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Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 3 Panchayati Raj Institutions) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 3 पंचायती राज संस्थाएं)

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 3 Panchayati Raj Institutions) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 3 पंचायती राज संस्थाएं)
Rajasthan Panchayati Raj Act 1994
Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 3 Panchayati Raj Institutions) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 3 पंचायती राज संस्थाएं)

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi

Chapter 3 Panchayati Raj Institutions

राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994

अध्याय-3
पंचायती राज संस्थाएँ

9. पंचायत की स्थापना – (1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा तत्समय किसी भी विधि के अधीन गठित किसी नगरपालिका या किसी छावनी बोर्ड में सम्मिलित नहीं गये किसी गाँव या गाँवों के किसी समूह को समाविष्ट करने वाले किसी भी स्थानीय क्षेत्र को पंचायत सर्किल घोषित कर सकेगी और इस रूप में घोषित किये गये प्रत्येक स्थानीय क्षेत्र के लिए एक पंचायत होगी।

(2) प्रत्येक पंचायत, राजपत्र में अधिसूचित नाम से एक निगमित निकाय होगी जिसका शास उत्तराधिकार और सामान्य मुहर होगी तथा इस अधिनियम या किसी भी अन्य विधि के द्वारा या अर्थ अधिरोपित किन्हीं भी निर्बन्धों और शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, उसे क्रय, दान द्वारा या अन्य स्थावर और जंगम दोनों ही प्रकार की संपत्ति अर्जित, धारित, प्रशासित और अंतरित करने तथा कभी संविदा करने की शक्ति होगी और उक्त नाम से वह वाद चलायेगी और उस पर वाद चलाया जाएगा।

(3) राज्य सरकार या तो स्वप्रेरणा से या पंचायत के या पंचायत सर्किल के निवासियों के निवेदन पर, विहित रीति से प्रकाशित एक मास के नोटिस के पश्चात् किसी भी समय, और राजपत्र में अधिसूचन द्वारा, ऐसी किसी भी पंचायत का नाम *[ या कार्यालय का स्थान ] परिवर्तित कर सकेगी।

*[राजस्थान अधिनियम सं.9 (2000) द्वारा अन्त स्थापित तथा राज, राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 03-05-2000 को प्रकाशित तथा 06-01-2000 से प्रभावी।]

10. पंचायत समिति की स्थापना – (1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक ही जिले के भीतर के किसी भी स्थानीय क्षेत्र को एक खण्ड के रूप में घोषित कर सकेगी और इस रूप में घोषित प्रत्येक खण्ड के लिए एक पंचायत समिति होगी जो इस अधिनियम में यथा उपबंधित के सिवाय, खण्ड के ऐसे प्रभागों को अपवर्जित करते हुए, जो तत्समय प्रवृत्त किसी भी विधि के अधीन गठित किसी नगरपालिका या किसी छावनी बोर्ड में सम्मिलित किये गये हैं, सम्पूर्ण खण्ड पर अधिकारिता रखेगी:

परन्तु कोई पंचायत समिति, पंचायत समिति के अपवर्जित प्रभाग के भीतर समाविष्ट किसी भी क्षेत्र में अपना कार्यालय रख सकेगी।

(2) प्रत्येक पंचायत समिति राजपत्र में अधिसूचित नाम से एक निगमित निकाय होगी जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुहर होगी तथा इस अधिनियम या किसी भी अन्य विधि के द्वारा या अधीन अधिरोपित किन्हीं भी निर्वन्धनों और शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, उसे क्रय दान द्वारा याअन्यथा, जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित धारित प्रशासित और अन्तरित करने तथा कोई भी संविदा करने की शक्ति होगी और उक्त नाम से यह बाद चलायेगी और उस पर बाद चलाया जायेगा।

(3) राज्य सरकार या तो स्वप्रेरणा से या पंचायत समिति के या पंचायत समिति के खण्ड के भीतर के किसी भी क्षेत्र के निवासियों के निवेदन पर विहित रीति से प्रकाशित एक मास के नोटिस के पश्चात् किसी भी समय, और राजपत्र में अधिसूचना द्वारा किसी भी ऐसी पंचायत समिति का नाम या कार्यालय का स्थान परिवर्तित कर सकेगी।

11. जिला परिषद् की स्थापना – (1) प्रत्येक जिले के लिए एक जिला परिषद् होगी जो इस अधिनियम में यथा उपबंधित के सिवाय, जिले के ऐसे प्रभागों को अपवर्जित करते हुए, जो तत्समय प्रवृत्त किसी भी विधि के अधीन गठित किसी नगरपालिका या किसी छावनी बोर्ड में सम्मिलित किये गये है. सम्पूर्ण जिले पर अधिकारि रखेगी:

परन्तु कोई जिला परिषद् जिले के अपवर्जित प्रभाग के भीतर समाविष्ट किसी भी क्षेत्र में अपना कार्यालय रख सकेगी।

(2) प्रत्येक जिला परिषद् उस जिले के नाम से होगी जिसके लिए वह गठित की गई है और, एक निगमित निकाय होगी जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुहर होगी तथा इस अधिनियम या किसी भी अन्य विधि के द्वारा या अधीन अधिरोपित किन्हीं भी निर्बन्धनों और शर्तों के अध्यधीन रहते हुए उसे क्रय दान द्वारा या अन्यथा जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित, धारित, प्रशासित और अन्तरित करने और कोई भी संविदा करने की शक्ति होगी और उक्त नाम से वह वाद चलायेगी और उस पर वाद चलाया जायेगा।

12. पंचायत की संरचना – (किसी पंचायत में-

(क) एक सरपंच और

(ख) इतने वादों से प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंच, जो उपधारा (2) के अधीन अवधारित किये जायें होंगे।

*[(2) राज्य सरकार, ऐसे नियमों के, जो इस निमित्त विरचित किये जायें, अनुसार, प्रत्येक पंचायत सर्किल के लिए पाँच से अन्यून वार्डों की संख्या अवधारित करेगी और ऐसा होने पर पंचायत सर्किल को एकल सदस्य वार्डों में इस प्रकार विभाजित करेगी कि प्रत्येक वार्ड की जनसंख्या, जहाँ तक व्यवहार्य हो, सम्पूर्ण पंचायत सर्किल में समान हो ।]

*[राजस्थान अधिनियम से 17 (2009) संख्या प. 2 (26) विधि/2/2009 दिनांक 11-09-2009 द्वारा उपधारा (2) प्रतिस्थापित राज, राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 13-09-2009 को प्रकाशित।]

*[परन्तुक (विलोपित]

*[राजस्थान अधिनियम सं.9 (2000) द्वारा परन्तु विलोपित राज राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 06-01-2000 में प्रकाशित एवं प्रभावी]

13. पंचायत समिति की संरचना – (1) किसी पंचायत समिति में निम्नलिखित होंगे- (क) इतने प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्षतः निर्वाचित सदस्य जो उपधारा (2) के अधीन अवधारित किये जायें: *[ xxx ]

(ख) ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य विधान सभा के सभी सदस्य जिनमें पंचायत समिति क्षेत्र सम्पूर्णतः या भागतः समाविष्ट है *[और]

*[(ग) पंचायत समिति क्षेत्र के भीतर आने वाली समस्त पंचायतों के अध्यक्षः] परन्तु खण्ड (ख) और (ग) में निर्दिष्ट सदस्यों को प्रधान या उप-प्रधान के निर्वाचन और हटाये जाने के सिवाय, पंचायत समिति की सभी बैठकों में मत देने का अधिकार होगा।]

*[अधिनियम सं. 15/99, सं.प. 2(27) विधि/ 2/ 99 दिनांक 30-09-1999 द्वारा खंड (क) से शब्द “और” हटाया गया तथा राज पत्र भाग 4(क) दिनांक 30-09-1999 में प्रकाशित व दिनांक 28-05-1999 से प्रभावी; खंड (ख) में शब्द “और” जोड़ा गया और परन्तु में शब्द खण्ड (ख) के स्थान पर शब्द (ख) और (ग) प्रतिस्थापित।]

*((2) राज्य सरकार ऐसे नियमों के जो इस निमित्त विरचित किये जाये अनुसार, प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र के लिए पन्द्रह से अन्यून प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या अवधारित करेगी और ऐसा होने पर ऐसे क्षेत्र को एकल सदस्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित करेगी कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या जहाँ तक व्यवहार्य हो, सम्पूर्ण पंचायत समिति क्षेत्र में समान हो।]

परन्तु एक लाख से अधिक की संख्या वाले किसी पंचायत समिति क्षेत्र में पन्द्रह निर्वाचन क्षेत्र होंगे और किसी ऐसे पंचायत समिति क्षेत्र के मामले में, जिसकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है. एक लाख से अधिक के प्रत्येक पन्द्रह हजार या उसके भाग के लिए पन्द्रह की उक्त संख्या में दो की बढ़ोतरी कर दी जायेगी।

*[राजस्थान अधिनियम सं. 17(2009) संख्या प. 2(26) विधि/2/2009 दिनांक 11-09-2009 उपधारा 2 प्रतिस्थापित; राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 11-09-2009 को प्रकाशित ]

