवी संस्था को सूचना के अधिकार से वंचित किया गया है। 

337.   प्रमुख द्वारा प्रशासकीय नियन्त्रण – (1) निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज वर्ष के दौरान उसके कार्यो के निष्पादन के सम्बन्ध में प्रमुख के लिखित अभिमत को प्राप्त करेगा तथा उसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के भाग के 

रूप में उससे संलग्न करेगा। 

(2) मुख्य कार्यकारी अधिकारी के आकस्मिकअवकाश कलक्टर की अनुशंसा पर  प्रमुख द्वारा स्वीकृत किये जायेंगे।

 

दौरे एवं निरीक्षण

338.   निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए दौरों का नार्म्स (मानदण्ड) – निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए वार्षिक दौरों के दिनों की सीमा सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित की जायेगी। 

 

339.   अधिकारियों के लिए निरीक्षण के नार्म्स –  निरीक्षण अधिकारी अवधि 

1.       पंचायत  

    (पंचायत प्रसार अधिकारी अर्द्ध्रवार्षिक 

(विकास अधिकारी वर्ष में एक बार 

(मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रति वर्ष 20 पंचायतें 

(मुख्य कार्यालयों पर प्रति वर्ष 20 पंचायतें पदस्थापित उप – आयुक्त 

2.       पंचायत समिति  

    (विकास अधिकारी अर्द्धवार्षिक 

(मुख्य कार्यकारी अधिकारी वर्ष में एक बार यदि जिले में पंचायत समितियों की संख्या 6 से अधिक नहीं है। अन्य जिलों के मामले में 6 पंचायत समितियों प्रतिवर्ष लेकिन एक ही पंचायत समिति का दुबारा निरीक्षण नहीं किया जायेगा। 

(मुख्य कार्यालयों पर पदस्थापित 5 प्रतिवर्ष उप – आयुक्त 

340.   अधिकारियों के दौरों के दिवस – (1) कोई भी अधिकारी जिला परिषद्/डी.आर.डी.., राज्य स्तर पर आयोजित न्यायालय की उपस्थिति या प्रशिक्षण/वर्कशॉप  आदि की मीटिंगों के अलावा माह में 10 दिन से अधिक के लिए दौर पर नहीं रहेगा। 

(2) समस्त विकास अधिकारीप्रसार अधिकारीकनिष्ठ अभियन्तालेखाकार एवं खजान्ची उचित भुगतानों एवं सार्वजनिक शिकायतों के निराकरण की व्यवस्था करने के लिए सोमवार एवं वृहस्पतिवार को अपने मुख्य कार्यालयों पर रहेंगे। इन दिनों में मीटिंग निर्धारित करने से बचा जाना चाहिए। 

341.   क्षेत्रों के दौरों में सम्पत्तियों एवं कार्यो का निरीक्षण – (1) समस्त निर्वाचित प्रतिनिधि तथा अधिकारी पंचायत/पंचायत समितियों से सम्बन्धित या उसके व्ययन पर रखी गई सम्पत्तियों का निरीक्षण करेंगे तथा यह देखेंगे कि क्या उन्हें ठीक प्रकार से अनुरक्षित किया जाता है। 

(2) स्कूल भवनों का निरीक्षण विशेष रूप से यह देखने के लिए किया जायेगा कि क्या वह बालकों के जीवन की सुरक्षा दृष्टि से उचित है तथा वे  शिक्षा  की गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझावा देंगे। 

(3) पूर्ण किये गये या चल रहे निर्माण कार्यो का निरीक्षण कार्य की गुणवत्ता की तथा उनके उचित उपयोग की जांच करने के लिए किया जायेगा। 

342.   पंचायत प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – पंचायत प्रसार अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत पंचायतों के लिए मित्रमार्गदर्शक एवं दार्शनिक के रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप से निम्नलिखित कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा –  

(1) प्रति पंचायत दो दिनों तक पंचायत के अभिलेखोंलेखों पत्रावलियोंसम्पत्तियोंकार्योग्राम सभा एवं पंचायत मीटिंगों के कार्यवृत्ताोंसचिव द्वारा अनुपालनाकरेां के निर्धारणदेय  राशि  की वसूलीमवेषी खानोंचारागाहों आदि का विस्तृत निरीक्षण करेगा। 

(2) नियम 332 एवं 333 में क्रमश: निर्धारित सरपंच एवं ग्राम सेवक द्वारा कर्त्तव्यों के निष्पादन का निरीक्षण करना। 

(3) वर्ष में दो बार समस्त पंचायतों का निरीक्षण अथवा प्रत्येक वर्ष में 50 पंचायतों का निरीक्षण करना। 

(4) लेखा परीक्षक के प्रतिवेदनोंसतर्कता समिति एवं ग्राम सभा के विनिश्चय ों की अनुपालना करना। 

(5) करों/ शल्कों के आरोपण के लिए  मार्गदर्शन  करना तथा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक कर – भिन्न राजस्व में वृद्धि करना। 

(6) ग्रामीण स्वच्छताग्रामीण आवासनउन्नत चूल्हागोबर गैसराष्ट्रीय/राज्य महामार्गो पर दोनों ओर सुविधाओं का विकास करना। 

(7) आई.आर.डी.पीपरिवारों की वास्तविक प्राप्तियों का सत्यापन। 

(8) ऋण/आर्थिक सहायता के दुरुपयोग के मामलों की विकास अधिकारी को रिपोर्ट करना। 

(9)  ग्राम सभा की मीटिंगों में उपस्थित होना तथा नियम 5 एवं 8 में उसे सौंपे गये कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। (10) उसे सौंपी गई प्रारम्भिक जांच करना। 

(11) विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा समय – सयम पर उसे सौंपे गये समस्त अन्य कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। 

343. सहकारिता प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – सहकारिता प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता आन्दोलन को गति देने के लिए उत्तरदायी होंगे। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा। 

(1) विद्यमान सहकारी समितियों की सदस्यता में वृद्धि करेगा। 

(2) दुग्ध वाले मार्गो पर दुग्ध सहकारी समितियों का गठनसांडों के बन्ध्याकरण को प्रोत्साहनकृत्रिम गर्भाधानगायों एवं भैंसों की उन्नत नस्लों की खरीद करना ताकि अधिक दुग्ध उत्पादन के द्वारा आय को बढ़ाया जा सके। 

(3) समस्त संभावित क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के लिए सहकारी विपणन समितियों का गठन करना। 

(4) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में चयनित परिवारांे की पंजिका को संधारित करनाऋण प्रपत्रों को शुद्ध रूप में तैयार करने की व्यवस्था करनाबैकों के जरिये प्रोसेसिंगऋणों की स्वीकृति एवं आर्थिक सहायता का वितरण। 

(5) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रमों  के अन्तर्गत परिवारों द्वारा सृजित आस्तियों का 100प्रतिशत भौतिक सत्यापन एवं अनुसूचित जाति विकास निगम की स्कीमें। 

(6) ट्राइसम प्रषिक्षित युवकों को स्व – रोजगार ऋण। 

(7) ऋण मेलों के लिए षिविरों में विकास अधिकारी की सहायता करना। 

(8) सहायक रजिस्ट्रार के कार्यालय की जिला स्तरीय मीटिंगों में भाग लेना। 

(9)  क्षेत्र में सहकारी समितियों का निरीक्षण करना। 

(10) इन स्कीमों से सम्बन्धित ग्रामीण आवासन परियोजनाओं एवं ऋण लेखों को संव्यवहृत करना। 

(11) बैंक योग्य (बैंक बिलपरियोजनाओं का निर्धारण करना तथा हर वर्ष क्रेडिट प्लान तैयार करना। 

(12) क्रेडिट समन्वय समिति की भी मीटिंगों में भाग लेना। 

(13) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेना तथा नियम 5  8 मे समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को पूरा करना। 

(14) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा दिये गये सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना। 

344. प्रगति प्रसार अधिकारी (सांख्यिकीके कर्त्तव्य एवं कार्य – प्रगति प्रसार अधिकारी पंचायत समिति द्वारा जिम्में लिये गये कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा एवं मूल्यांकन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –  

(1) सांख्यिकी एवं उसके विष्लेषण का संग्रह। 

(2)  स्थायी सांख्यिकी अभिलेख का संधारण। 

(3)  योजनाओं एवं अन्य विकासात्मक गतिविधियों की प्रगति के मूल्यांकन में सहायता करना। 

(4)  प्रगति की समीक्षा के लिए प्रतिवेदन एवं विवरणियॅां तैयार करना। 

(5)  सर्वेक्षण प्रतिवेदन तैयार करना। 

(6)  संदेह होने पर मौके पर प्रगति प्रतिवेदन का सत्यापन। 

(7)  प्रगति प्रतिवेदनों को प्रकाशित करना तथा पाण्डुलिपि तैयार करना तथा उसका प्रूफ शोधन करना। 

(8)  जिला एवं राज्य स्तरीय अधिकारियों को मासिक/त्रैमासिक/वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन समय पर प्रस्तुत करना तथा आंकड़ों की विष्वसनीयता पर विशेष ध्यान देना। 

(9)  पंचायतों के ग्राम सेवकों – कम – सचिवों को वांछित सांख्यिकीय आंकड़ों को सही रूप में तैयार करने के लिए  मार्गदर्शन /प्रषिक्षिण प्रदान करना। 

(10) सामाजिक सुरक्षा स्कीमों के अन्तर्गत लाभेां का सु निश्च न करना। 

(11) प्रगति चार्टों/नक्षों को तैयार करना एवं उन्हें अद्यावधि तैयार करना। 

(12) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेने तथा नियम 5  8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। 

(13) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा आवंटित सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना। 

345. शिक्षा प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – शिक्षा प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों की सार्वजनीक प्राथमिक शिक्षा के लिए तथा विद्यालयों में  शिक्षा  की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –  

(1) नए स्कूल खोलने के लिए प्रस्ताव तैयार करना ताकि एक किलोमीटर की परिधि के भीतर सभी निवासियों को प्राथमिक विद्यालय की सुविधा प्राप्त हो जाये। 

(2) लड़कों एवं लड़कियों के प्रवेषांकन में वृद्धि कराना। 

(3) 6 से 11 एवं 11 से 14 आयु वर्ग में उन बालकों का सर्वे कराना जो प्रत्येक वर्ष जुलाई के माह में स्कूल नहेीं आते हैं। 

(4) 100प्रतिशत बालकों को विद्यालयों में लाने के लिए ग्राम शिक्षा  समिति का गठन तथा प्रवेषांकटूर्नामंेटोंसांस्कृतिक कार्यक्रमों इत्यादि के स्कूल कार्यक्रमों में सहायता करना। 

(5) विस्तृत कवरेज के लिए अनौपचारिक शिक्षा  केन्द्रों में बालकों को भेजने की व्यवस्था करना। 

(6) गांवों की ढाणियों में जहॉं एक किलोमीटर के भीतर कोई विद्यालय  होसरस्वती योजना के लिए महिला शिक्षक को तैयार करना –  

(अध्यापन की गुणवत्ता का निर्धारण करना। 

(आपरेशन ब्लैक बोर्ड स्कीम के अन्तर्गत सप्लाई किये गये उपकरणों के उपयोग के बारे में सु निश्च यन करना। 

(स्वीकृत पदों की संख्या तथा अध्यापक छात्र अनुपात के अनुसार अध्यापकों के पदस्थापन की जांच करना। 

(8) भवनोंकमरोंकमरों के आकारोंखेल के मैदानोंबाउण्ड्री वालोंफर्नीचरअन्य उपकरणोंपुस्तकालय पुस्तकोंखेल की सामग्रीटाट – पटि़टयोंवृक्ष पौधारोपण इत्यादि के बारे में स्कूलावार अद्यावधिक आंकड़े रखना। 

(9)  लड़कों एवं लड़कियों के प्रति कक्षावार प्रवेषांकन का ब्यौरा तैयार करना तथाउनके स्कूलों में नहीं आने वालों का विस्तृत विवरणतैयार करना। 

(10) जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के जरिये अध्यापकों के प्रशिक्षण का नियमित कार्यक्रम तैयार करना। 

346. कनिष्ठ अभियन्ता (जूनियर इंजिनियरके कर्त्तव्य एवं कार्य – कनिष्ठ अभियन्ता अनुमान तैयार करनेकार्यो की योजना बनाने मौके पर का न क्षे देनानिर्माणाधीन काया की गुणवत्ता का निरीक्षण करने तथा माप – पुस्तिका में वास्तविक माप दर्ज करने के बाद समय पर भुगतान की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी होगा। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा। 

(1) पंचायत समिति द्वारा क्रियान्वित की गई स्कीमों की शर्तो के बारे में जानकारी रखेगा। 

(2) राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये स्टेण्डर्ड डिजाइनो एवं लागत अनुमानों के बारे में जानकारी रखेगा। 

(3) प्रत्येक मामले में अनुदानों की वित्तीय सीमा एवं जनता के अंशदान के हिस्से के बारे में जानकारी रखेगा। 

(4) निर्माण सामग्री की चालू बाजार दर के बारे में जानकारी रखेगा। 

(5)  योजना कार्यो हेतु क्षेत्र के लिए अनुमोदित आधारभूत दर अनुसूची। 

(6)  दैनिक डायरी एवं माप – पुस्तिका को संधारति करना। 

(7)  पंचायत समिति भवनों की ब्ल्यू प्रिन्ट केस ाथ माप एवं मूल्यांकन का ब्यौरा तैयार करना एवं पंचायत समिति की स्वीकृति के बाद संधारण का कार्य हाथ में लेना। 

(8)  सम्पत्ति पंजिका को सही भरने में तथा अनधिकृत अतिक्रमणों को रोकने के लिए पंचायत सचिवों की सहायता करना। 

(9)  ऐनीकट़सतालाबोंनदियों के लिए स्थलों का निर्धारण करना। 

(10) पंचायत/पंचायत समिति में कार्यो का रजिस्टर संधारित करना। 

(11) ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित वार्षिक कार्यकारी योजना के अनुसार कार्यो के अनुमान तैयार करना। 