[टिप्पणी – पंचायती राज विभाग के पत्र क्रमांक एफ. 15(1) पुनर्गठन /विधि/ पंरावि/ 2019/ 514 दिनांक 12-06-2019 एवं एफ. 15(1) पुनर्गठन / विधि/ पंरावि/ 2019/ 544 दिनांक 19-06-2019 द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों एवं बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर जिलों के लिए ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन हेतु न्यूनतम एवं अधिकतम जनसँख्या क्रमशः 2,500 एवं 5,000 रखे जाने का प्रावधान रखा गया है। इन्हीं क्षेत्रों में पंचायत समितियों के पुनर्गठन हेतु 1,50,000 या अधिक आबादी एवं 40 या 40 से अधिक ग्राम पंचायतों वाली पंचायत समितियों के पुनर्गठन करने एवं पुनर्गठित होने वाली नई पंचायत समितियों में न्यूनतम 20 ग्राम पंचायतों को रखे जाने का प्रावधान किया गया है। शेष क्षेत्र/ जिलों में ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन हेतु न्यूनतम एवं अधिकतम जनसँख्या क्रमशः 4,000 एवं 6,500 रखे जाने का प्रावधान रखा गया है।0 2500 एवं 5000 एवं अधिकतम जनसँख्या क्रमशः 2500 एवं 5000 राखी गई है। इसी प्रकार शेष क्षेत्र/ जिलों में पंचायत समितियों के पुनर्गठन हेतु 2,00,000 या अधिक आबादी वाली एवं 40 या 40 से अधिक ग्राम पंचायतों वाली पंचायत समितियों करने एवं पुनर्गठित होने वाली नई पंचायत समितियों में न्यूनतम 25 ग्राम पंचायतों को रखे जाने का प्रावधान किया गया है।]

14. जिला परिषद् की संरचना – (1) किसी जिला परिषद् में निम्नलिखित होंगे- (क) इतने प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्षतः निर्वाचित सदस्य, जो उपधारा (2) के अधीन अवधारित किये जायें

(ख) ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा के और राज्य विधानसभा के सभी सदस्य जिनमें जिला परिषद क्षेत्र सम्पूर्णतः या भागतः समाविष्ट है, *[xxx] (ग) जिला परिषद् क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत राज्य सभा के सभी सदस्य, ‘और’

*[(घ) जिला परिषद् क्षेत्र के भीतर आने वाली समस्त पंचायत समितियों के अध्यक्षः]

परन्तु खण्ड (ख), (ग) और (घ) में निर्दिष्ट सदस्यों को प्रमुख या उप-प्रमुख के निर्वाचन और हटाये जाने के सिवाय, जिला परिषद् की सभी बैठकों में मत देने का अधिकार होगा।]

*[अधिनियम सं. 15/99, सं.प. 2(27) विधि/ 2/ 99 दिनांक 30-09-1999 द्वारा धारा 14 की उपधारा (1) के खंड (ख) से शब्द “और” हटाया गया, खंड (ग) में शब्द “और” प्रतिस्थापित, नया खंड (घ) जोड़ा गया तथा विद्यमान परन्तुक में शब्द खण्ड (ख) के स्थान पर शब्द (ख), (ग)और (घ) प्रतिस्थापित। राज पत्र भाग 4(क) दिनांक 30-09-1999 में प्रकाशित व दिनांक 28-05-1999 से प्रभावी।]

*[(2) राज्य सरकार, ऐसे नियमों के जो इस निमित्त विरचित किये जायें, अनुसार, प्रत्येक जिला परिषद् के लिए सत्रह से अन्यून प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या अवधारित करेगी और ऐसा होने पर ऐसे क्षेत्र को एकल सदस्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित करेगी कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या, जहाँ तक व्यवहार्य हो, सम्पूर्ण जिला परिषद् क्षेत्र में समान हो।]

परन्तु चार लाख तक की जनसंख्या वाले किसी जिला परिषद् क्षेत्र में सत्रह निर्वाचन क्षेत्र होंगे और किसी ऐसे जिला परिषद् क्षेत्र के मामले में जिसकी जनसंख्या चार लाख से अधिक है, चार लाख से अधिक के प्रत्येक एक लाख या उसके भाग के लिए, सत्रह की उक्त संख्या में दो की बढ़ोतरी कर दी जायेगी।

*[राजस्थान अधिनियम सं. 17 (2009) संख्या प. 2(26) विधि/2/2009 दिनांक 11-09-2009 द्वारा उपधारा (2) प्रतिस्थापित, राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 11-09-2009 को प्रकाशित]

*[15. स्थानों का आरक्षण”- [(1) किसी पंचायती राज संस्था में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थान-

(क) अनुसूचित जातियों,

(ख) अनुसूचित जनजातियों और

(ग) पिछड़े वर्गों-

तथा महिलाओं के लिए उत्तरवर्ती उप-धाराओं में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार आरक्षित किये जायेंगे।

(2) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का किसी पंचायती राज संस्था में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के साथ यथाशक्य निकटतम वही अनुपात होगा जो उस पंचायती राज संस्था क्षेत्र में ऐसी जातियों या यथास्थिति, जनजातियों की जनसंख्या का उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या के साथ है।

(3) प्रत्येक स्तर पर पंचायती राज संस्था में स्थानों का **[इक्कीस] से अनधिक इतना प्रतिशत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जायेगा जितना संबंधित जिले में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सम्मिलित ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत उस जिले की कुल ग्रामीण जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम पड़ता है :

परन्तु जहाँ सम्बन्धित जिले में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सम्मिलित ग्रामीण जनसंख्या उस जिले की कुल ग्रामीण जनसंख्या के सत्तर प्रतिशत से अधिक नहीं है वहाँ प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक पंचायती राज संस्था में कम से कम एक स्थान पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जायेगा।

(4) पूर्ववर्ती उप-धाराओं में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार आरक्षित स्थान सम्बन्धित पंचायती राज संस्था में विभिन्न वार्डों या यथास्थिति, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चक्रानुक्रम द्वारा आवंटित किये जा सकेंगे।]

*[1994 के अधिनियम सं. 23 द्वारा विद्यमान उप-धारा (1) के स्थान पर नई उप-धारा (1) से (4) प्रतिस्थापित की गई तथा विद्यमान उपधारा (2) व (3) को क्रमश (5) व (6) पुनः संख्यांकित किया गया। इस प्रकार उप-धारा (5) में शब्द “उप-धारा (1) के स्थान पर उप-धारा (2) और (3) प्रतिस्थापित तथा राजस्थान राजपत्र विशेष भाग 4(क) दिनांक 6-10-94 पृष्ठ 317-320 पर प्रकाशित]

**[राजस्थान अधिनियम सं9 (2000) द्वारा पन्द्रह के स्थान पर प्रतिस्थापित, राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 03-05-2000 को प्रकाशित एवं 25-10-1999 से प्रभावी]

(5) उप-धारा (2) और (3) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के *[आधे]’ से अन्यून स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या यथास्थिति, पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित किये जायेंगे।

(6) प्रत्येक पंचायती राज संस्था में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के *[आधे] से अन्यून स्थान (जिसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या सम्मिलित है) महिलाओं के लिए आरक्षित किये जायेंगे। और ऐसे स्थान सम्बन्धित पंचायती राज संस्था में विभिन्न वार्डों या, यथास्थिति, निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चक्रानुक्रम द्वारा ऐसी रीति से आवंटित किये जायेंगे, जो विहित की जाये।

*[राजस्थान अधिनियम सं. 14/2008 द्वारा एक तिहाई के स्थान पर प्रतिस्थापित। राज राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 11-4-2008 को प्रकाशित एवं तुरन्त प्रभावशील]

*[आदेश]

‘डी.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 15303/2009 में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 7-12-2009 ” In any case horizontal reservation should not exceed to more than 50%” की पालना में महिलाओं के आरक्षण में निम्न प्रक्रिया अपनाई जायें-

(1) महिलाओं का आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होने की स्थिति में जहाँ संगणित स्थानों (वा) या संगणित पदों की संख्या का भागरूप यदि कोई भिन्न (फ्रेक्शन) हो तो उसे छोड़ दिया जावें, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जावे कि इस प्रकार गणना में प्राप्त आरक्षित वार्डों/पदों की संख्या तथा कुल पदों की उस संख्या जिसमें से महिलाओं के लिए आरक्षण किया जाना है के 1/2 भाग की संख्या इन दोनों संख्याओं में अन्तर इस गणना के लिए छोड़े गये फ्रेक्शन से अधिक का नहीं हो अर्थात् बाडौं/पदों की कुल संख्या 5 होने पर महिलाओं के लिए आरक्षित वाडों पदों की संख्या 2 से कम, 7 होने पर 3 से कम, 9 होने पर 4 से कम, 11 होने पर 5 से कम नहीं होगी।

(2) कतिपय स्थानों पर युवाओं के लिए विशेष योग्यता सम्बन्धी धारा 19क के प्रावधानों को फिलहाल स्थगित रखा जायें।

*[क्रमांक एफ. 15(1) परावि /विधि /निर्वाचन/09 /4354 दिनांक 17.12 .2009]

*[16. अध्यक्षों के पदों का आरक्षण] – (1) सरपंचों, प्रधानों और प्रमुखों के पद- (क) अनुसूचित जातियों (ख) अनुसूचित जनजातियों और (ग) पिछड़े वर्गों तथा महिलाओं के लिए उत्तरवर्ती उप-धाराओं में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार आरक्षित किये जायेंगे।

*[राजस्थान अधिनियम संख्या 23/1994 द्वारा धारा 16′ प्रतिस्थापित तथा 23-7-1994 से प्रभावी।]

(2) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए इस प्रकार आरक्षित ऐसे पदों में से प्रत्येक की संख्या का राज्य में ऐसे पदों में से प्रत्येक की कुल संख्या के साथ यथाशक्य निकटतम वही अनुपात होगा जो राज्य में की ऐसी जातियों या यथास्थिति, जन-जातियों की जनसंख्या का राज्य की कुल जनसंख्या के साथ है।

(3) किसी पंचायत समिति या यथास्थिति, जिला परिषद् में सरपंच या प्रधान के पदों का *[इक्कीस] से अनधिक इतना प्रतिशत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जायेगा जितना उस पंचायत समिति या जिला परिषद् क्षेत्र में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सम्मिलित जनसंख्या का प्रतिशत ऐसी पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् क्षेत्र की कुल जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम पड़ता है:

परन्तु जहां पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् क्षेत्र की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सम्मिलित जनसंख्या उस पंचायत समिति या जिला परिषद् की कुल जनसंख्या के सत्तर प्रतिशत से अधिक नहीं है वहां उस पंचायत समिति या जिला परिषद् में सरपंच या प्रधान का कम से कम एक पद पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जायेगा।

(4) राज्य में प्रमुख के पदों की कुल संख्या का *[इक्कीस] प्रतिशत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जायेगा।

*[राजस्थान अधिनियम सं. 9(2000) से संशोधित एवं राज राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं 25-10-1999 से प्रभावी]

(5) राज्य में सरपंचों, प्रधानों और प्रमुखों के पदों की कुल संख्या का *[आधे] से अन्यून महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।

*[संख्या प. 2(26) विधि/2/2008 दिनांक 11-4-2008 राज अधि. सं. 14 (2008) से ‘एक तिहाई’ के स्थान पर प्रतिस्थापित एवं राज. राज-पत्र भाग 4(क) दिनांक 11-4-2008 को प्रकाशित एवं तुरन्त प्रभावी]

(6) इस धारा के अधीन आरक्षित पद राज्य में विभिन्न पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के चक्रानुक्रम द्वारा ऐसी रीति से आवंटित किये जायेंगे जो विहित की जायें।

स्पष्टीकरण-धारा 15 के अधीन संगणित स्थानों की या इस धारा के अधीन संगणित पदों की संख्या की भागरूप यदि कोई भिन्न हो तो उस स्थिति में, जब वह भिन्न एक स्थान या पद से आधे या उससे अधिक से बनी हो, स्थानों या यथास्थिति, पदों की संख्या को ठीक उच्चतर संख्या तक बढ़ा दिया जायेगा और उस स्थिति में, जब वह एक स्थान या पद के आधे से कम हो, भिन्न को छोड़ दिया जायेगा।

*[17. पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल और निर्वाचन – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था, यदि इस अधिनियम के अधीन पहले विघटित नहीं कर दी जाये तो संबंधित संस्था की प्रथम बैठक की तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी और इससे अधिक नहीं।”

“स्पष्टीकरण. – जिला परिषद् या पंचायत समिति के अध्यक्ष या, यथास्थिति, किसी पंचायत के उप-सरपंच के निर्वाचन के लिए की गयी बैठक संबंधित पंचायती राज संस्था की पहली बैठक समझी जायेगी।”]

*[राजस्थान अधिनियम. 9(2000) द्वारा धारा 7 (1) प्रतिस्थापित एवं स्पष्टीकरण जोड़ा गया. राज, राज-पत्र भाग4(क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं प्रभावी]

(2) पंचायती राज संस्थाओं के सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावलियों की तैयारी का और उनके संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा।

(3) किसी पंचायती राज संस्था का गठन करने के लिए निर्वाचन-

(क) उप-धारा (1) में विनिर्दिष्ट उसके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व और

(ख) विघटन की स्थिति में, उसके विघटन की तारीख से छह मास की कालावधि की समाप्ति के पूर्व पूरा किया जायेगा ।

परन्तु जहाँ कालावधि का ऐसा शेष भाग, जिसके लिए विघटित पंचायती राज संस्था बनी रहती, छह मास से कम का है वहाँ ऐसी कालावधि के लिए पंचायती राज संस्था गठित करने के लिए इस खण्ड के अधीन कोई निर्वाचन करवाना आवश्यक नहीं होगा।

(4) ऐसी कोई पंचायती राज संस्था, जो उसके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व उसके विघटन के फलस्वरूप गठित की गयी हो, कालावधि के केवल ऐसे शेष भाग के लिए बनी रहेगी जिसके लिए उप-धारा (1) के अधीन वह तब बनी रहती यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की गयी होती। (5) राज्य सरकार पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचन सम्बन्धी या उससे संसक्त सभी विषयों, जिनमें निर्वाचक नामावलियों की तैयारी, बाहों या निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन सम्बन्धी विषय सम्मिलित हैं, और ऐसी संस्थाओं के सम्यक् गठन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक अन्य सभी विषयों के सम्बन्ध में समय-समय पर, नियमों द्वारा उपबंध कर सकेगी।

*[18. निर्वाचक और निर्वाचक नामावलियां – (1) ऐसे वाहों या निर्वाचन क्षेत्र में जिनमें किसी पंचायती राज संस्था के क्षेत्र को इस अधिनियम के अधीन विभक्त किया गया है, प्रत्येक के लिए उसकी निर्वाचक नामावली राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा या उसके पर्यवेक्षण के अधीन विहित रीति से तैयार की और रखी जायेगी।

*[राजस्थान अधिनियम से 9 (2000) द्वारा धारा 18′ प्रतिस्थापित एवं राज राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं 27-12-1999 से प्रभावी]

(2) उप धारा (3) से (6) के उपबंधों के अध्यधीन प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो

(क) अर्हता की तारीख को अठारह वर्ष से कम आयु का नहीं है, और

(ख) संबंधित पंचायती राज संस्था के किसी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र का साधारणतया निवासी है,

‘उस वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में रजिस्ट्रीकृत किये जाने का हकदार होगा।

स्पष्टीकरण (1) अर्हता की तारीख से इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक निर्वाचक नामावली की तैयार या पुनरीक्षण के सम्बन्ध में उस वर्ष की जनवरी का पहला दिन अभिप्रेत है जिस वर्ष में वह इस प्रकार तैयार या पुनरीक्षित की जाती है।

(ii) किसी व्यक्ति की बाबत केवल इस कारण कि वह वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में किसी निवास गृह पर स्वामित्व या कब्जा रखता है यह नहीं समझा जायेगा कि वह उस निर्वाचक क्षेत्र में मामूली तौर से निवासी है।

(iii) अपने मामूली निवास स्थान में अपने आपको अस्थायी रूप से अनुपस्थित करने वाले व्यक्ति की बाबत केवल इसी कारण यह नहीं समझा जायेगा कि वह वहां का मामूली तौर से निवासी नहीं रह गया है।

(iv) संसद का या किसी राज्य विधान मण्डल का जो सदस्य ऐसे सदस्य के रूप में अपने निर्वाचन के समय जिस वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचन नामवली में निर्वाचक के रूप में रजिस्ट्रीकृत है उसकी बाबत केवल इसी कारण कि वह ऐसे सदस्य के रूप में अपने कर्त्तव्यों के सम्बन्ध में उस निर्वाचन क्षेत्र से अनुपस्थित रहा है यह नहीं समझा जायेगा कि वह अपनी पदावधि के दौरान उस वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में मामूली तौर से निवासी नहीं रह गया है।

(v) कोई व्यक्ति जो मानसिक रोग या लम्बे उपचार वाली किसी भी अन्य रूग्णता से पीड़ित व्यक्तियों के उपचार के लिए पूर्णत: या मुख्यतः अनुरक्षित किसी स्थापन में का रोगी है या जो अन्य किसी स्थान में कारागार या विधिक अभिरक्षा में निरुद्ध है या अध्ययन के लिए छात्रावास में निवास कर रहा है या छात्रावास आदि में निवास कर रहा है उसके बारे में केवल इसी कारण से यह नहीं समझा जायेगा कि वह वहां मामूली तौर से निवासी है।

(vi) यदि किसी मामले में यह प्रश्न पैदा होता है कि कोई व्यक्ति किसी सुसंगत समय पर वहां का मामूली तौर से निवासी है तो वह प्रश्न मामले के सब सुसंगत तथ्यों के और ऐसे नियमों के अनुसार, जैसे इन निमित बनाये जायें, प्रति निर्देश से अवधारित किया जायेगा।