(12) कार्यो की स्वीकृति के बाद तकनीकीनिर्देशएवं ले – आउट देना। 

(13) कुर्सी स्तर तकछतस्तर तक तथा काम पूरा होने पर कार्य के स्थल पर जाकर निरीक्षण करना। 

(14) कमजोर निर्माण कार्य करने अथवा नमूनों के अनुसार निर्माण कार्य नहीं करने के मामले मेंनिर्देशजारी करना। 

(15) किष्तों के समय पर भुगतान के लिए उपयोजन प्रमाण – पत्र समय पर जारी करना। 

(16) कार्य पूरा होने से एक माह के भीतर पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना तथा एक लाख तक के निर्माण कार्य के लिए विकास अधिकारी को/दो लाख तक के लिए सहायक अभियन्ता को/तथा 5 लाख तक के निर्माण कार्यो के लिए अधिषासी अभियन्ता को प्रति हस्ताक्षरों के लिए प्रस्तुत करना। 

(17) कार्याे का भुगतान करने हेतु सभी सोमवार एवं बृहस्पतिवार को मुख्य कार्यालय पर रहना। 

(18) ग्रामीण तरवासोकपिटरोंस्कूलों में मूत्रालयों एवं ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत अन्य मदों के निर्माण के लिए तथा स्थानीय चुनाई करने वालों का तकनीकी प्रशिक्षण एवं मर्गदर्षन देगा। 

(19) विकास अधिकारी के नाम निर्देषिती के रूप में गा्रम सभा की मीटिंगों में भाग लेगा तथा नियम 5  8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा। 

(20) समय – समय पर विकास अधिकारी/सहायक अभियन्ता/अधिषासी अभियन्ता/पंचायत समिति/राज्य सरकारद्वारा आवंटित समस्त अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा। प्रशिक्षण एवं प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशरपाठ्यक्रम 

347. प्रशिक्षण कार्यक्रम / प्रत्यास्मरण कार्यक्रम – (1) ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग मानव संसाधन विकास के लिए विशेष प्रयत्न करेंगे तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा कर्मचारियों के लिए जिसमें ग्राम सेवक – कम – सचिवकनिष्ठ लेखाकारों एवं कनिष्ठ अभियन्ताओं के लिए प्रशिक्षण माडयूल तैयार करेंगे। 

(2) प्रधानों एवं प्रमुखों के लिए इन्दिरा गांधी पंचायती राज संस्थानजयपुर में अल्पकालिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी तथा सरपंचो/पंचायत समिति/जिला परिषद् के सदस्यों के लिए जिला परिषदों द्वारा जिला स्तर पर पाठयक्रमों की व्यस्था की जायेगी। महिला सरपंचों एवं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति/अन्य पिछड़े वर्गो के प्रथम बार निर्वाचित सरपंचों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमवर्कशॉप आयोजित करने की व्यवस्था की जायेगी। 

(3) पंचायत समिति स्तर पर या स्वयं सेवी संगठनों के मार्फत पंचों के लिए प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशरपाठयक्रमों के लिए व्यवस्था की जायेगी। 

(4) ग्राम सेवक प्रशिक्षणकेन्द्रग्राम सेवक – एवं – सचिवों के लिए छह माह के परिचय पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी। 

(5)  प्रत्येक ग्राम सेवक – कम – सचिव को तीन वर्ष में कम से कम एक बार 7 दिनों का प्रत्यास्मरण पाठ्यक्रम प्राप्त करना होगा। 

(6)  कनिष्ठ अभियन्ताओ/कनिष्ठ लेखाकारों को भी लेखा एवं इंजीनियरिंग स्टाफ वाले ग्राम सेवक प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षण देने की 

व्यवस्था की जायेगी। 

(7)  पाठ्यक्रम से सन्तुष्टि प्रबन्धकीय कार्य होने चाहिए तथा उसकी प्रकृति तकनीकी/कार्यात्मक रूप में शामिल होनी चाहिए। वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवदेन 

348.   विकास अधिकारी एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रधान प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कार्य निष्पादन के बारे में मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ेएक प्रतिवेदन भेजेगा जो विकास अधिकारी के कार्य पर रिपोर्ट लिखेगा तथा प्रधान से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ पुनरावलोकन के लिए कलक्टर को भेजेगा। कलक्टर अपनी अभ्युक्ति लिखने के बाद उसे निदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के पास उसको स्वीकार करने के लिए भेजेगा। 

(2)  प्रमुख प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्त में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वर्ष कार्य निष्पादन के बारे में निदेशकगा्रमीण विकास एवं पंचायती राज विभाग को एक प्रतिवेदन भेजेगा जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी के कार्य अपनी रिपोर्ट लिखेगा तथा जिला प्रमुख से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ विकास आयुक्त को पुरावलोकन हेतु भेजेगा। 

(3)  ये प्रतिवेदन अन्ततः राजस्थान प्रषासनिक सेवा के अधिकारियों के मामले में कार्मिक विभाग में तथा अन्य मामलों में सम्बन्धित विभागाध्यक्षों के पास जमा किये जायेंगे। 

349.   अन्य अधिकारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदनों को तैयार करना –  अन्य अधिकारियों के सम्बन्ध में वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन निम्न प्रकार भरे जाएंगें –  

 

क्र 

सं        अधिकारी जिसका प्रतिवेदन लिया गया प्रतिवेदन लिखने वाला अधिकारी पुनरावलोकन – कर्ता 

अधिकारी       स्वीकार करने वाला अधिकारी 

1        सहायक अभियन्ता जिला परिषद     मुख्य कार्यकारी अधिकारी           कलक्टर        निदेशक ग्रामीण विकास 

2        सहायक सचिव जिला परिषद          मुख्य कार्यकारी अधिकारी           निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

3        कनिष्ट अभियन्ता       विकास अधिकारी      मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सहायक अभियन्ता के

अभिमत के साथ)      निदेशक ग्रामीण विकास 

4        पंचायत प्रसार अघिकारीपंचायत समितिद्ध           विकास अधिकारी       मुख्य कार्यकारी अधिकारी (

          निदेशक ग्रामीण विकास 

5        पंचायत प्रसार अघिकारीजिला परिषद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी       निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

6        पंचायत प्रसार अघिकारी ;कलेक्टर कार्यालयद्,      कलक्टर           निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

7        अन्य प्रसार अघिकारी           विकास अधिकारी      मुख्य कार्यकारी अधिकारी  निदेशक ग्रामीण विकास 

8        जिला शिक्षा अघिकारी ;जिला परिषद,         मुख्य कार्यकारी अधिकारी       अपर निदेशक  (ग्रामीण

शिक्षा विभाग   निदेशक ग्रामीण विकास 

9        वरिष्ठ उप जिला शिक्षा अधिकारी/  उप जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी (जिला परिषदमुख्य कार्यकारी अधिकारी       निदेशक ग्रामीण विकास 

10      लेखा अधिकारीसहायक 

लेखा अधिकारी         मुख्य कार्यकारी अधिकारी    मुख्य लेखा अधिकारी   

(निदेशक ग्रामीण विकास कार्यालय)           निदेशक ग्रामीण विकास 

जिला आयोजन समिति 

350.   जिला आयोजन समिति के सदस्य –  (1) अधिनियम की धारा 121 में प्रकल्पित किये गये अनसु ारजिला आयोजन समिति में कुल मिलाकर 25 सदस्य होंगे जिसमें से 20 सदस्य जिला परिषद् एवं नगरपालिका निकायों के निर्वाचित सदस्यों में से उनके द्वारा जिले में ग्रामीण क्षेत्रों एवं नगरीय आबादी के अनुपात में निर्वाचित किये जायेंगे। 

(2)  पाँच नाम निर्देशित सदस्य निम्न प्रकार होंगे –  

(जिला कलक्टर 

(अपर कलक्टरजिला ग्रामीण विकास एजेन्सी

()  मुख्य कार्यकारी अधिकारीजिला परिषद् 

()  सांसदोविधायकों या राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देषित स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों में से दो सदस्य। 

351.   सदस्यों का निर्वाचन – (1) चयन की प्रक्रिया वही होगी जो जिला परषिद् की स्थायी समिति के सदस्यों के निर्वाचन के लिए विहित की गई है। 

(2) सदस्यों के निर्वाचन हेतु ऐसी बैठक की अध्यक्षता मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सहायता से कलक्टर या उसके द्वारा नामंाकित अधिकारी जो अतिरिक्त कलक्टर से नीचे का  हो द्वारा की जायेगी। 

352.   जिला आयेाजन समिति की शक्तियॉं एवं कार्य – (1) मुख्य कार्य जिले की पंचायत समितियों एवं नगरपालिका निकायों द्वारा विहित वार्षिक आयोजनाओं को समेकित करगी होनी।  

(2) अधिनियम की धारा 121 की उपधारा (7) में दियेगये अनुसार सामान्य हित के मुद्दों पर विचार करेगी। 

(3)  जिला योजना को राज्य सरकार के पास भेजेगी। 

(4)  मुख्य आयोजना अधिकारी समिति के सदस्य के रूप मंे कार्य करेगा। वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन 

353.   पंचायतों का वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन – (1) प्रत्येक पंचायत सरपंच प्रत्येक वर्ष 20 अप्रेल तक ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में पंचायत का वार्षिक प्रतिवेदन विहित प्रपत्र संख्या 45 में तैयार करायेगा जो पंचायत की मीटिंग के सामने रखा जायेगा एवं उसके द्वारा स्वीकार किया जायेगा तथा इसके बाद सम्बन्धित पंचायत समिति को भ्ेाजा जायेगा। इसमें वर्ष के दौरान पंचायत की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों पर एक टिप्पण भी दिया होगा। 

(1) प्रत्येक पंचायत का सरपंच प्रत्येक वित्तीय वर्ष की 20 अप्रैल तक संबंधित पंचायत के भामा शाह कार्ड धारकों की सूची प्रकाशित करेगा।,

   (2) पंचायत समिति अपने अधिकार क्षेत्र की समस्त पंचायतांे को प्रतिवेदनों की जांच करने के बादउसके सम्बन्ध में एक वर्णनात्मक       रूप में समेकित रिपोर्ट तैयार कराएगी एवं उसे उस पर अपने विचारों के साथ मुख्य कार्यकारी अधिकारी को उक्त वर्ष की 15 जून तक भेज देगी। 

354.   पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रत्येक पंचायत समिति/जिला परिषद् यथाशक्य शीघ्र वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद प्रपत्र संख्या 46 में उसके प्रषासन पर एक प्रतिवेदन तैयार करेगी। 

(2) जिला परिषद् पंचायतों/पंचायत समितियों से प्राप्त प्रतिवेदनों का पुनरावलोकन करेगी तथा यदि किसी समयऐसे पुनरावलोकन के परिणामस्वरूप यह ऐसा प्रकट करती हो कि किसी पंचायत या पंचायत समिति का कार्य सन्तोषजनक नहीं रहा हैतो जिला परिषद् अपने संकल्प की एक प्रति सम्बन्धित पंचायत समिति को भेजेगी। 

(3) जिला परिषद् प्रतिवेदन को राज्य सरकार के पास उसके विचारार्थ प्रस्तुत करेगी। 

355.   प्रतिवेदन का प्रकाशन – राज्यसरकार आम जनता की सूचनाहेतु उसके ऐसे भागों का या ऐसे उद्धरणों को या उसके ऐसे सारांश को जिसे वह आवश्यकसमझेगीछपवाएगी। पंचायती राज संस्थाओं को प्रोत्साहन अनुदान 

356.   अवार्ड  – (1) कर एवं कर – भिन्न राजस्व वसूल करने, 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत भौतिक लक्ष्यों का ेप्राप्त करनेगरीबी उन्मूलन एवं रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रमोंसामुदायिक कार्यो में जन सहयोग तथा कार्यो एवंसेवा के ऐसे अन्य क्षेत्रों में तत्प्रयोजनार्थ राज्य स्तरीय समिति द्वारा निर्धारित किए जायेंगेसे सम्बन्धित उनके कार्य निष्पादन के आधार पर सर्वोत्तम पंचायती राज संस्थाओं को नकद अवार्ड स्वीकार किये जायेंगें 

(2) सबसे श्रेष्ठ पंचायत का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित एक समिति द्वारा जिला स्तरपर किया जायेगा। समिति ऐसी पंचायतों के लिए सिफारिश करेगी जो विकास कार्यो के लिए निम्न प्रकार के प्रोत्साहन अनुदान प्राप्त करेगी 

1.       2.00 लाख रुपये 

2.       1.00 लाख रुपये 

3.       0.50 लाख रुपये 

(3) सर्वश्रेष्ठ पंचायत समिति का अधिनिर्णय संभाग स्तर पर गठित एक समिति द्वारा किया जायेगा। वे विकास कार्यो के लिए प्रोत्साहन अनुदान निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –  

1.       5.00 लाख रुपये 

2.       3.00 लाख रुपये 

3.       2.00 लाख रुपये  

(4) सर्वश्रेष्ठ जिला परिषद् का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित राज्य स्तरीय समिति द्वारा किया जायेगा। वे नकद अवार्ड निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –  

1.       8.00 लाख रुपये  

2.       5.00 लाख रुपये 

3.       2.00 लाख रुपये सेवा संघों को मान्यता देना 

357.   सेवा संघों की परिभाषा – (1) सेवा संघ राजस्थान पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा कर्मचारियों के कतिपय संवर्गो की एक यूनियन है जो उसके सदस्यों के सामान्य सेवा हितों को प्रोन्नत करने के लिए गठित की गई है। 

(2) ऐसे संघों का गठन अधिनियम की धारा89 की उप – धारा (2) में सम्मिलित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों या कर्मचारियेां द्वारा किया जा सकेगा। 

358.   संघों की मान्यता के लिए आवेदन – पत्र –  मान्यता प्राप्त करने का इच्छुक कोई भी संघविहित प्रपत्र 47 में पंजीयन प्रमाण – पत्रउप – विधियों की तीन प्रतियोंकार्यकारिणी के सदस्यांे की सूचीसंवर्गवार सदस्यों के विस्तृत विवरण एवं चाही गई अन्य सूचना को साथ लगाकरआवेदन करेगा। 