(3) यदि कोई व्यक्ति-

(क) भारत का नागरिक नहीं है, या

(ख) विकृतचित है और उसके ऐसा होने की सक्षम न्यायालय की घोषणा विद्यमान है, या

(ग) निर्वाचनों के सम्बन्ध में भ्रष्ट आचरणों और अन्य अपराधों से सम्बन्धित किसी भी विधि के उपबंधों के अधीन मतदान करने के लिए तत्समय निरहित हैं, तो वह वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत किये जाने के लिए निरहित होगा।

(4) रजिस्ट्रीकरण के पश्चात् जो कोई व्यक्ति ऐसे निरहित हो जाता है; उसका नाम इस अधिनियम के अधीन तैयार की गयी निर्वाचक नामावली में से तत्काल काट दिया जाएगा:

परन्तु किसी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में से जिस व्यक्ति का नाम उप-धारा (3) के खण्ड (ग) के अधीन निरर्हता के कारण काटा गया है यदि ऐसी निरर्हता उस कालावधि के दौरान, जिसमें ऐसी नामावली प्रवृत्त रहती है, किसी ऐसी विधि के अधीन हटा दी जाती है जो ऐसा हटाना प्राधिकृत करती है तो उस व्यक्ति का नाम तत्काल उसमें पुनः प्रविष्ट कर दिया जाएगा।

(5) राज्य में किसी पंचायती राज संस्था के एक से अधिक वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली में कोई व्यक्ति रजिस्ट्रीकृत किये जाने का हकदार न होगा। (6) किसी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में कोई व्यक्ति एक से अधिक बार रजिस्ट्रीकृत -किये जाने का हकदार न होगा।

*[18क. मिथ्या घोषणा करना यदि कोई व्यक्ति- (क) किसी निर्वाचक नामावली की तैयारी, पुनरीक्षण या शुद्धि के अथवा

(ख) किसी प्रविष्टि के किसी निर्वाचक नामावली में सम्मिलित या उसमें से अपवर्जित किये जाने के सम्बन्ध में ऐसा कथन या घोषणा लिखित रूप में करता है जो मिथ्या है और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है तो वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा।]

*[राजस्थान राज – पत्र भाग-4 दिनांक 26-12-04 के पृष्ठ 65 पर प्रकाशित अधिसूचना सं. एफ 4 (6) विधि / 2 / 94 दिनांक 28-12-94 द्वारा धारा 18 क. व 18 ख अतः स्थापित।]

18ख निर्वाचक नामावलियों की तैयारी आदि से संसक्त पदीय कर्त्तव्यों का भंग- (1) यदि कोई निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी या अन्य व्यक्ति जो किसी निर्वाचक नामावली की तैयारी, पुनरीक्षण या शुद्धि से संसक्त या किसी प्रविष्टि को उस निर्वाचक नामावली में सम्मिलित करने या उससे अपवर्जित करने से संसक्त किसी पदीय कर्त्तव्य के पालन के लिए इस अधिनियम के द्वारा या अधीन अपेक्षित है, ऐसे पदीय कर्तव्य के भंग में किसी कार्य या कार्यलोप का दोषी युक्तियुक्त हेतुक के बिना होगा, तो वह जुर्माने से, *[“ऐसी अवधि के कारावास से, जो तीन मास से कम का नहीं होगा किन्तु जो दो वर्ष तक का हो सकेगा, और जुर्माने से”] दण्डनीय होगा,

(2) पूर्वोक जैसे किसी कार्य या कार्यलोप की बाबत नुकसानी के लिए कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही ऐसे किसी अधिकारी या अन्य व्यक्ति के खिलाफ नहीं होगी।

(3) जब तक कि राज्य निर्वाचन आयोग या मुख्य निर्वाचन अधिकारी या सम्बन्धित कलक्टर के आदेश द्वारा या प्राधिकार के अधीन परिवाद न किया गया हो, कोई भी न्यायालय उपधारा (1) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान नहीं करेगा।

*[18ग मत देने का अधिकार – (1) इस अधिनियम द्वारा अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जो किसी पंचायती राज संस्था के किसी भी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत है, उस वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में मत देने का हकदार होगा,

**[राजस्थान अधिनियम सं.9 (2000) द्वारा धारा 18ख संशोधित एवं धारा 18ग नई प्रतिस्थापित एवं राज. राज-पत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं 27-12-1999 से प्रभावी]

(2) कोई भी व्यक्ति किसी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में किसी निर्वाचन में मत नहीं देगा यदि वह धारा 18 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट किन्हीं भी निरताओं के अध्यधीन है। (3) कोई भी व्यक्ति किसी भी निर्वाचन में एक से अधिक वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में मत नहीं देगा और यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में मत देता है तो ऐसे सभी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्रों में से उसके मत शून्य समझे जायेंगे।

स्पष्टीकरण – पंच या सरपंच या किसी पंचायत समिति के सदस्य या किसी जिला परिषद् के सदस्य के लिए निर्वाचन, जब साथ-साथ कराये जायें, पृथक-पृथक निर्वाचन समझे जायेंगे।

(4) कोई भी व्यक्ति, किसी भी निर्वाचन में इस बात के होने पर भी कि उसका नाम एक ही वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचन नामावली में एक से अधिक बार रजिस्ट्रीकृत कर दिया गया है, उसी वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक बार मत नहीं देगा और यदि वह इस प्रकार मत देता है तो उसके सभी मत शून्य समझे जायेंगे।

(5) कोई भी व्यक्ति, यदि वह चाहे किसी दण्डादेश के अधीन या अन्यथा किसी जेल में परिरुद्ध हो या पुलिस की विधिपूर्ण अभिरक्षा में हो, इस अधिनियम के अधीन किसी भी निर्वाचन में मत नहीं देगा।”

19. किसी पंच या सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अर्हताएँ – किसी पंचायती राज संस्था के मतदाताओं की सूची में मतदाता के रूप में रजिस्ट्रीकृत प्रत्येक व्यक्ति ऐसी पंचायती राज संस्था के पंच या, यथास्थिति, सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अर्हित होगा, यदि ऐसा व्यक्ति

(क) राजस्थान राज्य के विधान मण्डल के निर्वाचन के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी भी विधि द्वारा या उसके अधीन निरर्हित नहीं है परन्तु कोई भी व्यक्ति यदि उसने 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है तो इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि वह 25 वर्ष की आयु से का है;

*[(कक) इस अधिनियम या तद्धीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अधीन और अनुसार फाइल की गयी किसी निर्वाचन याचिका के परिणामस्वरूप किसी सक्षम न्यायालय के आदेश द्वारा भ्रष्ट आचरण का दोषी नहीं पाया गया है ]

(ख) किसी स्थानीय प्राधिकरण *[किसी विश्वविद्यालय या किसी भी ऐसे निगम निकाय, उपक्रम या सहकारी सोसाइटी, जो राज्य सरकार द्वारा या तो नियंत्रित या पूर्णतः या भागतः वित्त पोषित है], के अधीन कोई वैतनिक पूर्णकालिक या अंशकालिक नियुक्ति धारण नहीं करता है:

*[राजस्थान अधिनियम सं. 9 (2000) द्वारा (क) अन्तस्थापित एवं संशोधित एवं राज. राज-पत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं दिनांक 27-12-1999 से प्रभावी।]

(ग) नैतिक अधमता से अन्तर्वलित अवचार के कारण राज्य सरकार की सेवा से पदच्युत नहीं किया गया है और लोक सेवा में नियोजन के लिए निरहित घोषित नहीं किया गया है:

(घ) किसी भी पंचायती राज संस्था के अधीन कोई भी वैतनिक पद या लाभ का पद धारण नहीं करता है?

(ङ) सम्बन्धित पंचायती राज संस्था से उसके द्वारा या उसकी ओर से किसी भी संविदा में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः अपने द्वारा या अपने भागीदार, नियोजक या कर्मचारियों के द्वारा कोई भी अंश या हित, किये गये किसी भी कार्य में ऐसे अंश या हित का स्वामित्व रखते हुए, नहीं रखता है:

**[(च) कार्य के लिए असमर्थ बनाने वाले किसी शारीरिक या मानसिक दोष या रोग से ग्रस्त नहीं है।]

**[राजस्थान पंचायतीराज (संशोधन) अधिनियम, 2018 (2018 का संख्यांक 22) द्वारा खण्ड (घ) प्रतिस्थापित किया गया। राजस्थान राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 4-10-2018 को प्रकाशित एवं प्रभावी।]

***[(छ) किसी भी अपराध के लिए किसी सक्षम न्यायालय द्वारा सिद्धदोष नहीं ठहराया गया है और छह मास या अधिक के कारावास से दण्डादिष्ट नहीं किया गया है, ऐसा दण्डादेश तत्पश्चात् उलट दिया गया हो या उसका परिहार कर दिया गया हो या अपराधी को क्षमा कर दिया गया है ]

***[राजस्थान अधिनियम सं. 9 (2000) द्वारा जोड़े गये एवं राज. राज-पत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं दिनांक 27-12-1999 से प्रभावी]