359.   मान्यता देने के लिए शर्ते – मान्यतानिदेशक  ग्रामीण  विकास द्वारा निम्नलिखित शर्तांे के अध्यधीन रहते हुए प्रदान की जायेगी –  (1) सभी वांछित विवरण आवेदन – पत्र के साथ प्रस्तुत कर दिये गये हैं।  

(2)  सदस्यता केवल सेवा के कुछ कर्मचारियों तक ही सीमित है। 

(3)  संघ का गठन कर्मचारियों के सामान्य हितों को प्रोन्नत करने के उद्वेष्य से किया गया है। इसका गठन किसी जाति या जन जाति के आधार पर नहीं किया गया है और  ही किन्हीं धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर गठित किसी ग्रुप के रूप में किया गया है। 

(4)  कार्यकारिणी के सदस्य इस संध के सदस्य हैं। 

(5)  संघ के कोष का गठन सदस्यों के अभिदान से किया गया है। 

(6)  उस संवर्ग के कम से कम 35प्रतिशत कर्मचारी उस संघ के सदस्य हैं। 

360.   मान्यता प्राप्त संघ द्वारा पालन की जाने वाली शर्ते – मान्यता प्राप्त संघ निम्नलिखित शर्तो से बाध्य होंगी –  

(1) मान्यता प्राप्त संघ व्यक्तिगत मामलों के लिए प्रतिनिधि मण्ड़ल (ड़ेलीगेशननहीं भेजेगा लेकिन सदस्यों के सामान्य हितों को ही उठायेगा। 

(2)  वह किसी एक कर्मचारी से सम्बन्धित मामले का समर्थन नहीं करेगा। 

(3) वह कोई भी राजनीतिक फण्ड़ नहीं रखेगाऔर  ही वह किसी राजनीतिक दल की विचाराधारा का प्रचार करेगा। 

(4)  प्रत्येक वर्ष की एक जुलाई से पूर्व पदाधिकारियांे की एक सूची तथा लेखों का लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।

(5)  सभी अभ्यावेदन सचिव या विभागाध्यक्ष को ही सम्बोधित किए जायेंगे। 

(6)  राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नियमोंध्उप – विधियों में कोई संषोधन नहीं किया जायेगा। 

(7)  किसी अन्य संघध्महासंघ की सदस्यता भी राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना प्राप्त नहीं की जायेगी। 

(8)  संघ का कोई भी सदस्य किसी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो वर्गीकरणनियंत्रण एवं अपील नियम, 1958 के अन्तर्गत दण्ड़नीय हो। 

(9)  वह किसी विदेषी एजेन्सी के साथ पत्र – व्यवहार नहीं करेगा। 

(10) इसके पदाधिकारियों में से कोई भी व्यक्ति सरकारी कर्मचारियों के साथ अपमानजनक या अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। 

(11) वह संसदविधान सभा या स्थानीय निकायों के लिए किसी निर्वाचन में निम्न कार्य कर भाग नहीं लेगा –  (चुनाव व्यय में अंशदान करके

(ऐसे चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी का समर्थन करके

(ंग)  किसी अभ्यर्थी के चुनाव में सहायता करके। 

(12) वह किसी राजनीतिक आंदोलन में लगे किसी राजनीतिक संगठन के साथ सम्बद्व नहीं किया जायेगा। 

(13) उसे किसी व्यावसायिक यूनियन से सम्बद्व नहीं किया जायेगा या उस रूप में पंजीकृत नहीं किया जायेगा। 

361.   विवादों का निपटारा – केवल मान्यता प्राप्त संघ को अपने सदस्यों के विवादों के बारे में बातचीत करने का अधिकार होगा। प्रक्रिया इस प्रकार होगी –  

(1) सभी शिकायतों का निपटारा पत्राचार के द्वारा या विधि विरूद्व साधनों का सहारा लिये बिना निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के साथ बात कर किया जायेगा। 

(2) विवाद के मामले मेंउसे विभागाध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित संयुक्त परामर्श दात्री समिति के पास भेजा जायेगा। संघ उस समिति की सिफाारिषों को मानने के लिए बाध्य होगा। 

362.   सूचना की मॉंग करना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग संघ से कोई भी सूचना यह जांच करने के लिए मॉंग सकेगा कि नियम 359  360 में दी गई शर्तो का पालन किया गया है। 

363.   एक संवर्ग के लिए किसी एक संघ को मान्यता देना – (1) मान्यता एक संवर्ग के केवल एक संघ को ही दी जायेगी। 

(2) यदि कोई अन्य संघ भी बाद में उसी संवर्ग के कर्मचारियों के लिए मान्यता देने हेतु आवेदन करेगा तो पूर्व यूनियन को मान्यता दिये जाने की तारीख से एक वर्ष तक उस आवेदन पर विचार नहीं किया जायेगा। 

(3) ऐसी अवधि के बादप्रत्येक मामले के गुणावगुण के आधार पर मान्यता को जारी रखा जा सकेगा या वापस लिया जा सकेगा। 

364.   महासंघ की सदस्यता – (1) मान्यता प्राप्त संघ उसी महासंघ की सदस्यता में शामिल हो सकता है जो राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। 

(2) महासंघ का उद्वेष्य भी सदस्यों में सद्इच्छा एवं सहयोग की भावना को विकसित करने का होगा। 

(3) महासंघ व्यक्तिगत विवादों को नहीं उठायेगा अपितु सामान्य हितों के मामलों पर बातचीत करेगा। 

365.   मान्यता वापस लेना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग सुनवाई का अवसर देने के बाद ऐसी मान्यता को वापस ले लेगा

यदि –  

(1) संघ ने नियम 359 एवं 360 के उपबन्धों का उल्लंघन किया हैया  

(2) मान्यता मिथ्यानिरूपण या कपट द्वारा प्राप्त की गयी है या वह दोषपूर्ण ढंग से दी गई हैया 

(3) उसने इन नियमों के अन्तर्गत किसी ऐसी अन्य शर्त का उल्लंघन किया है। 

366.   शर्तों में शिथिलता देना – विभाग सद् एवं पर्याप्त कारणों से कुछ शर्तों को षिथिल करने में सक्षम होगा। 

367.   अभिलेखों का नाशन – पंचायती राज संस्था की निम्नलिखित पंजिकाओंपुस्तिकाओं एवं कागजातों को उनके सामने विनिर्दिष्ट की गई अवधि के बीत जाने परनष्ट किया जायेगा। यह अवधि उनको बन्द करने या अन्तिम निपटारा किये जाने के तारीख से गिनी जायेगी –  

(iप्रतिपड़त रसीद बुकें – तीन वर्ष 

(iiकरों एवं अन्य बकायों की मॉंग  वसूली को दर्शाने वाली पजिकायें – पांच वर्ष 

(iiiपत्राचार की पंजिकाएॅं – तीन वर्ष   

(ivनिरीक्षण पुस्तिका – तीन वर्ष 

(vपंचायतों की कार्य प्रणाली पर वार्षिक प्रतिवेदन – पांच वर्ष 

(viअभिलेखों की नकलों के लिए आवेदन – पत्र – एक वर्ष 

(viiअभिलेखों के निरीक्षण हेतु आवेदन – पत्र          

(viiiअध्यक्षों एवं सदस्यों द्वारा ली गई शपथ के प्रपत्र – एक वर्ष 

   तथा निर्वाचन से सम्बन्धित अन्य कागजात – चार वर्ष 

(ixलेखा परीक्षा प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष 

(xगबन से सम्बन्धित प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष 

(xiसेवा पुस्तिका एवं चरित्र पंजी का सम्बन्धित व्यक्ति की सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद 

(xiiआय एवं व्यय के वार्षिक अनुमान – तीन वर्ष 

(xiiiवाऊचर एवं बिल लेखा परीक्षा किए जाने के – तीन वर्ष बाद 

(xivप्रतिभूति उनके प्रभावषाली  रहने से – एक वर्ष बाद 

(xvअन्य विविध कागजात – तीन वर्ष 

 

Rajasthan Panchayati Raj Rules

Rajasthan PanchayatI Raj Rules,1996 in Hindi

राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996
अध्याय 15 

पंचायती राज संस्थाओं का प्रशासन 

316.   कार्यालय  –  (1) पंचायती राज संस्था का कार्यालय उस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से बनाए गए भवन में या उसके मुख्य कार्यालय पर उपलब्ध किसी अन्य सार्वजनिक भवन में रखा एवं चलाया जायेगा। 
(2) जहॉ उप – नियम (1) में वर्णित किए गए अनुसार कोई भवन उपलब्ध  होवहॉ उस प्रयोजन के लिए कोई उपयुक्त भवन किराये पर लिया जा सकता है। 

(3) कार्यालय का अध्यक्ष पंचो/सदस्यों एवं पंचायती राज संस्था के स्टाफ के लिए तथा कार्यालय में उपस्थित होने वाली जनता के लिए बैठने हंतु उपयुक्त व्यवस्था करेगा। 

(4) कार्यालय रविवारों एवं सार्वजनिक छुटटियों के दिनों को छोडकर 10.00 बजे प्रातः से 5.00 सायं तक सामान्य रूप से खुला रहेगा। 

(5) कार्यालय का अध्यक्ष लेखन सामग्रीफर्नीचरप्रपत्र एवं रजिस्टरों आदि अपेक्षित वस्तुओं के लिए व्यवस्था करेगा तथा उसकी अभिरक्षा एवं सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रबन्ध करेगा। 

317.   मुहर  – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था की एक मुहर होगी जिस पर उसका नाम खुदा होगा तथा वह उसका उपयोग पत्राचारउसके द्वारा जारी किए गए आदेशों एवं प्रतियों पर करेगी। 

(2) वह मुहर साधारण रूप से कार्यालय के अध्यक्ष की अभिरक्षा में रहेगी। 

318.   पत्रावलियॉ एवं रजिस्टर  – (1) समस्त पत्राचारफार्म एवं अन्य कागजातों को विषयवार खोलकर अलग –  अलग पत्रावलियों में उचित ढंग से रखा जायेगा। 

(2) समस्त पत्रावलियां एवं रजिस्टर कार्यालय में रखे जायंेगे तथा किसी सदस्य या स्टाफ द्वारा पंचायती राज संस्था के कार्यालय के अलावा अन्य स्थान पर नहीं ले जाऐ जाएंगे तथा समस्त पत्रावलियां जिन पर कार्यवाही पूर्ण हो गई है तथा उन पर आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाती हैंउन्हें बन्द किया जायेगा तथा अभिलेख कक्ष में भेज दिया जायेगा। 

319.   पत्राचार की चैनल  –  जब तक अधिनियम मं या तदधीन निर्मित किसी नियम या उप – विधि मे या राज्य सरकार के किसी निर्देश में स्पष्ट रूप से अन्यथा अभिव्यक्त नहीं किया जायेपंचायतपंचायत समिति के साथ पत्र व्यवहार करेगीपंचायत समिति जिला परिषद के साथ तथा जिला परिषद राज्य सरकार के साथ पत्र –  व्यवहार करेगी। 

320.   अधिकारी प्रभारी पंचायती राज  – (1) मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिले में सभी पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य अधीक्षणमार्ग निर्देशन एंव निदेशन हेतु जिला स्तर पर अधिकारीप्रभारी पंचायती राज के रूप में कार्य करेगा।  

(2) निदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राजराज्य स्तर पर पंचायती राज अधिनियम 1994 एवं तदधीन बनाए गए नियमों या जारी की गयी अधिसूचनाओं के प्रावधानों के प्रवर्तन के लिए पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारी प्रभारी के रूप में कार्य करेगा।

अभिलेखों का निरीक्षण एवं प्रतियां देना 

321.निरीक्षण हेतु आवेदन पत्र  –  (1) कोई भी व्यक्ति जो किसी  पंचायती राज संस्था के किसी रजिस्टरपुस्तिकापत्रावली या अभिलेख का निरीक्षण करना चाहता है लिखित में एक आवेदन पत्र देगा जिसमें वह निरीक्षण किए जाने वाली प्रविष्टियां या कागजों काजैसी भी स्थिति होउल्लेख करेगा तथा उस अभिलेख की तलाश करने के लिए 5 रुपये के शुल्क का अग्रिम में भुगतान करेगा। 

(2) यदि आवेदन पत्र तुरन्त निरीक्षण करने के लिए दिया गया होतो दुगुना शुल्क 10 रुपये का भुगतान किया जायेगा। 

322.   अभिलेख आदि की तलाशी एवं निरीक्षण के लिए आदेश  –  नियम 321 के अधीन आवेदन पत्र के प्राप्त होने पर एवं उसमें प्रवाहित शुल्क के भुगतान करने परकार्यालय का अध्यक्ष सुसंगत रजिस्टरपुस्तिकापत्रावली या अभिलेख की तलाश कराएगा तथा उसके समक्ष रखाएगा तथा जिन प्रविष्टयों या कागजों के निरीक्षण के लिए मॉंग की गई हैउन्हें जांचेगा तथा यदि वह जनहित के विपरीत या आपत्तिजनक नहीं विचारता हो या यदि ऐसे निरीक्षण का निषेध नहीं किया गया होतो उनका निरीक्षण करने की अनुमति देते हुए आदेश देगा। 

323.   निर्माण काार्यों पर व्यय के सम्बन्ध में सूचना  –  (1) प्रत्येक पंचायत/पंचायत समिति उसके मुख्य कार्यालय में किसी एक सहज दृष्य प्रमुख स्थान पर एक सूचना पट्ट परस्वीकृत किए गए निर्माण कार्योका तथा गत पांच वर्षो में निष्पादित कराए गए कार्यो का उसके अनुमानों एवं वास्तविक रूप में खर्च की गई  राशि  का ब्यौरा प्रदर्शित    करेगी। 

(2) सम्बन्धित पंचायत/पंचायत समिति मौके पर चल रहे कार्यो को भीकार्य के नामखर्च की गई  राशि  एवं परू  किए जाने की तारीख आदि का जनता की सामान्य सूचना के लिए उल्लेख करते हुए नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित    करेगी। 

(3) कोई भी व्यक्ति या स्वयंसेवी संगठन 5 रुपये जमा कर किसी ऐसे कार्य से संबंधित अभिलेखों का निरीक्षण करने के लिए आवेदन करेगा तथा ऐसे मस्टररोल्स एवं वाऊचरों को उसे दिखाया जायेगा। उसे ऐसी सूचना के ब्यौरों को किसी एक कागज के टुकड़े पर पृथक़ से लिखने की अनुमति दी जायेगी तथा उसके लिए उसे आवश्यकसुविधा प्रदान कराई जायेगी। 

(4) पैनस्याहीफाउण्टेन पैन एवं ऐसी अन्य एसी चीजों का उपयोग निरीक्षण के दौरान नहीं किया जायेगाकिन्तु पैंसिल से नोट लिखे जा सकेंगे तथा निरीक्षण कर्ता व्यक्ति अभिलेख को विकृत नहीं करेगा अथवा उसे विभाजित नहीं करेगा। 

324.   प्रतियॉं देना –   (1) यदि नियम 322 के अन्तर्गत तलाश किए जाने परसुसंगत पंजिकापुस्तिकापत्रावली या अभिलेख पाया जाता हैतथा कार्यालय अध्यक्ष द्वारा उसकी प्रतियॉं या उससे उद्धरण देने का निर्णय किया जाताहैतो आवेदक प्रत्येक 200 शब्दों या उसके भाग के लिए नकल शुल्क 2 रुपये की दर से जमा कराएगा तथा ऐसे शुल्क की राशि की गणना करने के लिए जहॉं अंकों को टंकित किया जाता हैवहॉं पांच अंकों को एक शब्द के बराबर समझा जायेगा। 

(2) अत्यावष्यक रूप से शीघ्र प्राप्त करने के लिएप्रतिलिपि शुल्क उप – नियम (1) में विनिर्दिष्ट दर से दुगुनी दर पर वसूल किया जाना चाहिए। 

325.   प्रतिलिपियॉं तैयार करना एवं जारी करना  –  प्रतिलिपि शुल्क प्राप्त हो जाने परप्रतिलिपियों या उद्धरणों को तैयार कराया जायेगा तथा जॉंच के बाद कार्यालय अध्यक्ष या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी कार्यालय के अधिकारी द्वारा उसे सही रूप में होने को प्रमाणित किया जायेगा तथा यदि आवेदक व्यक्तिषः उसे प्राप्त करने के लिए उपस्थिति होता है या उसे प्राप्त करने के लिए किसी को प्राधिकृत करता है तो उसे दे दी जायेगी या यदि आवेदक ने उस प्रयोजन हेतु डाक टिकट जमा करा दिये हैं तो डाक द्वारा उसे भेज दी जायेगी।

326. प्रतियॉं देने के लिए समय – (1) प्रतियॉं साधारणतया 4 दिन के भीतर जारी की जायेंगी। 

(2) अत्यावष्यक प्रतियॉं 24 घंटों के भीतर दे दी जायेंगी। 

327.   रद्द करने के कारण – (1) जब निरीक्षण प्रति का दिया जाना अनुज्ञात किया जावे तो उसके लिए दिये गये आवेदन – पत्र को उसके कारणों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए एक पृष्ठांकन द्वारा रद्द कर दिया जाएगा तथा आवेदक को तद्नुसार सूचित किया जायेगा। (2) शासकीय पत्राचारकागजों की या किसी ऐसे दस्तावेज की जो स्वयं में एक प्रति हैकोइ्र प्रतिलिपि नहीं दी जायेगी। 

328.   निरीक्षण करने/प्रतियॉं देने के लिए आवेदन – पत्रों की पंजिका – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था के कार्यालय में ऐसे आवेदन पत्रों को दर्ज करने के लिए प्रपत्र सं. 44 में एक पंजिका तैयार की जायेगी जिसमें आवेदक/स्वयंसेवी संस्था का नामआवेदन करने की तारीख तथा जमा कराई गई  राशि  का उल्लेख किया जायेगा। 

(2) सभी निरीक्षणकर्ता अधिकारी उस पंजिका का अपने निरीक्षण करने के समय अवलोकन करेंगे। 

(3) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियम 321 से 325 तक के नियमों की पालना कराये जाने कासुनिश्चियन करेगा तथा समय – समय पर उसकी समीक्षा करेगा। वकीलों की नियुक्ति 

329.   पंचायती राज संस्था द्वारा उसके विरूद्ध वादों एवं कार्यवाहियों में वकील की नियुक्ति – (1) जब राज्य सरकार एवं पंचायती राज संस्था दोनों किसी एक सिविल कार्यवाही में पक्षकार हों तथा उस कार्यवाही में दोनेां के हित समान होंतो दोनों के लिए एक वकील की नियुक्ति की जायेगी तथा उसे एक ही शुल्क का भुगतान किया जायेगातथा आधा भुगतान राज्य सरकार द्वारा एवं आधा पंचायती राज संस्था द्वारा किया जायेगा। 

(2) यदि पक्षकार एक और अतिरिक्त वकील नियुक्त करता हैतो उस वकील की फीस का भुगतान उसे नियुक्त करने वाले पक्षकार द्वारा किया जायेगा। 

330.   सिविल कार्यवाही जिसमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों – (1) सिविल कार्यवाहियों में जिनमें अकेले पंचायती राज संस्था के हित शामिल हों तथा पंचायती राज संस्था किसी वकील की नियुक्ति करती हैतो वकील को संदेय शुल्क साधारणतया 2000 रुपये से अधिक नहीं होगा। कार्यालय अध्यक्ष इसे स्वीकृत करने के लिए सक्षम होगा। 

(2) प्रति मामले में 2000 रुपये से अधिक के शुल्कों के सदस्य के लिए स्थायी समिति प्रषासन की स्वीकृति अनिवार्य होगी। प्रशासनिक नियन्त्रण 

331.   सरपंच की प्रशासनिक शक्तियॉं एवं ग्राम सेवक – एवं – सचिव के कर्त्तव्य – (1) ग्राम सेवक – कम – सचिवपंचायत नियमित रूप से कार्यालय समय में  पंचायत के कार्यालय में उपस्थित होगा तथा सरंपच के  निर्देशों   के अधीन कार्य करेगा। 

(2) वह तत्प्रयोजनार्थ तैयार की गई एक पंजिका में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति अंकित करेगा। 

(3) यदि सचिव एक पंचायत से अधिक का प्रभारी हैतो विकास अधिकारी प्रत्येक सप्ताह के दिनो को निष्चित करेगा जब वह किसी विशेष पंचायत में उपस्थित होगा। ऐसे मामले में वह केवल उन्हीं  दिनों के लिए अपनी उपस्थिति अंकित करेगा। 

(4) सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव के वेतन के भुगतान के लिए पंचायत समिति को प्रत्येक माह की 20 तारीख को उन दिनों केलिए उपस्थिति का प्रमाण – पत्र भेजेगा। 

(5) ग्राम – सेवक – कम – सचिव का यह कर्त्तव्य होगा कि वह विकास अधिकारी द्वारा उसे स्वीकृत किए गएअवकाश के बारे मंे सम्बन्धित सरपंच को सूचना दे। 

(6) ग्राम सेवक – कम – सचिव पंचायत के अभिलेख के बारे में गोपनीयता रखेगा तथा सरपंच की विशेष अनुमति के बिना अभिलेख का निरीक्षण करने की अनुमति नहीं देगा या आवेदक को उसकी प्रतियॉं नहीं देगा। 

(7) वह पंचायत के आ देशों को तत्परता से निष्पादन करेगापंचायती मीटिंगों में नियमित रूप से एवं समय – पर उपस्थित होगाइसकी कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलिखित करेगापंचायत की पत्रावलियोंअभिलेखें एवं पंजिकाओं को संधारित करेगा। 

(8) वह पंचायत की ओर से धन प्राप्त करेगालेखा पुस्तिकायें संधारित करेगाबजट तैयार करेगा तथा विहित तारीखों को पंचायत/पंचायत समिति को समस्त सूचनाओं एवं विहित विवरणियों एवं विवरणों को प्रस्तुत करेगा। 

(9) पंचायत द्वारा स्वीकृत सभी भुगतानों को करने की व्यवस्था करेगा। 

(10) कर/षुल्कों के करदाताओं से मॉंग को तैयार करेगा तथा अप्रेल माह में मॉंग पर्चियॉं जारी करने का सु निश्च य करेगा। 

(11) पंचायत के लिए करों को मई के माह में वसूल करने में पटवारी की मदद करेगा। 

(12) वित्तीय वर्ष के अन्तिम त्रिमास में आयोजित की जाने वाली ग्राम सभा के समक्ष वार्षिक कार्य योजना तैयार कराएगा तथा डी.आर.

डी.द्वारा स्वीकृति हेतु पंचायत समिति को अग्रेषित करेगा। 

(13) निधियों के सम्भावित आवंटन को ध्यान में रखते हुये ग्राम सभा में प्राथमिकता वाले कार्यो को निष्चित करायेगा। 

(14) पंचों की समिति की देखरेख में स्वीकृत किए गए कार्यो को निष्पादित करायेगा।  

(15) स्वीकृति की शर्तो के अनुसार मस्टर रोल्स तथा निर्माण कार्यो के अन्य लेखे संधारित करेगा। 

(16) कार्य की गुणवत्ता (क्वालिटीएवं तकनीकी विनिर्देषेां को बनाए रखेगा। 

(17) काम पूरा होने की तारीख से एक सप्ताह में पंचायत समिति के कनिष्ठ इंजिनियर को सूचना देगा तथा एक माह में पूर्णता प्रमाण – प्रत्र प्राप्त करेगा। 

(18) प्रत्येक वर्ष जुलाई एवं जनवरी माहों में पंचों की समिति के साथ आबादी भूमि एवं गोचर भूमियों पर अनाधिकृत अतिक्रमण के मामलों का सर्वेक्षण करने हेतु जायेगा। 

(19) ऐसे अतिक्रमणों के लिए एक सर्वेक्षण पंजिका संधारित करेगा तथा ऐसे मामलों की रिपोर्ट पंचायत/तहसीलदार को बेदखल करने के लिए/पंचायत/राजस्व नियमों के अनुसार उनका विनियमन करने के लिए देगा। 

(20) आबादी भूमि के क्रय के लिए आवेदन – पत्रों को नियमानुसार शीघ्रतापूर्वक निपटायेगा। 

(21) विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर सामान खरीदने के लिए व्यवस्था करेगा। 

(22) नियम 33 एवं 34 में दिये गये कर्त्तव्यांेका कुशलतासे निर्वहन करने में पंचायत/सरपंच की मदद करेगा। 

(23) जन्म एवं मृत्यु पंजिकायें तैयार करेगा। 

(24) सतर्कता समिति की प्रथम मीटिंग आयोजित करेगा तथा मासिक मीटिंगोंमें सतर्कता समिति के सदस्यों की मदद करेगा। 

(25) ऐसे अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा जिन्हें पंचायत समय – समय पर उसे सौंपेगी। 

332.   ग्राम सेवक – कम – सचिव के कार्य – निष्पादन के बारे में वार्षिक प्रतिवेदन – सरपंच ग्राम सेवक – कम – सचिव द्वारा उक्त कर्त्तव्यों के निष्पादन पर विकास अधिकारी को अपने अभिमत भेजेगा। वह ऐसी अभ्यूक्तियों को उस ग्राम सेवक – कम – सचिव के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा। 

333.   प्रधान की प्रशासनिक शक्ति एवं विकास अधिकारी के कर्त्तव्य – (1) प्रधानपंचायत समिति की प्रत्येक मीटिंग के बादपंचायत समिति के विनिश्चय ों एवं संकलें के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्व्यन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे। 

(2) विकास अधिकारी प्रधान को उन स्थायी समितियों के विनिश्चय ांे एवं संकल्पों के क्रियान्वन के सम्बन्ध में ऐसेनिर्देशदेगा जो उन विनिश्चय ों एवं संकल्पों के शीघ्र क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यकसमझे जायेंगे। 

(3) विकास अधिकारी पंचायत समिति की एवं उसकी समितियां कीजैसी भी स्थिति होअगली मीटिंग होने से पूर्व प्रधान को पंचायत समिति एवं उसकी स्थायी समितियों के विनिश्चय ों एवं संकल्पों के क्रियान्वयन की प्रगति पर एक प्रतिवेदन प्रधान को प्रस्तुत करेगाताकी प्रधान उसे पंचायत समिति के समक्ष रख सकंे। 

(4) विकास अधिकारी को आकस्मिकअवकाश प्रधान द्वारा स्वीकृत किया जायेगा। 

(5) विकास अधिकारी प्रधान की नियम 35 मं उल्लिखित कर्तव्यों को कुशलतासे निर्वहन करने में उसकी मदद करेगा। 

(6) विकास अधिकारी उन मदों को जिनके लिए प्रधाननिर्देशदेगा पंचायत समिति एवं स्थायी समितियांे की मीटिंगों के एजेण्डा में 

शामिल करेगा। 

(7) वह विकास अधिकारी एवं समस्त प्रसार अधिकारियों के दौरा – कार्यक्रम की प्रति प्रधान की सूचना हेतु प्रस्तुत करेगा। 

(8) वह कर्मचारियों के स्थानान्तरण के मामले में प्रधान से परामर्श  करेगा। 

(9) पंचायत समिति एवं जिला परिषद सेवा के कर्मचारियांे पर लघु शास्तियॉ आरोपित करने से पूर्व प्रधान की अनुमति प्राप्त करेगा। 

(10) प्राकृतिक आपदाओं के मामले में पीड़ितों को भोजन एवं शरण प्रदान कराने तथा पशुओं को चारा उपलब्ध कराने एवं मानवांे, पशुओं या फसलों की महामारी पर नियंत्रण करने में प्रधान के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करेगा। 