2 [(छछ) ऐसे किसी सक्षम न्यायालय में विचाराधीन नहीं है जिसने उसके विरुद्ध ऐसे किसी अपराध का, जो पाँच वर्ष या अधिक के कारावास से दण्डनीय हो, संज्ञान ले लिया है और आरोप दिरचित कर दिये हैं: ]

(ज) धारा 38 के अधीन निर्वाचन के लिए तत्समय अपात्र नहीं है:

(झ) सम्बन्धित पंचायती राज संस्था द्वारा अधिरोपित किसी भी कर या फीस की रकम को,

उसके लिए माँग नोटिस प्रस्तुत किये जाने की तारीख से दो मास तक असंदत्त नहीं रखे है;

(ञ) सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की ओर से या उसके विरुद्ध विधि व्यवसायी के रूप में नियोजित नहीं है:

(ट) राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम, 1960 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष नहीं ठहराया गया है, *[विलोपित ]

(ठ) दो से अधिक बच्चों वाला नहीं है *[और]

*[(ड) पूर्व में किसी पंचायती राज संस्था का सभापति/उप-सभापति रहते हुए पंचायती राज संस्था के शोध्यों को जमा कराने के लिए ऐसी तारीख से जबकि ऐसा नोटिस सभापति/उप-सभापति पर तामील किया गया था, दो मास की कालावधि की समाप्ति के पश्चात् भी शोध्य असंदत्त नहीं रखे है और उसका नाम ऐसी पंचायती राज संस्था के निर्वाचन के लिए अधिसूचना जारी होने से कम से कम दो मास पूर्व राज्य सरकार द्वारा कलक्टर (पंचायत) को उपलब्ध करायी गयी ऐसे व्यक्तिकर्मियों की सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है।

*[राजस्थान अधिनियम सं. 9(2000) द्वारा विलोपित तथा जोड़े गये एवं राज. राज-पत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं दिनांक 6-1-2000 से प्रभावी।]

*[(ढ) राज्य की अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किसी स्थान की दशा में, उन जातियों या जनजातियों या यथास्थिति, वर्गों में से किसी का सदस्य है।

(ण) महिलाओं के लिए आरक्षित स्थान की दशा में महिला है:]

(त) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित महिलाओं के लिए आरक्षित किसी स्थान की दशा में, उन जातियों या जनजातियों या यथास्थिति, वर्गों में से किसी का सदस्य है और महिला है: ]

*[राजस्थान अधिनियम (2000) द्वारा खण्ड (ड) (ण) (त) जोड़ा गया राज, राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित एवं प्रभावी।]

*[[(थ) घर में कार्यशील स्वच्छ शौचालय रखता हो और उसके परिवार का कोई भी सदस्य खुले में शौच के लिए नहीं जाता हो **[;]

*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2015 (2015 का संख्यांक 7) द्वारा खण्ड ‘थ’ अन्तःस्थापित किया गया एवं राजस्थान राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 1-4-2015 को प्रकाशित तथा 8-12-2014 से प्रभावी।]

**[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2019 (2019 का संख्यांक 4) द्वारा प्रतिस्थापित। राजस्थान राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 22-2-2019 को प्रकाशित एवं दिनांक 22-2-2019 से प्रभावी।]

*[(द). (ध) एवं (न) विलोपित]

*[राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 2019 (2019 का संख्यांक 4) द्वारा खण्ड (द), (घ) व (न) हटाये गये। राजस्थान राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 22-2-2019 को प्रकाशित एवं प्रभावी दिलोपन से पूर्व खण्ड इस प्रकार थे- (द) जिला परिषद् या पंचायत समिति के सदस्य के मामले में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान या उसके समकक्ष किसी बोर्ड से माध्यमिक विद्यालय परीक्षा उत्तीर्ण हो(घ) किसी अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत समिति के सरपंच के मामले में किसी विद्यालय से कक्षा 5 उत्तीर्ण हो और (न) किसी अनुसूचित क्षेत्र में की पंचायत से भिन्न किसी पंचायत के सरपंच के मामले में किसी विद्यालय से कक्षा उत्तीर्ण हो और] प्रकाशित]

परन्तु –

(i) किसी व्यक्ति को किसी भी निगमित कम्पनी या राजस्थान राज्य में तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी सहकारी सोसाइटी में केवल अंशधारी या उसका सदस्य होने के कारण से कम्पनी या सहकारी सोसाइटी और पंचायती राज संस्था के बीच की गई किसी भी संविदा में हितबद्ध नहीं ठहराया जायेगा:

*[1(क) खण्ड (कक) के प्रयोजनों के लिए कोई व्यक्ति खण्ड (कक) में निर्दिष्ट आदेश की तारीख से छह वर्ष की कालावधि के लिए निरर्हित समझा जायेगा।]

*[राजस्थान अधिनियम सं. 9 (2000) द्वारा जोड़े गये राज, राजपत्र भाग 4(क) दिनांक 3-5-2000 को 27-12-1999 से प्रभावी।

[(ii) खंड (ग), (छ) और (ट) के प्रयोजन के लिए कोई भी व्यक्ति अपनी बर्खास्तगी या दोषसिद्धि की तारीख से छह साल की अवधि के वाद चुनाव के लिए पात्र हो जाएगा, जैसा भी मामला हो;]

(iii) खंड (i) के प्रयोजन के लिए, एक व्यक्ति को अयोग्य नहीं माना जाएगा यदि उसने अपने नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख से पहले कर या शुल्क की राशि का भुगतान कर दिया है;

[(iv) खंड (ठ) के प्रयोजन के लिए, –

(क) इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख जिसे इस परंतुक में इस तरह के प्रारंभ की तारीख के रूप में संदर्भित किया गया है, से 27 नवंबर, 1995 तक अवधि के दौरान,एक अतिरिक्त बच्चे के जन्म पर विचार नहीं किया जाएगा:

(ख) एक व्यक्ति जिसके दो से अधिक बच्चे हैं (इस तरह के प्रारंभ की तारीख से 27 नवंबर, 1995 की अवधि के दौरान पैदा हुए बच्चे को छोड़कर, यदि कोई हो, को छोड़कर) उस खंड के तहत तब तक के लिए अयोग्य नहीं होगा जब तक कि उसके बच्चों की संख्या इस अधिनियम के लागू होने की तारीख में वृद्धि नहीं हुई थी;

(ग) पहले जन्म से पैदा हुए विकलांग बच्चों की कुल संख्या की गणना करते समय गणना नहीं की जाएगी।

व्याख्या – शब्द “विकलांगता” में विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (2016 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 49) में या उसके तहत निर्दिष्ट किसी भी प्रकार की अक्षमता शामिल होगी।]

[(v) खंड (छ) के प्रयोजन के लिए, एक अध्यक्ष/ उप अध्यक्ष को अयोग्य नही माना जाएगा यदि वह अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले देय राशि का भुगतान कर देता है।]

व्याख्या- I. – धारा 19 के खंड (ठ) के प्रयोजन के लिए, जहां व्यक्ति के पास इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि पर पहले प्रसव या प्रसवो से केवल एक बच्चा है और उसके बाद , एक एकल प्रसव से पैदा हुए बच्चों की संख्या होगी, एक इकाई माना जाएगा;

[स्पष्टीकरण-द्वितीय – इस धारा के खंड (थ) के प्रयोजन के लिए –

(i) “स्वच्छता शौचालय” का अर्थ तीन दीवारों, एक दरवाजे और एक छत से घिरा पानी का सीलबंद शौचालय प्रणाली सेटअप से है; तथा

(ii) “परिवार के सदस्य” का अर्थ है ऐसे व्यक्ति की पत्नी, बच्चे और ऐसे व्यक्ति के साथ रहने वाले उसके माता-पिता।]

[स्पष्टीकरण-III. हटाए गए]

19क. कुछ सीटों पर चुनाव के लिए विशेष योग्यता- इस अधिनियम की धारा 19 या किन्हीं अन्य उपबंधों या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य कानून के विपरीत किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति पंचायती राज संस्था में ऐसी सीटों पर जैसा कि राज्य सरकार द्वारा विहित रीति से निर्धारित किया जाए, चुनाव के लिए पात्र नहीं होगा, जब तक कि वह इक्कीस वर्ष से पैंतीस वर्ष के आयु वर्ग के भीतर न हो और अन्यथा ऐसी सीटों के चुनाव के लिए पात्र न हो,

परंतु –

(i) पंचायती राज संस्था में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वर्गों या महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों में से दो से अधिक सीटें इस धारा के तहत निर्धारित नहीं की जाएंगी;

(ii) जहां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग या महिलाओं में से किसी के लिए पंचायती राज संस्था में आरक्षित सीटों की संख्या तीन या तीन से कम है, ऐसी जातियों, जनजातियों, वर्गों या, जैसी भी स्थिति हो, से एक सीट, महिलाओं को इस धारा के तहत निर्धारित किया जाएगा;

(iii) जहां पंचायती राज संस्था में अनारक्षित सीटों की संख्या पांच या पांच से कम है, इस धारा के तहत ऐसी सीटों में से केवल एक ही निर्धारित किया जाएगा; तथा