(11) प्रधान के समक्ष सभी महत्वपूर्ण कागजातों एवं परिपत्रों इत्यादि को नियमित रूप से प्रस्तुत करेगा तथा कार्यक्रमो का शीघ्रता से निष्पादन के लिए एवं नीतियों के सफल क्रयान्वयन के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर विचार – विमर्श  करेगा। 

(12) प्रधान प्रत्येक वर्ष के अप्रेल माह में विकास अधिकारी के कार्य निष्पादन के बारेमें अपनी टिप्पणी मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भेजेगा जो उन्हेंनिदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राज को भेजे जाने वाले वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के साथ संलग्न करेगा। 

334. विकास अधिकारी की अन्य शक्तियॉं एवं कर्त्तव्य – अधिनियम की धारा 81 में दिये गये अनुसार विकास अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा –  

(1) वह आकस्मिकअवकाश तथा विशेष असमर्थता अवकाश एवं भारत के बाहर जाने हेतु अवकाश के अलावा सभी प्रकार के अवकाश पंचायत समिति में कार्यरत सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को स्वीकृत करेगा। 

(2) वह पंचायत समिति में कार्य कर रहे सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के दौरों के कार्यक्रमों का अनुमोदन करेगा तथा उनके यात्रा भत्ता बिलों पर प्रति हस्ताक्षर करेगा। 

(3) वह स्थायी समितिप्रशसन की अनुमति से दो वर्ष के बाद या दो वर्ष से पूर्व पंचायत समिति क्षेत्र के भीतर सेवा के किसी भी सदस्य का स्थानान्तरण करेगा। 

(4) वह पंचायत समिति एवं स्थायी समितियों की मीटिंगों के लिए एजेण्डा तैयार करेगा।  

(5) कार्यवाहियेां को इतिवृत्त पुस्तिका (मिनट बुकसुरक्षितअभिरक्षा में रखेगा तथा कार्यवाहियों को सही रूप में अभिलेख करेगा। (6) पंचायत समिति की मीटिंगों की कार्यवाहियों की प्रतियॉं जिला परषिद् को भेजेगा। 

(7) राज्य सरकार के अधिनियमनियमोंअधिसूचनाओं या  निर्देशों  उल्लंघन के सम्बन्ध में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के मार्फ्त राज्यसरकार को सूचित करेगा। 

(8) मीटिंगों के विनिश्चय ों पर शीघ्रता से कार्यवाही करेगा तथा अगली मीटिंगों में उसकी प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तथा स्थायी समितियों के जटिल विनिश्चय ों को पंचायत समिति की मीटिंग में हल करायेगा। 

(9) नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रसार अधिकारियों एवं पंचायतों के माफर्त सक्रिय रूप से क्रियान्वित करेगा। 

(10) विभिन्न कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा। 

(11) 20 सूत्री कार्यक्रमों का प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करायेगा। 

(12) शिक्षा एवं जल प्रदाय इत्यादि की अन्तरित स्कीमों का सफल निष्पादन करेगा। 

(13) सभी स्कीमों का प्रभावी ढंग से पर्यवेक्षण एवं परिनिरीक्षण करना। 

(14) विहित तारीखों को जिला परिषद्/डी.आर.डी.को प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। 

(15) विहित समय सूची के आधार पर पंचायत एवं विकास विभाग को त्रैमासिक एवं वार्षिक लेखे प्रस्तुत करेगा। 

(16) समय पर बजट तैयार करेगा तथा 15 फरवरी तक प्रस्तुत करेगा। 

(17) पंचायत समिति के सदस्यों को अपेक्षित सूचना एवं अभिलेख उपलब्ध करायेगा। 

(18) पंचायत समिति के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर निरीक्षण एवं प्रभावी नियन्त्रण रखेगा। 

(19) व्यय पर नियन्त्रण रखेगा। 

(20) नकद से संव्यवहार की प्रतिदिन जांच करेगा एवं लेखा – पुस्तिकाओं को सही ढंग से संधारित करेगा। 

(21) चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियेां की नियुक्तियॉं। 

(22) गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करने के लिए गा्रम सेवकों एवं प्रसार अधिकारियों की मासिक मीटिंगें संचालित करवाना। 

(23) पंचायत समिति का वार्षिक प्रषासन प्रतिवेदन तैयार करना। 

(24) सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन को भेजना। 

(25) प्रत्येक वर्ष पंचायत समिति के स्वयं के स्त्रोतों में 15प्रतिशत तक की वृद्धि करना। 

(26) नवम्बर माह में पंचायत समिति के समक्ष छमाही आय – व्यय का लेखा प्रस्तुत करना। 

(27) राज्य सरकार से सहायता अनुदान का उचित उपयोग करना। 

(28) चैक पुस्तिकाओं एवं रसीद बुकों को अपनी सुरक्षित अभिरक्षा में रखना। 

(29) डबल लॉक की चाबियांे को सुरक्षित ढंग से रखना तथा वैयक्तिक अभिरक्षा में प्राप्त करना। 

(30) खजान्ची एवं भण्डारी की  उचित प्रतिभूति लेना। 

(31) मौके पर जांच करने के बाद कार्य के पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना। 

(32) प्रत्येक वर्ष अप्रेल माह में स्थायी अग्रिम की  रसीदें प्राप्त करना। 

(33) गबनछल कपट (फ्राडएवं धन की हानि के लिए तुरन्त कार्यवाही करना। 

(34) अनुषासी कार्यवाही करनाहानि की वसूली करनाएवं यदि आवश्यकहो तो उचित समय पर पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना। (35) पंचायतों एवं पंचायत समिति के लेखों की समय पर लेखा परीक्षा कराना। 

(36) गबन एवं कपट (फ्राडके पंजीकृत पुलिस केसांेल के संबध में विशेष लेखा परीक्षा कराने की व्यवस्था करना। 

(37) कपट (फ्राडको रोकने के लिए संवेतन बिलों के साथ बैक द्वारा सामान्य प्रावधायी  निधि बीमा कटौतियों को साथ –  साथ जमा करवाना। 

(38) वाउचरों के दुबारा प्रयोग करने एवं दुर्विनियोग किए जाने से बचने के लिए उन पर तथा नकद की प्रविष्टियों पर लघु हस्ताक्षर करना। 

(39) नियमों के अनुसार वाहनों का उचित उपयोग करना। 

(40) कार्यालय अध्यक्ष के रूप में शक्तियों का पूर्ण उपयोग करना। 

(41) वर्ष में एक बार सभी पंचायतों का निरीक्षण करना तथा उन्हें करांे/षुल्कों एवं उनके व्ययन पर रखी अन्य सम्पतियों के द्वारा अपने 

स्वयं के स्त्रोतों में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करना। 

(42) 10प्रतिशत निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन करना एवं कार्याे की गुणवत्ता की जॉच करना। 

(43) 10प्रतिशत आई आर डी.पी ऋणियों की प्राप्तियों का भौतिक सत्यापन करना। 

(44) इन्दिरा आवास एवं जीवन – धारा कार्यो की विशेष जांच करवाना। 

(45) गा्रम सभा एवं पंचायत मीटिंगो के कन्ट्रोल रजिस्टर रखना। 

(46) पिछली तारीखों में पटटा जारी करने को रोकने के लिए पंचायत समिति कार्यालय में पंचायतों के पटटा रजिस्टर की मासिक विवरणी का परिनिरीक्षण करना। 

(47) जिला स्तरीय अधिकारियों से उचित तालमेल रखना तथा उचित तकनीकी  मार्गदर्शन  लेना। 

(48) वर्ष में दो बार अपने स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना। 

(49) प्रतिमाह दस स्कूलों का निरीक्षण करना तथा वह देखना कि सभी अध्यापकों का मंजूरषुदा संख्या के अनुसार विद्यालय में पदस्थापन किया गया है और पंचायत समिति के किसी भी विद्यालय में मुख्य कार्यपालक अधिकारी के लिखित अनुमोदन के बिना कोई भी अध्यापक प्रतिनियुक्ति पर कार्य नहीं कर रहा है। 

(50) सभी प्रसार अधिकारियों द्वारा जॉच चार्ट्स की अनुपालना करना। 

(51) प्रत्येक माह की 5 तारीख को प्राप्ति एवं समस्याआंे के संबंध मंे मुख्य कार्यकारी अधिकारी को डी.लेटर भेजना। 

(52) पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी के रूप में कार्य करना। 

(53) पंचायत समिति अधिकारी/कर्मचारीयो के वतन भत्तो का भुगतान 

335.   अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति के लिए शर्ते – (1) राज्य सरकार अधिनियम के अधीन मुख्य कार्यकारी को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता करने के लिए उपयुक्त सवे  के अधिकारी को मुख्य कार्यपालक अधिकारी के रूप में नियुक्त करने के लिए आ देश जारी कर सकेगी। 

(2) वह अधिकारी प्रतिनियुक्त पर होगा वही वेतन एवं भते आहरित करेगा जो उसे उसके पैतृक विभाग में स्वीकार्य थें। 

(3) वह रैंक/वरिष्ठता में मुख्य कार्यकारी अधिकारी से कनिष्ठ (जूनियरहोगा। 

(4) जिला परिषद में पदस्थापित परियोजना अधिकारी (लेखाको निम्न शक्ति प्रत्यायोजित करती है 

1        वेतन सम्बधी पंजिकाओं एवं अभिलेखों का सधारण  

2        अन्तिम वेतन भुगतान प्रमाण पत्रबकाया नही होने का प्रमाण पत्रपेशन मामलो का पुननिरक्षिणवेतन निर्धारण 

3        कालातीत बिलांे की पूर्व जांचस्रोत पर आय कर कटौती करनाप्रपत्र 16 एवं 24 तैयार करना 

4        कर्मचारियो को समस्त ऋण एवं अग्रिम स्वीकृत कराना एवं मानीटरिगसामान्य वित एवं लेखा नियम अर्न्तगत आहरण/वितरण अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का निर्वहण करना। (अधिसूचना .165/लेखा/वि./लेखा संधारण/2003 – 2004/2202 दिनॉक 2 – 8 – 2004 

द्वारा जोडा गया

336.   मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अन्य शक्तियॉ एवं कर्तव्य –  अधिनियम की धारा 84 में दिये गये शक्तियों एवं कर्तव्यों के अलावाकार्यकारी अधिकारी नियम 36 में विनिर्दिष्ट कर्तव्यों के निर्वहन में प्रमुख की सहायता करेगा तथा अतिरिक्त कर्तव्यों का निष्पादन करेगा तथा शक्तियों का निम्न प्रकार प्रयोग करेगा –  

(1) वह जिले के लिए अधिकारी प्रभारी पंचायती राज में कार्य करेगा जो जिले में ग्रामीण विकासात्मक  स्कीमों के क्रियान्वयन में आवश्यक  मार्गदर्शन  एवं परामर्श  प्रदान करेगा। 

(2) वह अधिनियम एवं नियमों के प्रावधानों के क्रियान्वयन में पंचायतों एवं पंचायत समितियों को  मार्गदर्शन  प्रदान करेगा। 

(3) ग्राम सभाज्ञापंचायतों एवं पंचायत समितियों की नियमित एवं समय पर मीटिंगें आयोजित करने से सम्बन्धित प्रावधानों की अनुपालना का परिनिरीक्षण करेगा। 

(4) यदि उसके ध्यान में कोई अनर्हता आए तो एसी दशा में सदस्य को हटाना या प्रारम्भिक जांच करवाना तथा जब पंच/सरपंच/उप – प्रधान के विरूद्ध कोई अविष्वास प्राप्त हो जाये तो विशेष बैठक आयोजित करना। 

(5) यह सुनिश्चित करना कि अध्यक्षों के निर्वाचन के बाद या अधिकारियों के स्थानान्तरण के बाद पूर्ववर्ती व्यक्तियों द्वारा उत्तराधिकारियेां को पूर्ण कार्यभार संभाला दिया गया है। 

(6) यह सुनिश्चित करना कि निर्वाचन के बाद 3 माह में स्थायी समितियों का गठन कर लिया गया है तथा सभी सदस्यों को इन स्थायी समितियों में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है। 

(7) अधिनियमनियमोंअधिसूचनाओं या सरकार के अन्य निर्देशों का उल्लंघन करके किए गए विनिश्चय ों या पारित किये गये संकल्पों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को तुरन्त सूचना देना। 

(8) मानवोंजानवरों या फसलों में महामारी फैलने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के मामले मेंभोजननिवासचाराऔषधियों आदि हेतु तुरन्त सहायता पहुंचाने के लिए कार्यवाही प्रारम्भ करना। 

(9) जिले में पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर पूर्ण निरीक्षण एवं नियन्त्रण रखना। 

(10) जिले की पंचायती राज संस्थाओं में वित्तीय अनुषासन का सुनिश्चियन करना। 

(11) ग्रामीण विकास स्कीमों का निष्पादन करने वाले विभिन्न जिला स्तरीय अधिकारियों में समन्वय स्थापित करना। 

(12) जिला आयोजन समिति के मार्फत जिला आयेाजन को समय पर तैयार किये जाने को सुनिश्चित करना। 

(13) ऐसी योजना के क्रियान्वयन की त्रैमासिक प्रगति का अवलोकन करना। 

(14) जिला परिषद् के  निर्देशों   के अनुसार तुरन्त क्रियान्वयन के लिए उपाय अपनाना। 

(15) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत स्तर पर सतर्कता समितियॉं सक्रिय हैं। 

(16) यह पुनरीक्षण करना कि बजट पंचायती राज संस्थाआंे द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार तैयार किये जाते हैं तथा आय एवं व्यय की विहित त्रैमासिक एवं वार्षिक विवरणिकाएॅ नियत तारीख तक भेज दी जाती है। 

(17) ग्रामसेवक – कम – सचिव को पदस्थापित कर या पंचायत के स्वयं के स्त्रोतों में से या राज्य सरकार द्वारा उन्हें दी गई सामान्य प्रयोजनों हेतु ग्राण्ट में से ठेके पर व्यक्तियों की व्यवस्था कर पंचायतों के सुचारू रूप से काम करने का सुनिश्चयन करना। 

(18) राज्य सरकार से पंचायतों एवं पंचायत समितियों को प्राप्त निधियों को तुरन्त अन्तरित करना। 

(19) पंचायतों एवं पंचायत समितियों के कम से कम 10 निर्माण कार्यो का भौतिक सत्यापन प्रतिमाह करेगा। 

(20) दौरों के दौरान जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलोंप्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रोंआयुर्वेद एवं पशुचिकित्सालयोंअंागन बाड़ी केन्द्रों एवं 

ऐसी अन्य संस्थाओं टीकाकरण कार्यक्रमोंपरिवार कल्याण षिविरोंपेयजल की स्थितिउचित मूल्य की दुकानोंग्रामीण सड़कोंग्रामीण 

स्वच्छताविद्युतीकरणजल निकास (ड्रेनेज), ग्रामीण आवासन कार्यक्रममत्स्य विकासग्राम के तालाबों तथा गोचर भूमियों के उपयोग

पशुओं के लिए तालाबों आदि का नियमित रूप से निरीक्षण करना। 

(21) जिला स्थापना समिति के द्वारा अभ्यर्थियों का सामप्य पर चयन तथा रिक्त पदों को भरने के लिए उनका आवंटन करना। 

(22) पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा के सदस्यों द्वारा कर्त्तव्यों की अवहेलना के लिए अनुषासनिक कार्यवाही करना। 

(23) पंचायत समितियों एवं जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों पर प्रभावी नियंत्रण रखना। 

(24) पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनयिुक्त कर्मचारियों को दो माह तक काअवकाश स्वीकृत करना। 

(25) जिला परिषद् में प्रतिनियुक्त विकास अधिकारियों एवं अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन भेजना तथा उन्हें सौंपे गये कर्त्तव्यों एवं कृत्यों के अनुसार काम के आधार पर रिपोर्ट करना। 

(26) जिला परिषद् के सामान्य मार्ग  निर्देशों   एवं विनिश्चय ों के अनुसार जिले के भीतर पंचायत समिति एवं जिला परषिद् सेवा के सदस्यों का स्थानान्तरण करना। 

(27) एक वर्ष में पंचायत समितियों एवं 20 पंचायतों का निरीक्षण करना। 

(28) छह माह में एक बार स्वयं के कार्यालय का निरीक्षण करना। 

(29) खरीदोंस्वीकृतियोंअपलेखनसमयबाधित क्लेमों एवं समस्त ऐसे अन्य वित्तीय मामलों के सम्बन्ध में सामान्य वित्तीय एवं लेखा नियमों के अनुसार प्रादेषिक अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करना। 

(30) नियम 214 में यथा प्रावहित स्वयं के स्त्रोतों को खर्च करने के लिए पंचायत समितियों को स्वीकृत करना। 

(31) जिले में ग्रामीण विकासात्मक कार्यक्रमों के निष्पादन से सम्बन्धित समस्त जिला स्तरीय अधिकारियों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना। 

(32) पंचायत एवं पंचायत समितियों द्वारा रोजगार पैदा करने एवं गरीबी उन्मूलन के सफल किृर्यान्वयन का सुनिश्चित करना। 

(33) स्कीमों की प्रगति की समीक्षा करने तथा सामान्य मार्ग निर्देशन देने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों की मीटिंगों में उपस्थिति

(34) करों एवं कर – भिन्न राजस्वों जैसे शुल्कों एवं उन्हें सौंपी गयी सम्पत्त्यिों के प्रबन्ध  के द्वारा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक स्वयं की आय को बढ़ाने के लिए पंचायतों/पंचायत समितियों को पा्रेत्साहित करना। 

(35) पंचायत समितियों द्वारा बकाया ऋणों की वसूली पर निगरानी रखना। 

(36) लेखापरीक्षकों द्वारा ढँूढे गए या बतलाये गये राजस्वगबन एवं दुर्विनियोग/व्यक्तिक्रम के मामलों में हानियांे की वसूली के लिए कार्यवाही करना। 

(37) कपट (फ्राड), कूट रचना (फोरजरी), गबन आदि में शामिल व्यक्तियों के विरूद्ध पुलिस कार्यवाही प्रारम्भ करना तथा ऐसे मामलों में विशेष लेखा परीक्षा की व्यवस्था करना। 

(38) अप्रेल माह में वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करवाना। 

(39) पंचायती राज संस्थाओं की कार्यप्रणाली में परादर्षकता का सुनिश्चयन करना। 

(40) यह सुनिश्चित करना कि पंचायत/पंचायत समिति गत पांच वर्षो में कराये गये निर्माण कार्यो के वर्ष बार सूची उन कार्यो के अनुमानों तथा वास्तविक व्यय के साथ प्रदर्शित  करती हैं तथा किसी व्यक्ति या स्वयंसेवी संस्था को सूचना के अधिकार से वंचित किया गया है। 

337.   प्रमुख द्वारा प्रशासकीय नियन्त्रण – (1) निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज वर्ष के दौरान उसके कार्यो के निष्पादन के सम्बन्ध में प्रमुख के लिखित अभिमत को प्राप्त करेगा तथा उसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन के भाग के 

रूप में उससे संलग्न करेगा। 

(2) मुख्य कार्यकारी अधिकारी के आकस्मिकअवकाश कलक्टर की अनुशंसा पर  प्रमुख द्वारा स्वीकृत किये जायेंगे।

 

दौरे एवं निरीक्षण

338.   निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए दौरों का नार्म्स (मानदण्ड) – निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए वार्षिक दौरों के दिनों की सीमा सरकार द्वारा समय – समय पर निर्धारित की जायेगी। 

 

339.   अधिकारियों के लिए निरीक्षण के नार्म्स –  निरीक्षण अधिकारी अवधि 

1.       पंचायत  

    (पंचायत प्रसार अधिकारी अर्द्ध्रवार्षिक 

(विकास अधिकारी वर्ष में एक बार 

(मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रति वर्ष 20 पंचायतें 

(मुख्य कार्यालयों पर प्रति वर्ष 20 पंचायतें पदस्थापित उप – आयुक्त 

2.       पंचायत समिति  

    (विकास अधिकारी अर्द्धवार्षिक 

(मुख्य कार्यकारी अधिकारी वर्ष में एक बार यदि जिले में पंचायत समितियों की संख्या 6 से अधिक नहीं है। अन्य जिलों के मामले में 6 पंचायत समितियों प्रतिवर्ष लेकिन एक ही पंचायत समिति का दुबारा निरीक्षण नहीं किया जायेगा। 

(मुख्य कार्यालयों पर पदस्थापित 5 प्रतिवर्ष उप – आयुक्त 

340.   अधिकारियों के दौरों के दिवस – (1) कोई भी अधिकारी जिला परिषद्/डी.आर.डी.., राज्य स्तर पर आयोजित न्यायालय की उपस्थिति या प्रशिक्षण/वर्कशॉप  आदि की मीटिंगों के अलावा माह में 10 दिन से अधिक के लिए दौर पर नहीं रहेगा। 

(2) समस्त विकास अधिकारीप्रसार अधिकारीकनिष्ठ अभियन्तालेखाकार एवं खजान्ची उचित भुगतानों एवं सार्वजनिक शिकायतों के निराकरण की व्यवस्था करने के लिए सोमवार एवं वृहस्पतिवार को अपने मुख्य कार्यालयों पर रहेंगे। इन दिनों में मीटिंग निर्धारित करने से बचा जाना चाहिए। 

341.   क्षेत्रों के दौरों में सम्पत्तियों एवं कार्यो का निरीक्षण – (1) समस्त निर्वाचित प्रतिनिधि तथा अधिकारी पंचायत/पंचायत समितियों से सम्बन्धित या उसके व्ययन पर रखी गई सम्पत्तियों का निरीक्षण करेंगे तथा यह देखेंगे कि क्या उन्हें ठीक प्रकार से अनुरक्षित किया जाता है। 

(2) स्कूल भवनों का निरीक्षण विशेष रूप से यह देखने के लिए किया जायेगा कि क्या वह बालकों के जीवन की सुरक्षा दृष्टि से उचित है तथा वे  शिक्षा  की गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझावा देंगे। 

(3) पूर्ण किये गये या चल रहे निर्माण कार्यो का निरीक्षण कार्य की गुणवत्ता की तथा उनके उचित उपयोग की जांच करने के लिए किया जायेगा। 

342.   पंचायत प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – पंचायत प्रसार अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत पंचायतों के लिए मित्रमार्गदर्शक एवं दार्शनिक के रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप में कार्य करेगा। वह विशेष रूप से निम्नलिखित कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा –  

(1) प्रति पंचायत दो दिनों तक पंचायत के अभिलेखोंलेखों पत्रावलियोंसम्पत्तियोंकार्योग्राम सभा एवं पंचायत मीटिंगों के कार्यवृत्ताोंसचिव द्वारा अनुपालनाकरेां के निर्धारणदेय  राशि  की वसूलीमवेषी खानोंचारागाहों आदि का विस्तृत निरीक्षण करेगा। 

(2) नियम 332 एवं 333 में क्रमश: निर्धारित सरपंच एवं ग्राम सेवक द्वारा कर्त्तव्यों के निष्पादन का निरीक्षण करना। 

(3) वर्ष में दो बार समस्त पंचायतों का निरीक्षण अथवा प्रत्येक वर्ष में 50 पंचायतों का निरीक्षण करना। 

(4) लेखा परीक्षक के प्रतिवेदनोंसतर्कता समिति एवं ग्राम सभा के विनिश्चय ों की अनुपालना करना। 

(5) करों/ शल्कों के आरोपण के लिए  मार्गदर्शन  करना तथा प्रतिवर्ष 15प्रतिशत तक कर – भिन्न राजस्व में वृद्धि करना। 

(6) ग्रामीण स्वच्छताग्रामीण आवासनउन्नत चूल्हागोबर गैसराष्ट्रीय/राज्य महामार्गो पर दोनों ओर सुविधाओं का विकास करना। 

(7) आई.आर.डी.पीपरिवारों की वास्तविक प्राप्तियों का सत्यापन। 

(8) ऋण/आर्थिक सहायता के दुरुपयोग के मामलों की विकास अधिकारी को रिपोर्ट करना। 

(9)  ग्राम सभा की मीटिंगों में उपस्थित होना तथा नियम 5 एवं 8 में उसे सौंपे गये कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। (10) उसे सौंपी गई प्रारम्भिक जांच करना। 

(11) विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा समय – सयम पर उसे सौंपे गये समस्त अन्य कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। 

343. सहकारिता प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – सहकारिता प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता आन्दोलन को गति देने के लिए उत्तरदायी होंगे। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा। 

(1) विद्यमान सहकारी समितियों की सदस्यता में वृद्धि करेगा। 

(2) दुग्ध वाले मार्गो पर दुग्ध सहकारी समितियों का गठनसांडों के बन्ध्याकरण को प्रोत्साहनकृत्रिम गर्भाधानगायों एवं भैंसों की उन्नत नस्लों की खरीद करना ताकि अधिक दुग्ध उत्पादन के द्वारा आय को बढ़ाया जा सके। 

(3) समस्त संभावित क्षेत्रों में फलों एवं सब्जियों के लिए सहकारी विपणन समितियों का गठन करना। 

(4) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में चयनित परिवारांे की पंजिका को संधारित करनाऋण प्रपत्रों को शुद्ध रूप में तैयार करने की व्यवस्था करनाबैकों के जरिये प्रोसेसिंगऋणों की स्वीकृति एवं आर्थिक सहायता का वितरण। 

(5) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रमों  के अन्तर्गत परिवारों द्वारा सृजित आस्तियों का 100प्रतिशत भौतिक सत्यापन एवं अनुसूचित जाति विकास निगम की स्कीमें। 

(6) ट्राइसम प्रषिक्षित युवकों को स्व – रोजगार ऋण। 

(7) ऋण मेलों के लिए षिविरों में विकास अधिकारी की सहायता करना। 

(8) सहायक रजिस्ट्रार के कार्यालय की जिला स्तरीय मीटिंगों में भाग लेना। 

(9)  क्षेत्र में सहकारी समितियों का निरीक्षण करना। 

(10) इन स्कीमों से सम्बन्धित ग्रामीण आवासन परियोजनाओं एवं ऋण लेखों को संव्यवहृत करना। 

(11) बैंक योग्य (बैंक बिलपरियोजनाओं का निर्धारण करना तथा हर वर्ष क्रेडिट प्लान तैयार करना। 

(12) क्रेडिट समन्वय समिति की भी मीटिंगों में भाग लेना। 

(13) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेना तथा नियम 5  8 मे समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को पूरा करना। 

(14) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा दिये गये सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना। 

344. प्रगति प्रसार अधिकारी (सांख्यिकीके कर्त्तव्य एवं कार्य – प्रगति प्रसार अधिकारी पंचायत समिति द्वारा जिम्में लिये गये कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा एवं मूल्यांकन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –  

(1) सांख्यिकी एवं उसके विष्लेषण का संग्रह। 

(2)  स्थायी सांख्यिकी अभिलेख का संधारण। 

(3)  योजनाओं एवं अन्य विकासात्मक गतिविधियों की प्रगति के मूल्यांकन में सहायता करना। 

(4)  प्रगति की समीक्षा के लिए प्रतिवेदन एवं विवरणियॅां तैयार करना। 

(5)  सर्वेक्षण प्रतिवेदन तैयार करना। 

(6)  संदेह होने पर मौके पर प्रगति प्रतिवेदन का सत्यापन। 

(7)  प्रगति प्रतिवेदनों को प्रकाशित करना तथा पाण्डुलिपि तैयार करना तथा उसका प्रूफ शोधन करना। 

(8)  जिला एवं राज्य स्तरीय अधिकारियों को मासिक/त्रैमासिक/वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन समय पर प्रस्तुत करना तथा आंकड़ों की विष्वसनीयता पर विशेष ध्यान देना। 

(9)  पंचायतों के ग्राम सेवकों – कम – सचिवों को वांछित सांख्यिकीय आंकड़ों को सही रूप में तैयार करने के लिए  मार्गदर्शन /प्रषिक्षिण प्रदान करना। 