(iv) जहां किसी पंचायती राज संस्था में अनारक्षित सीटों की संख्या पांच से अधिक है, ऐसे पांच सीटों के प्रत्येक ब्लॉक में से एक सीट इस धारा के तहत निर्धारित की जाएगी और पांच सीटों से कम के किसी भी अंश को नजरअंदाज कर दिया जाएगा।]

19ख. पंचायती राज संस्था में एक से अधिक सीटों के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध – (1) इस अधिनियम के किन्हीं अन्य प्रावधानों में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति –

(ए) एक से अधिक वार्ड के लिए, एक पंच के चुनाव के मामले में;

(बी) उस पंचायत में पंच की सीट के लिए यदि वह सरपंच के रूप में चुनाव लड़ता है;

(सी) पंचायत समिति के एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए, उस पंचायत समिति के सदस्य के चुनाव के मामले में।

(डी) उस जिला परिषद के सदस्य के चुनाव के मामले में जिला परिषद के एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए;

चुनाव लड़ने का हकदार नहीं होगा –

(2) प्रत्येक व्यक्ति, जो उप-धारा (1) के उल्लंघन में, एक से अधिक वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र के लिए पंचायती राज संस्था में सीटों के लिए अपना नामांकन कर सकता है, उप-धारा (1) के उल्लंघन में अपनी उम्मीदवारी लिखित में एक नोटिस द्वारा सीटें जिसमें ऐसे विवरण होंगे जो निर्धारित किए जा सकते हैं, वापस ले लेगा और नामांकन वापस लेने के लिए निर्धारित समय और तारीख से पहले उन्हें परिदत्त करेंगे:

बशर्ते कि यदि कोई व्यक्ति ऊपर निर्दिष्ट अनुसार अपनी उम्मीदवारी वापस लेने में विफल रहता है तो उसे उन सभी सीटों से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए समझा जाएगा जहां उसने अपना नामांकन दाखिल किया होगा।

20. पंचायती राज संस्था की एक साथ या दोहरी सदस्यता पर प्रतिबंध – (1) कोई भी व्यक्ति, इस अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत के अलावा, दो या दो से अधिक पंचायती राज संस्थाओं का सदस्य नहीं होगा।

(2) जहां एक व्यक्ति एक पंचायती राज संस्था का सदस्य होते हुए किसी अन्य पंचायती राज की सदस्यता के लिए एक उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का इरादा रखता है, संस्था ऐसी सदस्यता के लिए एक उम्मीदवार के रूप में खड़ी हो सकता है, भले ही उप-धारा (1) में कुछ भी हो:

बशर्ते कि यदि वह उस सीट के लिए चुना जाता है जिसके लिए उसने एक उम्मीदवार के लिए चुनाव लड़ा था, तो उसके द्वारा पहले से ही धारित सीट उस तारीख को खाली हो जाएगी, जिस तारीख को उसे चुना गया था, जब तक कि वह सीट किसी अन्य पंचायती राज संस्था में न हो और उस की अवधि पंचायती राज संस्था को उसके चुने जाने की तारीख से चार महीने की अवधि के भीतर समाप्त होना है।

(3) यदि किसी व्यक्ति को एक साथ दो या अधिक पंचायती राज संस्थाओं के सदस्य के रूप में चुना जाता है, तो वह व्यक्ति उस तारीख या तारीखों के पत्र से चौदह दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकारी को सूचित करेगा, जिसमें से एक जिस पंचायती राज संस्था में वह सेवा करना चाहता है और उसके बाद जिस पंचायती राज संस्था में वह सेवा करना चाहता है, उसके अलावा अन्य पंचायती राज संस्था में उसका स्थान रिक्त हो जाएगा।

(4) उप-धारा (3) के तहत दी गई कोई भी सूचना अंतिम और अपरिवर्तनीय होगी।

(5) उपरोक्त अवधि के भीतर उप-धारा (3) में निर्दिष्ट सूचना के अभाव में सक्षम प्राधिकारी उस सीट का निर्धारण करेगा जिसे वह बरकरार रखेगा और उसके वाद शेष सीट जिससे उसे चुना गया था, खाली हो जाएगी।

21. किसी पंचायती राज संस्था में [अध्यक्ष, उपसभापति, या सदस्य] के पद और संसद या राज्य विधानमंडल की सदस्यता, आदि के एक साथ धारण करने पर प्रतिबंध – कोई भी व्यक्ति [अध्यक्ष, उपसभापति, या सदस्य] दोनों नहीं रहेगा पंचायती राज संस्था का सदस्य] और संसद या राज्य विधानमंडल या नगर पालिका बोर्ड या नगर परिषद या नगर निगम का सदस्य, और यदि कोई व्यक्ति जो पहले से ही संसद या राज्य विधानमंडल या नगरपालिका का सदस्य है बोर्ड या एक नगर परिषद या एक नगर निगम इस तरह [अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, या सदस्य] के रूप में निर्वाचित किया जाता है, तो उसके चुनाव की तारीख से चौदह दिनों की समाप्ति पर, वह इस तरह के [अध्यक्ष के रूप में समाप्त हो जाएगा, जब तक कि वह पहले राज्य विधानमंडल या नगरपालिका बोर्ड या नगर परिषद या नगर निगम, जैसा भी मामला हो, में अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया:

बशर्ते कि यदि कोई व्यक्ति, जो पहले से ही किसी पंचायती राज संस्थान का [अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य] है, संसद या राज्य विधानमंडल या नगर पालिका बोर्ड या नगर परिषद या नगर निगम के सदस्य के रूप में चुना जाता है, तो संसद या राज्य विधानमंडल या नगरपालिका बोर्ड या नगर परिषद या नगर निगम के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने की तारीख से चौदह दिनों की समाप्ति, जैसा भी मामला हो, वह ऐसा [अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य नहीं रह जाएगा] ] जब तक कि उसने पहले संसद या राज्य विधानमंडल या नगर बोर्ड या नगर परिषद या नगर निगम में अपनी सीट से इस्तीफा नहीं दिया हो, जैसा भी मामला हो

22. चुनावी अपराध – लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का केंद्रीय अधिनियम 43) की धारा [125] 126, 127, 127क के 128, 129, 130, 131, 132, [132क], 133, 134, 134 ए। [134ख, 135, 135क, 135ख, 13ग, और 136] के प्रावधानों का प्रभाव इस प्रकार होगा जैसे-

(क) उसमें एक चुनाव के संदर्भ में निर्देश इस अधिनियम के तहत एक चुनाव के संदर्भ में निर्देश हो;

(ख) उसमें एक निर्वाचन क्षेत्र के संदर्भ में निर्देश, एक पंचायती राज संस्थान के वार्ड या निर्वाचन क्षेत्र के निर्देश संदर्भ शामिल हों: तथा

(ग) उसकी धारा 134 और 136 में, “इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन” शब्दों के स्थान पर “राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 द्वारा या उसके अधीन” शब्द और अंक रखे गए हों ।

[(घ ) धारा I35ख की उप-धारा (1) मे अभिव्यक्त “लोकसभा या किसी राज्य की विधान सभा” शब्दों के स्थान पर “पंचायती राज संस्था” शब्द रखे गए हों।]

[22क वाहनों, लाउड-स्पीकरों आदि के उपयोग पर प्रतिबंध – (1) राज्य चुनाव आयोग किसी भी उम्मीदवार या उसके विधिवत अधिकृत द्वारा वाहनों या लाउड स्पीकर के उपयोग या कट आउट, होर्डिंग, पोस्टर और बैनर प्रदर्शित करने पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। पंचायती राज संस्था के निर्वाचन हेतु अधिसूचना के प्रकाशन की तिथि से प्रारम्भ होकर निर्वाचन की समस्त प्रक्रिया पूर्ण होने की तिथि को समाप्त होने वाली निर्वाचन अवधि के दौरान निर्वाचन अभिकर्ता।

(2) यदि कोई उम्मीदवार या उसका विधिवत अधिकृत चुनाव एजेंट उप-धारा (1) के तहत राज्य चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन करता है, तो वह, संवहन पर, जुर्माने से दण्डनीय होगा जो 2000/- रुपये तक हो सकता है। .

(3) उप-धारा (1) के तहत दंडित प्रत्येक व्यक्ति, आयोग के एक आदेश द्वारा, किसी भी पंचायती राज संस्था के सदस्य के रूप में चुने जाने या होने के लिए अयोग्य होने के लिए उत्तरदायी होगा, जिसकी अवधि ऐसे आदेश की तिथि छह साल तक हो सकती है। :

बशर्ते कि राज्य चुनाव आयोग वाद के आदेश द्वारा, दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, इस धारा के तहत किसी भी अयोग्यता को हटा सकता है या ऐसी किसी भी अयोग्यता की अवधि को कम कर सकता है।

(4) राज्य चुनाव आयोग द्वारा किसी सामान्य या विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में अधिकृत अधिकारी द्वारा की गई शिकायत के अलावा कोई भी न्यायालय उप-धारा (2) में निर्दिष्ट अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।]

23. चुनाव परिणामों का प्रकाशन – व्यक्तियों के नाम, चाहे वे पंचायती राज संस्था के सदस्य के रूप में निर्वाचित हों या ऐसी संस्थाओं के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में, विहित रीति से प्रकाशित किए जाएंगे।

24. शपथ या प्रतिज्ञान – पंचायती राज संस्था का प्रत्येक सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, इस रूप में अपने कर्तव्यों को निभाने से पहले, सक्षम प्राधिकारी के समक्ष निर्धारित प्रपत्र में शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और सदस्यता लेगा।

25. प्रभार सौंपना। – (1) जब भी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के किसी सदस्य का चुनाव शून्य घोषित किया गया हो, या जब भी ऐसा सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष –

(i) धारा 19 के तहत अपना पद धारण करने के लिए योग्य नहीं पाया जाता है या अयोग्य हो जाता है; या

(ii) इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसा नहीं रहेगा; या

(iii) इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित शपथ या प्रतिज्ञान करने में विफल रहता है; या

(iv) धारा 38 के तहत पद से हटा दिया गया है या निलंबित कर दिया गया है; या

(v) धारा 36 के तहत अपने पद से इस्तीफा दे दिया है; या

जब भी धारा 37 के तहत पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया जाता है; या

जब भी किसी पंचायती राज संस्था का कार्यकाल समाप्त हो जाता है या किसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष सहित या उसके बिना सभी सदस्यों का कोर्ट द्वारा चुनाव शून्य घोषित कर दिया जाता है, या ऐसा चुनाव या उसके वाद की कार्यवाही किसी सक्षम अधिकारी के आदेश से रोक दी जाती है। क

जब भी इस अधिनियम के तहत पंचायती राज संस्था को भंग किया जाता है,

ऐसे सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या उनमें से सभी या उनमें से कोई भी अपने या अपने वास्तविक कब्जे या व्यवसाय में ऐसे कार्यालय से संबंधित सभी कागजात और संपत्तियों सहित अपने कार्यालय के निर्धारित तरीके से प्रभार सौंपेगा –

(ए) सदस्य के मामले में, संबंधित पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष को;

(बी) अध्यक्ष के मामले में ऐसी पंचायती राज संस्था के उपाध्यक्ष या जहां ऐसा कोई उपाध्यक्ष नहीं है, ऐसी पंचायती राज संस्था के ऐसे सदस्य या अन्य व्यक्ति को सक्षम प्राधिकारी निर्देशित कर सकते हैं [:]

[बशर्ते कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या पिछड़ा वर्ग या महिलाओं के लिए आरक्षित किसी पद के लिए चुने गए किसी अध्यक्ष का पद का प्रभार सक्षम प्राधिकारी के निर्देशों के अनुसार किसी सदस्य को सौंपा जाएगा। , यदि उक्त जातियों, जनजातियों या वर्गों में से कोई भी या महिला सदस्य, जैसा भी मामला हो, जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है और जहां उक्त जाति, जनजाति, वर्ग या महिला सदस्य से संबंधित कोई नहीं है जिसे प्रभार दिया जा सकता है जैसा कि पूर्वोक्त है, प्रभार किसी अन्य सदस्य को, जो उक्त श्रेणियों से संबंधित नहीं है, निर्धारित तरीके से सौंपा जाएगा।]

(ग) उपसभापति के मामले में, संबंधित पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष को या, जहां ऐसी पंचायती राज संस्था के ऐसे सदस्य या अन्य व्यक्ति के लिए ऐसा कोई अध्यक्ष नहीं है, जैसा कि सक्षम प्राधिकारी निर्देशित करे;

(घ) ऐसी पंचायती राज संस्था के मामले में, जिसका कार्यकाल समाप्त हो गया है, ऐसी नई पंचायती राज संस्था को, जिसका गठन किया गया है; तथा

(ई) इस अधिनियम के तहत भंग पंचायती राज संस्था के मामले में, धारा 95 . के तहत नियुक्त प्रशासक को

(2) नए सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के चुनाव या नियुक्ति पर या एक नई पंचायती राज संस्था के गठन पर, और इस अधिनियम द्वारा आवश्यक पद की शपथ या पुष्टि के वाद तिथि को धारण करने वाला व्यक्ति विधिवत बनाया गया है जिस पर ऐसी शपथ या प्रतिज्ञान किया जाता है, ऐसे सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या पंचायती राज संस्था के पद का प्रभार उप-धारा (1) के अनुसरण में, इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति या पंचायती राज संस्था को तत्काल सौंप दिया जाएगा। इस प्रकार गठित, जैसा भी मामला हो, कार्यालय का प्रभार हो, जिसमें उसके वास्तविक कब्जे या व्यवसाय में ऐसे कार्यालय से संबंधित सभी कागजात और संपत्तियां शामिल हों।

(3) यदि कोई व्यक्ति उप-धारा (1), या उप-धारा (2) के तहत आवश्यक कार्यालय का प्रभार सौंपने में विफल रहता है या इनकार करता है, तो सक्षम प्राधिकारी, लिखित आदेश द्वारा, उस व्यक्ति को निर्देश दे सकता है जो इस तरह विफल रहा है या सौंपने से इनकार कर रहा है उप-धारा (1), या उप-धारा (2), जैसा भी मामला हो, के तहत इसके हकदार व्यक्तियों या व्यक्तियों के लिए ऐसा आरोप।

(4) यदि वह व्यक्ति जिसे उप-धारा (3) के तहत निर्देश जारी किया गया है, निर्देश का पालन करने में विफल रहता है, तो उसे दोषी ठहराए जाने पर, एक वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास या एक से अधिक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा। हजार रुपये या दोनों के साथ।

(5) इस संबंध में सक्षम प्राधिकारी द्वारा सशक्त कोई भी अधिकारी, उप-धारा (4) के तहत की गई या की जा सकने वाली किसी भी कार्रवाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उप-धारा के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक समझे जाने वाले बल का उपयोग कर सकता है। और (2) और उस प्रयोजन के लिए निर्धारित तरीके से पुलिस या ऐसा करने के लिए सक्षम निकटतम मजिस्ट्रेट की सहायता ले सकते हैं।

26. सरपंच और उनका चुनाव। – (1) प्रत्येक पंचायत में एक सरपंच होगा जो एक पंच के रूप में निर्वाचित होने के लिए योग्य व्यक्ति होना चाहिए और पूरे पंचायत सर्कल के निर्वाचकों द्वारा निर्धारित तरीके से चुना जाएगा।

(2) यदि पंचायत अंचल के मतदाता इस धारा के अनुसार सरपंच का चुनाव करने में विफल रहते हैं या यदि पंच, उप-सरपंच का चुनाव करने में विफल रहते हैं, तो राज्य सरकार रिक्ति के लिए एक व्यक्ति को तब तक नियुक्त करेगी जब तक कि रिक्ति चुनाव के भीतर भर न जाए। छह महीने की अवधि और इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति को विधिवत निर्वाचित सरपंच या उप-सरपंच, जैसा भी मामला हो, माना जाएगा।

27. पंचायत की स्थापना पर उप-सरपंच के निर्वाचन की प्रक्रिया। – (1) प्रत्येक पंचायत में उप-सरपंच होंगे।

(2) इस अधिनियम के तहत पहली बार पंचायत की स्थापना पर, या उसके वाद उसके पुनर्गठन या स्थापना पर, सक्षम प्राधिकारी द्वारा तुरंत पंचायत की एक बैठक बुलाई जाएगी, जो स्वयं बैठक की अध्यक्षता करेगा, लेकिन उसे कोई अधिकार नहीं होगा मतदान करने के लिए, और ऐसी बैठक में उप-सरपंच का चुनाव किया जाएगा।

28. प्रधान और उप-प्रधान का चुनाव। – (1) पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः प्रधान और उप-प्रधान के रूप में चुनेंगे, और जितनी बार प्रधान या उप-प्रधान या, वे अपने में से किसी अन्य सदस्य को प्रधान या उप-प्रधान के रूप में चुनेंगे, जैसा भी मामला हो:

बशर्ते कि कोई चुनाव नहीं होगा यदि कोई रिक्ति एक महीने से कम की अवधि के लिए है।

(2) प्रधान और उप-प्रधान का चुनाव और उक्त कार्यालयों में रिक्तियों को भरना ऐसे नियमों के अनुसार होगा जैसा कि बनाया जा सकता है।

29. प्रमुख और उप-प्रमुख का चुनाव। – (1) जिला परिषद का निर्वाचित सदस्य, यथाशीघ्र, अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः प्रमुख और उप-प्रमुख चुनेगा और इतनी बार जब प्रमुख के कार्यालय में आकस्मिक रिक्ति हो या उप-प्रमुख वे अपने बीच से किसी अन्य सदस्य को प्रमुख या उप-प्रमुख के रूप में चुनेंगे, जैसा भी मामला हो:

बशर्ते कि कोई चुनाव नहीं होगा यदि कोई रिक्ति एक महीने से कम की अवधि के लिए है।

(2) किसी जिला परिषद के प्रमुख या उप-प्रमुख का चुनाव और उक्त कार्यालयों में रिक्तियों को भरना ऐसे नियमों के अनुसार होगा जो बनाए जा सकते हैं।