(10) सामाजिक सुरक्षा स्कीमों के अन्तर्गत लाभेां का सु निश्च न करना। 

(11) प्रगति चार्टों/नक्षों को तैयार करना एवं उन्हें अद्यावधि तैयार करना। 

(12) ग्राम सभा की मीटिंगों में भाग लेने तथा नियम 5  8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करना। 

(13) समय – समय पर विकास अधिकारी/पंचायत समिति/जिला परिषद्/राज्य सरकार द्वारा आवंटित सभी अन्य कार्यो को निष्पादित करना। 

345. शिक्षा प्रसार अधिकारी के कर्त्तव्य एवं कार्य – शिक्षा प्रसार अधिकारी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों की सार्वजनीक प्राथमिक शिक्षा के लिए तथा विद्यालयों में  शिक्षा  की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगा। उसके मुख्य कार्य निम्न प्रकार होंगे –  

(1) नए स्कूल खोलने के लिए प्रस्ताव तैयार करना ताकि एक किलोमीटर की परिधि के भीतर सभी निवासियों को प्राथमिक विद्यालय की सुविधा प्राप्त हो जाये। 

(2) लड़कों एवं लड़कियों के प्रवेषांकन में वृद्धि कराना। 

(3) 6 से 11 एवं 11 से 14 आयु वर्ग में उन बालकों का सर्वे कराना जो प्रत्येक वर्ष जुलाई के माह में स्कूल नहेीं आते हैं। 

(4) 100प्रतिशत बालकों को विद्यालयों में लाने के लिए ग्राम शिक्षा  समिति का गठन तथा प्रवेषांकटूर्नामंेटोंसांस्कृतिक कार्यक्रमों इत्यादि के स्कूल कार्यक्रमों में सहायता करना। 

(5) विस्तृत कवरेज के लिए अनौपचारिक शिक्षा  केन्द्रों में बालकों को भेजने की व्यवस्था करना। 

(6) गांवों की ढाणियों में जहॉं एक किलोमीटर के भीतर कोई विद्यालय  होसरस्वती योजना के लिए महिला शिक्षक को तैयार करना –  

(अध्यापन की गुणवत्ता का निर्धारण करना। 

(आपरेशन ब्लैक बोर्ड स्कीम के अन्तर्गत सप्लाई किये गये उपकरणों के उपयोग के बारे में सु निश्च यन करना। 

(स्वीकृत पदों की संख्या तथा अध्यापक छात्र अनुपात के अनुसार अध्यापकों के पदस्थापन की जांच करना। 

(8) भवनोंकमरोंकमरों के आकारोंखेल के मैदानोंबाउण्ड्री वालोंफर्नीचरअन्य उपकरणोंपुस्तकालय पुस्तकोंखेल की सामग्रीटाट – पटि़टयोंवृक्ष पौधारोपण इत्यादि के बारे में स्कूलावार अद्यावधिक आंकड़े रखना। 

(9)  लड़कों एवं लड़कियों के प्रति कक्षावार प्रवेषांकन का ब्यौरा तैयार करना तथाउनके स्कूलों में नहीं आने वालों का विस्तृत विवरणतैयार करना। 

(10) जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के जरिये अध्यापकों के प्रशिक्षण का नियमित कार्यक्रम तैयार करना। 

346. कनिष्ठ अभियन्ता (जूनियर इंजिनियरके कर्त्तव्य एवं कार्य – कनिष्ठ अभियन्ता अनुमान तैयार करनेकार्यो की योजना बनाने मौके पर का न क्षे देनानिर्माणाधीन काया की गुणवत्ता का निरीक्षण करने तथा माप – पुस्तिका में वास्तविक माप दर्ज करने के बाद समय पर भुगतान की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी होगा। वह निम्नलिखित कार्यो को करेगा। 

(1) पंचायत समिति द्वारा क्रियान्वित की गई स्कीमों की शर्तो के बारे में जानकारी रखेगा। 

(2) राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये स्टेण्डर्ड डिजाइनो एवं लागत अनुमानों के बारे में जानकारी रखेगा। 

(3) प्रत्येक मामले में अनुदानों की वित्तीय सीमा एवं जनता के अंशदान के हिस्से के बारे में जानकारी रखेगा। 

(4) निर्माण सामग्री की चालू बाजार दर के बारे में जानकारी रखेगा। 

(5)  योजना कार्यो हेतु क्षेत्र के लिए अनुमोदित आधारभूत दर अनुसूची। 

(6)  दैनिक डायरी एवं माप – पुस्तिका को संधारति करना। 

(7)  पंचायत समिति भवनों की ब्ल्यू प्रिन्ट केस ाथ माप एवं मूल्यांकन का ब्यौरा तैयार करना एवं पंचायत समिति की स्वीकृति के बाद संधारण का कार्य हाथ में लेना। 

(8)  सम्पत्ति पंजिका को सही भरने में तथा अनधिकृत अतिक्रमणों को रोकने के लिए पंचायत सचिवों की सहायता करना। 

(9)  ऐनीकट़सतालाबोंनदियों के लिए स्थलों का निर्धारण करना। 

(10) पंचायत/पंचायत समिति में कार्यो का रजिस्टर संधारित करना। 

(11) ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित वार्षिक कार्यकारी योजना के अनुसार कार्यो के अनुमान तैयार करना। 

(12) कार्यो की स्वीकृति के बाद तकनीकीनिर्देशएवं ले – आउट देना। 

(13) कुर्सी स्तर तकछतस्तर तक तथा काम पूरा होने पर कार्य के स्थल पर जाकर निरीक्षण करना। 

(14) कमजोर निर्माण कार्य करने अथवा नमूनों के अनुसार निर्माण कार्य नहीं करने के मामले मेंनिर्देशजारी करना। 

(15) किष्तों के समय पर भुगतान के लिए उपयोजन प्रमाण – पत्र समय पर जारी करना। 

(16) कार्य पूरा होने से एक माह के भीतर पूर्णता प्रमाण – पत्र जारी करना तथा एक लाख तक के निर्माण कार्य के लिए विकास अधिकारी को/दो लाख तक के लिए सहायक अभियन्ता को/तथा 5 लाख तक के निर्माण कार्यो के लिए अधिषासी अभियन्ता को प्रति हस्ताक्षरों के लिए प्रस्तुत करना। 

(17) कार्याे का भुगतान करने हेतु सभी सोमवार एवं बृहस्पतिवार को मुख्य कार्यालय पर रहना। 

(18) ग्रामीण तरवासोकपिटरोंस्कूलों में मूत्रालयों एवं ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत अन्य मदों के निर्माण के लिए तथा स्थानीय चुनाई करने वालों का तकनीकी प्रशिक्षण एवं मर्गदर्षन देगा। 

(19) विकास अधिकारी के नाम निर्देषिती के रूप में गा्रम सभा की मीटिंगों में भाग लेगा तथा नियम 5  8 में समनुदिष्ट कर्त्तव्यों को निष्पादित करेगा। 

(20) समय – समय पर विकास अधिकारी/सहायक अभियन्ता/अधिषासी अभियन्ता/पंचायत समिति/राज्य सरकारद्वारा आवंटित समस्त अन्य कार्यो को निष्पादित करेगा। प्रशिक्षण एवं प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशरपाठ्यक्रम 

347. प्रशिक्षण कार्यक्रम / प्रत्यास्मरण कार्यक्रम – (1) ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग मानव संसाधन विकास के लिए विशेष प्रयत्न करेंगे तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा कर्मचारियों के लिए जिसमें ग्राम सेवक – कम – सचिवकनिष्ठ लेखाकारों एवं कनिष्ठ अभियन्ताओं के लिए प्रशिक्षण माडयूल तैयार करेंगे। 

(2) प्रधानों एवं प्रमुखों के लिए इन्दिरा गांधी पंचायती राज संस्थानजयपुर में अल्पकालिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी तथा सरपंचो/पंचायत समिति/जिला परिषद् के सदस्यों के लिए जिला परिषदों द्वारा जिला स्तर पर पाठयक्रमों की व्यस्था की जायेगी। महिला सरपंचों एवं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जाति/अन्य पिछड़े वर्गो के प्रथम बार निर्वाचित सरपंचों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमवर्कशॉप आयोजित करने की व्यवस्था की जायेगी। 

(3) पंचायत समिति स्तर पर या स्वयं सेवी संगठनों के मार्फत पंचों के लिए प्रत्यास्मरण (रिफ्रेशरपाठयक्रमों के लिए व्यवस्था की जायेगी। 

(4) ग्राम सेवक प्रशिक्षणकेन्द्रग्राम सेवक – एवं – सचिवों के लिए छह माह के परिचय पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जायेगी। 

(5)  प्रत्येक ग्राम सेवक – कम – सचिव को तीन वर्ष में कम से कम एक बार 7 दिनों का प्रत्यास्मरण पाठ्यक्रम प्राप्त करना होगा। 

(6)  कनिष्ठ अभियन्ताओ/कनिष्ठ लेखाकारों को भी लेखा एवं इंजीनियरिंग स्टाफ वाले ग्राम सेवक प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षण देने की 

व्यवस्था की जायेगी। 

(7)  पाठ्यक्रम से सन्तुष्टि प्रबन्धकीय कार्य होने चाहिए तथा उसकी प्रकृति तकनीकी/कार्यात्मक रूप में शामिल होनी चाहिए। वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवदेन 

348.   विकास अधिकारी एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रधान प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कार्य निष्पादन के बारे में मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ेएक प्रतिवेदन भेजेगा जो विकास अधिकारी के कार्य पर रिपोर्ट लिखेगा तथा प्रधान से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ पुनरावलोकन के लिए कलक्टर को भेजेगा। कलक्टर अपनी अभ्युक्ति लिखने के बाद उसे निदेशकग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के पास उसको स्वीकार करने के लिए भेजेगा। 

(2)  प्रमुख प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्त में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वर्ष कार्य निष्पादन के बारे में निदेशकगा्रमीण विकास एवं पंचायती राज विभाग को एक प्रतिवेदन भेजेगा जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी के कार्य अपनी रिपोर्ट लिखेगा तथा जिला प्रमुख से उसे प्राप्त प्रतिवेदन के साथ विकास आयुक्त को पुरावलोकन हेतु भेजेगा। 

(3)  ये प्रतिवेदन अन्ततः राजस्थान प्रषासनिक सेवा के अधिकारियों के मामले में कार्मिक विभाग में तथा अन्य मामलों में सम्बन्धित विभागाध्यक्षों के पास जमा किये जायेंगे। 

349.   अन्य अधिकारियों के वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदनों को तैयार करना –  अन्य अधिकारियों के सम्बन्ध में वार्षिक कार्य निष्पादन मूल्यांकन प्रतिवेदन निम्न प्रकार भरे जाएंगें –  

 

क्र 

सं        अधिकारी जिसका प्रतिवेदन लिया गया प्रतिवेदन लिखने वाला अधिकारी पुनरावलोकन – कर्ता 

अधिकारी       स्वीकार करने वाला अधिकारी 

1        सहायक अभियन्ता जिला परिषद     मुख्य कार्यकारी अधिकारी           कलक्टर        निदेशक ग्रामीण विकास 

2        सहायक सचिव जिला परिषद          मुख्य कार्यकारी अधिकारी           निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

3        कनिष्ट अभियन्ता       विकास अधिकारी      मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सहायक अभियन्ता के

अभिमत के साथ)      निदेशक ग्रामीण विकास 

4        पंचायत प्रसार अघिकारीपंचायत समितिद्ध           विकास अधिकारी       मुख्य कार्यकारी अधिकारी (

          निदेशक ग्रामीण विकास 

5        पंचायत प्रसार अघिकारीजिला परिषद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी       निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

6        पंचायत प्रसार अघिकारी ;कलेक्टर कार्यालयद्,      कलक्टर           निदेशक ग्रामीण विकास       विकास आयुक्त 

7        अन्य प्रसार अघिकारी           विकास अधिकारी      मुख्य कार्यकारी अधिकारी  निदेशक ग्रामीण विकास 

8        जिला शिक्षा अघिकारी ;जिला परिषद,         मुख्य कार्यकारी अधिकारी       अपर निदेशक  (ग्रामीण

शिक्षा विभाग   निदेशक ग्रामीण विकास 

9        वरिष्ठ उप जिला शिक्षा अधिकारी/  उप जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी (जिला परिषदमुख्य कार्यकारी अधिकारी       निदेशक ग्रामीण विकास 

10      लेखा अधिकारीसहायक 

लेखा अधिकारी         मुख्य कार्यकारी अधिकारी    मुख्य लेखा अधिकारी   

(निदेशक ग्रामीण विकास कार्यालय)           निदेशक ग्रामीण विकास 

जिला आयोजन समिति 

350.   जिला आयोजन समिति के सदस्य –  (1) अधिनियम की धारा 121 में प्रकल्पित किये गये अनसु ारजिला आयोजन समिति में कुल मिलाकर 25 सदस्य होंगे जिसमें से 20 सदस्य जिला परिषद् एवं नगरपालिका निकायों के निर्वाचित सदस्यों में से उनके द्वारा जिले में ग्रामीण क्षेत्रों एवं नगरीय आबादी के अनुपात में निर्वाचित किये जायेंगे। 

(2)  पाँच नाम निर्देशित सदस्य निम्न प्रकार होंगे –  

(जिला कलक्टर 

(अपर कलक्टरजिला ग्रामीण विकास एजेन्सी

()  मुख्य कार्यकारी अधिकारीजिला परिषद् 

()  सांसदोविधायकों या राज्य सरकार द्वारा नामनिर्देषित स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों में से दो सदस्य। 

351.   सदस्यों का निर्वाचन – (1) चयन की प्रक्रिया वही होगी जो जिला परषिद् की स्थायी समिति के सदस्यों के निर्वाचन के लिए विहित की गई है। 

(2) सदस्यों के निर्वाचन हेतु ऐसी बैठक की अध्यक्षता मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सहायता से कलक्टर या उसके द्वारा नामंाकित अधिकारी जो अतिरिक्त कलक्टर से नीचे का  हो द्वारा की जायेगी। 

352.   जिला आयेाजन समिति की शक्तियॉं एवं कार्य – (1) मुख्य कार्य जिले की पंचायत समितियों एवं नगरपालिका निकायों द्वारा विहित वार्षिक आयोजनाओं को समेकित करगी होनी।  

(2) अधिनियम की धारा 121 की उपधारा (7) में दियेगये अनुसार सामान्य हित के मुद्दों पर विचार करेगी। 

(3)  जिला योजना को राज्य सरकार के पास भेजेगी। 

(4)  मुख्य आयोजना अधिकारी समिति के सदस्य के रूप मंे कार्य करेगा। वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन 

353.   पंचायतों का वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन – (1) प्रत्येक पंचायत सरपंच प्रत्येक वर्ष 20 अप्रेल तक ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में पंचायत का वार्षिक प्रतिवेदन विहित प्रपत्र संख्या 45 में तैयार करायेगा जो पंचायत की मीटिंग के सामने रखा जायेगा एवं उसके द्वारा स्वीकार किया जायेगा तथा इसके बाद सम्बन्धित पंचायत समिति को भ्ेाजा जायेगा। इसमें वर्ष के दौरान पंचायत की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों पर एक टिप्पण भी दिया होगा। 

(1) प्रत्येक पंचायत का सरपंच प्रत्येक वित्तीय वर्ष की 20 अप्रैल तक संबंधित पंचायत के भामा शाह कार्ड धारकों की सूची प्रकाशित करेगा।,

   (2) पंचायत समिति अपने अधिकार क्षेत्र की समस्त पंचायतांे को प्रतिवेदनों की जांच करने के बादउसके सम्बन्ध में एक वर्णनात्मक       रूप में समेकित रिपोर्ट तैयार कराएगी एवं उसे उस पर अपने विचारों के साथ मुख्य कार्यकारी अधिकारी को उक्त वर्ष की 15 जून तक भेज देगी। 

354.   पंचायत समिति/जिला परिषद् द्वारा वार्षिक प्रशासनिक प्रतिवेदन तैयार करना – (1) प्रत्येक पंचायत समिति/जिला परिषद् यथाशक्य शीघ्र वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद प्रपत्र संख्या 46 में उसके प्रषासन पर एक प्रतिवेदन तैयार करेगी। 

(2) जिला परिषद् पंचायतों/पंचायत समितियों से प्राप्त प्रतिवेदनों का पुनरावलोकन करेगी तथा यदि किसी समयऐसे पुनरावलोकन के परिणामस्वरूप यह ऐसा प्रकट करती हो कि किसी पंचायत या पंचायत समिति का कार्य सन्तोषजनक नहीं रहा हैतो जिला परिषद् अपने संकल्प की एक प्रति सम्बन्धित पंचायत समिति को भेजेगी। 

(3) जिला परिषद् प्रतिवेदन को राज्य सरकार के पास उसके विचारार्थ प्रस्तुत करेगी। 

355.   प्रतिवेदन का प्रकाशन – राज्यसरकार आम जनता की सूचनाहेतु उसके ऐसे भागों का या ऐसे उद्धरणों को या उसके ऐसे सारांश को जिसे वह आवश्यकसमझेगीछपवाएगी। पंचायती राज संस्थाओं को प्रोत्साहन अनुदान 

356.   अवार्ड  – (1) कर एवं कर – भिन्न राजस्व वसूल करने, 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत भौतिक लक्ष्यों का ेप्राप्त करनेगरीबी उन्मूलन एवं रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रमोंसामुदायिक कार्यो में जन सहयोग तथा कार्यो एवंसेवा के ऐसे अन्य क्षेत्रों में तत्प्रयोजनार्थ राज्य स्तरीय समिति द्वारा निर्धारित किए जायेंगेसे सम्बन्धित उनके कार्य निष्पादन के आधार पर सर्वोत्तम पंचायती राज संस्थाओं को नकद अवार्ड स्वीकार किये जायेंगें 

(2) सबसे श्रेष्ठ पंचायत का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित एक समिति द्वारा जिला स्तरपर किया जायेगा। समिति ऐसी पंचायतों के लिए सिफारिश करेगी जो विकास कार्यो के लिए निम्न प्रकार के प्रोत्साहन अनुदान प्राप्त करेगी 

1.       2.00 लाख रुपये 

2.       1.00 लाख रुपये 

3.       0.50 लाख रुपये 

(3) सर्वश्रेष्ठ पंचायत समिति का अधिनिर्णय संभाग स्तर पर गठित एक समिति द्वारा किया जायेगा। वे विकास कार्यो के लिए प्रोत्साहन अनुदान निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –  

1.       5.00 लाख रुपये 

2.       3.00 लाख रुपये 

3.       2.00 लाख रुपये  

(4) सर्वश्रेष्ठ जिला परिषद् का निर्णय तत्प्रयोजनार्थ गठित राज्य स्तरीय समिति द्वारा किया जायेगा। वे नकद अवार्ड निम्न प्रकार प्राप्त करेंगे –  

1.       8.00 लाख रुपये  

2.       5.00 लाख रुपये 

3.       2.00 लाख रुपये सेवा संघों को मान्यता देना 

357.   सेवा संघों की परिभाषा – (1) सेवा संघ राजस्थान पंचायत समिति एवं जिला परिषद् सेवा कर्मचारियों के कतिपय संवर्गो की एक यूनियन है जो उसके सदस्यों के सामान्य सेवा हितों को प्रोन्नत करने के लिए गठित की गई है। 

(2) ऐसे संघों का गठन अधिनियम की धारा89 की उप – धारा (2) में सम्मिलित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों या कर्मचारियेां द्वारा किया जा सकेगा। 

358.   संघों की मान्यता के लिए आवेदन – पत्र –  मान्यता प्राप्त करने का इच्छुक कोई भी संघविहित प्रपत्र 47 में पंजीयन प्रमाण – पत्रउप – विधियों की तीन प्रतियोंकार्यकारिणी के सदस्यांे की सूचीसंवर्गवार सदस्यों के विस्तृत विवरण एवं चाही गई अन्य सूचना को साथ लगाकरआवेदन करेगा। 

359.   मान्यता देने के लिए शर्ते – मान्यतानिदेशक  ग्रामीण  विकास द्वारा निम्नलिखित शर्तांे के अध्यधीन रहते हुए प्रदान की जायेगी –  (1) सभी वांछित विवरण आवेदन – पत्र के साथ प्रस्तुत कर दिये गये हैं।  

(2)  सदस्यता केवल सेवा के कुछ कर्मचारियों तक ही सीमित है। 

(3)  संघ का गठन कर्मचारियों के सामान्य हितों को प्रोन्नत करने के उद्वेष्य से किया गया है। इसका गठन किसी जाति या जन जाति के आधार पर नहीं किया गया है और  ही किन्हीं धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर गठित किसी ग्रुप के रूप में किया गया है। 

(4)  कार्यकारिणी के सदस्य इस संध के सदस्य हैं। 

(5)  संघ के कोष का गठन सदस्यों के अभिदान से किया गया है। 

(6)  उस संवर्ग के कम से कम 35प्रतिशत कर्मचारी उस संघ के सदस्य हैं। 

360.   मान्यता प्राप्त संघ द्वारा पालन की जाने वाली शर्ते – मान्यता प्राप्त संघ निम्नलिखित शर्तो से बाध्य होंगी –  

(1) मान्यता प्राप्त संघ व्यक्तिगत मामलों के लिए प्रतिनिधि मण्ड़ल (ड़ेलीगेशननहीं भेजेगा लेकिन सदस्यों के सामान्य हितों को ही उठायेगा। 

(2)  वह किसी एक कर्मचारी से सम्बन्धित मामले का समर्थन नहीं करेगा। 

(3) वह कोई भी राजनीतिक फण्ड़ नहीं रखेगाऔर  ही वह किसी राजनीतिक दल की विचाराधारा का प्रचार करेगा। 

(4)  प्रत्येक वर्ष की एक जुलाई से पूर्व पदाधिकारियांे की एक सूची तथा लेखों का लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।

(5)  सभी अभ्यावेदन सचिव या विभागाध्यक्ष को ही सम्बोधित किए जायेंगे। 

(6)  राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नियमोंध्उप – विधियों में कोई संषोधन नहीं किया जायेगा। 

(7)  किसी अन्य संघध्महासंघ की सदस्यता भी राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना प्राप्त नहीं की जायेगी। 

(8)  संघ का कोई भी सदस्य किसी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो वर्गीकरणनियंत्रण एवं अपील नियम, 1958 के अन्तर्गत दण्ड़नीय हो। 

(9)  वह किसी विदेषी एजेन्सी के साथ पत्र – व्यवहार नहीं करेगा। 

(10) इसके पदाधिकारियों में से कोई भी व्यक्ति सरकारी कर्मचारियों के साथ अपमानजनक या अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। 

(11) वह संसदविधान सभा या स्थानीय निकायों के लिए किसी निर्वाचन में निम्न कार्य कर भाग नहीं लेगा –  (चुनाव व्यय में अंशदान करके

(ऐसे चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी का समर्थन करके

(ंग)  किसी अभ्यर्थी के चुनाव में सहायता करके। 

(12) वह किसी राजनीतिक आंदोलन में लगे किसी राजनीतिक संगठन के साथ सम्बद्व नहीं किया जायेगा। 

(13) उसे किसी व्यावसायिक यूनियन से सम्बद्व नहीं किया जायेगा या उस रूप में पंजीकृत नहीं किया जायेगा। 

361.   विवादों का निपटारा – केवल मान्यता प्राप्त संघ को अपने सदस्यों के विवादों के बारे में बातचीत करने का अधिकार होगा। प्रक्रिया इस प्रकार होगी –  

(1) सभी शिकायतों का निपटारा पत्राचार के द्वारा या विधि विरूद्व साधनों का सहारा लिये बिना निदेशक , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज के साथ बात कर किया जायेगा। 

(2) विवाद के मामले मेंउसे विभागाध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित संयुक्त परामर्श दात्री समिति के पास भेजा जायेगा। संघ उस समिति की सिफाारिषों को मानने के लिए बाध्य होगा। 

362.   सूचना की मॉंग करना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग संघ से कोई भी सूचना यह जांच करने के लिए मॉंग सकेगा कि नियम 359  360 में दी गई शर्तो का पालन किया गया है। 

363.   एक संवर्ग के लिए किसी एक संघ को मान्यता देना – (1) मान्यता एक संवर्ग के केवल एक संघ को ही दी जायेगी। 

(2) यदि कोई अन्य संघ भी बाद में उसी संवर्ग के कर्मचारियों के लिए मान्यता देने हेतु आवेदन करेगा तो पूर्व यूनियन को मान्यता दिये जाने की तारीख से एक वर्ष तक उस आवेदन पर विचार नहीं किया जायेगा। 

(3) ऐसी अवधि के बादप्रत्येक मामले के गुणावगुण के आधार पर मान्यता को जारी रखा जा सकेगा या वापस लिया जा सकेगा। 

364.   महासंघ की सदस्यता – (1) मान्यता प्राप्त संघ उसी महासंघ की सदस्यता में शामिल हो सकता है जो राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। 

(2) महासंघ का उद्वेष्य भी सदस्यों में सद्इच्छा एवं सहयोग की भावना को विकसित करने का होगा। 

(3) महासंघ व्यक्तिगत विवादों को नहीं उठायेगा अपितु सामान्य हितों के मामलों पर बातचीत करेगा। 

365.   मान्यता वापस लेना – ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग सुनवाई का अवसर देने के बाद ऐसी मान्यता को वापस ले लेगा

यदि –  

(1) संघ ने नियम 359 एवं 360 के उपबन्धों का उल्लंघन किया हैया  

(2) मान्यता मिथ्यानिरूपण या कपट द्वारा प्राप्त की गयी है या वह दोषपूर्ण ढंग से दी गई हैया 

(3) उसने इन नियमों के अन्तर्गत किसी ऐसी अन्य शर्त का उल्लंघन किया है। 

366.   शर्तों में शिथिलता देना – विभाग सद् एवं पर्याप्त कारणों से कुछ शर्तों को षिथिल करने में सक्षम होगा। 

367.   अभिलेखों का नाशन – पंचायती राज संस्था की निम्नलिखित पंजिकाओंपुस्तिकाओं एवं कागजातों को उनके सामने विनिर्दिष्ट की गई अवधि के बीत जाने परनष्ट किया जायेगा। यह अवधि उनको बन्द करने या अन्तिम निपटारा किये जाने के तारीख से गिनी जायेगी –  

(iप्रतिपड़त रसीद बुकें – तीन वर्ष 

(iiकरों एवं अन्य बकायों की मॉंग  वसूली को दर्शाने वाली पजिकायें – पांच वर्ष 

(iiiपत्राचार की पंजिकाएॅं – तीन वर्ष   

(ivनिरीक्षण पुस्तिका – तीन वर्ष 

(vपंचायतों की कार्य प्रणाली पर वार्षिक प्रतिवेदन – पांच वर्ष 

(viअभिलेखों की नकलों के लिए आवेदन – पत्र – एक वर्ष 

(viiअभिलेखों के निरीक्षण हेतु आवेदन – पत्र          

(viiiअध्यक्षों एवं सदस्यों द्वारा ली गई शपथ के प्रपत्र – एक वर्ष 

   तथा निर्वाचन से सम्बन्धित अन्य कागजात – चार वर्ष 

(ixलेखा परीक्षा प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष 

(xगबन से सम्बन्धित प्रतिवेदन – पन्द्रह वर्ष 

(xiसेवा पुस्तिका एवं चरित्र पंजी का सम्बन्धित व्यक्ति की सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद 

(xiiआय एवं व्यय के वार्षिक अनुमान – तीन वर्ष 

(xiiiवाऊचर एवं बिल लेखा परीक्षा किए जाने के – तीन वर्ष बाद 

(xivप्रतिभूति उनके प्रभावषाली  रहने से – एक वर्ष बाद 

(xvअन्य विविध कागजात – तीन वर्ष 

 

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