30. सदस्यों, अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की पदावधि। – इस अधिनियम में अन्यथा उपबंधित के सिवाय –

(ए) किसी पंचायती राज संस्था के सदस्य और अध्यक्ष संबंधित पंचायती राज संस्था की अवधि के दौरान पद धारण करेंगे; तथा

(बी) पंचायती राज संस्था का उपाध्यक्ष तब तक पद धारण करेगा जब तक वह संबंधित पंचायती राज संस्था का सदस्य बना रहता है

31. सदस्यों को भत्ते। आदि – किसी पंचायती राज संस्था के सदस्य, जिसमें ऐसी संस्था का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल है, साथ ही ऐसी संस्था की किन्हीं समितियों या उप-समितियों के सदस्यों सहित उसके किसी अध्यक्ष को ऐसी परिस्थितियों में ऐसी दरों पर ऐसे भत्ते का भुगतान किया जाएगा और ऐसे नियमों और शर्तों के अधीन जो निर्धारित की जा सकती हैं:

बशर्ते एक दिन के लिए केवल एक ही भत्ता देय होगा।

32. सरपंच और उप-सरपंच की शक्तियां, कार्य और कर्तव्य। – (1) सरपंच –

(ए) ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए जिम्मेदार होगा और ऐसी बैठकों की अध्यक्षता करेगा;

(बी) पंचायत की बैठकों के आयोजन के लिए जिम्मेदार होगा और ऐसी बैठकों की अध्यक्षता और विनियमन करेगा;

(सी) पंचायत के अभिलेखों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार होगा;

(डी) पंचायत के वित्तीय और कार्यकारी प्रशासन के लिए सामान्य जिम्मेदारी है;

(ई) पंचायत के कर्मचारियों और उन अधिकारियों और कर्मचारियों के काम पर प्रशासनिक पर्यवेक्षण और नियंत्रण का प्रयोग करें जिनकी सेवाएं किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा पंचायत के निपटान में रखी जा सकती हैं;

(च) इस अधिनियम से संबंधित व्यवसाय के लेन-देन के लिए या उसके द्वारा अधिकृत किसी आदेश को बनाने के उद्देश्य से, ऐसी शक्तियों का प्रयोग, ऐसे कार्यों का पालन करना और ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करना जो इस अधिनियम के तहत पंचायत द्वारा प्रयोग, निष्पादित या निर्वहन किए जा सकते हैं। इसके तहत बनाए गए नियम;

(छ) राज्य सरकार या पंचायत के प्रभारी अधिकारी को ऐसी रिपोर्ट, विवरणियां और रिकॉर्ड, चाहे वह आवधिक हो या अन्यथा, जो विहित किया जाए या समय-समय पर मांगा जाए, प्रस्तुत करेगा; तथा

(ज) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग, ऐसे अन्य कार्यों का पालन करना और ऐसे अन्य कर्तव्यों का निर्वहन करना जो पंचायत संकल्प द्वारा, निर्देश द्वारा या सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों द्वारा विहित करे।

(2) उप-सरपंच –

(ए) सरपंच की ऐसी शक्तियों का प्रयोग, ऐसे कार्यों का पालन करना और सरपंच के कर्तव्यों का निर्वहन, समय-समय पर, सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों के अधीन, लिखित आदेश द्वारा उसे सौंपना ;

(बी) सरपंच की अनुपस्थिति में, या तो अपने पद के खाली रहने के कारण या अन्यथा, सभी शक्तियों का प्रयोग करें, सभी कार्यों का पालन करें और सरपंच के सभी कर्तव्यों का निर्वहन करें; तथा

(सी) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग, ऐसे अन्य कार्यों का पालन करना और ऐसे अन्य कर्तव्यों का निर्वहन करना जो पंचायत , संकल्प द्वारा, निर्देश या सरकार, इस संबंध में बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित कर सकती है।

(3) सरपंच और उप-सरपंच दोनों की अनुपस्थिति में या तो उनके पद रिक्त रहने के कारण या अन्यथा सरपंच की शक्तियों, कार्यों और कर्तव्यों का पालन और निर्वहन पंचायत के ऐसे निर्वाचित सदस्य द्वारा किया जाएगा और इस तरह से जैसा कि सक्षम प्राधिकारी निर्देश दे सकता है [:]

[उसे उपलब्ध कराया –

(i) सरपंच खंड (डी) से (एच) के तहत शक्तियों का प्रयोग करेगा और कार्यों और कर्तव्यों का पालन करेगा; या

(ii) उप-सरपंच उप-धारा (2) के अनुसार शक्तियों का प्रयोग करेगा और कार्यों और कर्तव्यों का पालन करेगा; या

(iii) उप-धारा (3) के अनुसार कार्य करने के लिए सशक्त पंचायत का एक निर्वाचित सदस्य एक सरपंच की शक्ति का प्रयोग और कार्यों और कर्तव्यों का पालन करेगा;

धारा 55-ए के तहत गठित प्रशासन एवं स्थापना समिति का पूर्वानुमोदन प्राप्त करने के वाद ही यदि राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसा निर्देश देती है।]

33. प्रधान की शक्तियां, कार्य और कर्तव्य। – प्रधान करेगा –

(ए) पंचायत समिति की बैठकें बुलाना, अध्यक्षता करना और संचालन करना;

(बी) उसके सभी रिकॉर्ड तक पूरी पहुंच है;

(सी) इस अधिनियम और इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत लगाए गए सभी कर्तव्यों का निर्वहन और उसे प्रदान की गई सभी शक्तियों का प्रयोग करें और ऐसे कार्यों का पालन करें जो उन्हें सरकार द्वारा समय-समय पर सौंपे जाते हैं;

(डी) पंचायत में पहल और उत्साह की वृद्धि को प्रोत्साहित करना और उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं और उत्पादन कार्यक्रमों में मार्गदर्शन प्रदान करना और उसमें सहयोग और स्वैच्छिक संगठन के विकास में मदद करना;

(ई) पंचायत समिति या उसकी स्थायी समितियों के ऐसे प्रस्तावों या निर्णयों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विकास अधिकारी [और ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी] पर पर्यवेक्षण और नियंत्रण का प्रयोग करें जो इस अधिनियम के प्रावधानों या किसी सामान्य या इस अधिनियम के तहत जारी विशिष्ट निर्देश;

(च) पंचायत समिति के वित्तीय और कार्यकारी प्रशासन पर समग्र पर्यवेक्षण का प्रयोग करना और पंचायत समिति के समक्ष उन सभी प्रश्नों को रखना जो उन्हें इसके आदेशों की आवश्यकता प्रतीत होती है और इस उद्देश्य के लिए पंचायत समिति के रिकॉर्ड की मांग कर सकते हैं; तथा

(छ) पंचायत समिति क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के उद्देश्य से विकास अधिकारी के परामर्श से एक वर्ष में कुल पच्चीस हजार रुपये तक की मंजूरी देने की आपातकालीन शक्ति है:

परन्तु प्रधान पंचायत समिति की अगली बैठक में उसके अनुसमर्थन के लिए ऐसी स्वीकृतियों का विवरण प्रस्तुत करेगा।

34. उप-प्रधान की शक्तियां, कार्य और कर्तव्य। – (1) पंचायत समिति का उप-प्रधान –

(ए) प्रधान की अनुपस्थिति में पंचायत समिति की बैठकों की अध्यक्षता;

(बी) पंचायत समिति के प्रधान की ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करें जो प्रधान समय-समय पर सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन हो, लिखित आदेश द्वारा उसे सौंपें; तथा

(ग) प्रधान का निर्वाचन लंबित रहने पर या पंचायत समिति क्षेत्र से प्रधान की अनुपस्थिति में तीस दिन से अधिक की अवधि के अवकाश के कारण प्रधान के अधिकारों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करता है।

(2) दोनों प्रधान उप-प्रधान की अनुपस्थिति में या तो उनके पद रिक्त रहने के कारण या अन्यथा, प्रधान की शक्तियों, कार्यों और कर्तव्यों का पालन और निर्वहन पंचायत समिति के ऐसे निर्वाचित सदस्य द्वारा किया जाएगा और ऐसे में तरीके से सक्षम प्राधिकारी निर्देशित कर सकते हैं।

[34ए. सेक के तहत कुछ शक्तियां। 33 और 34 का प्रयोग प्रशासन एवं स्थापना समिति के अनुमोदन से किया जाना है। – (1) प्रधान धारा 33 के खंड (बी) से (छ) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग धारा 56 के तहत गठित प्रशासन और स्थापना समिति की पूर्व स्वीकृति लेने के वाद ही करेगा यदि राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसा निर्देश देती है।

(2) उप-प्रधान धारा 34 की उप-धारा (1) के खंड (बी) और (सी) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग धारा 56 के तहत गठित प्रशासन और स्थापना समिति से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के वाद ही करेगा यदि राज्य सरकार ऐसा करती है। आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्देश।

(3) धारा 34 की उप-धारा (2) के तहत प्रधान के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त पंचायत समिति का एक निर्वाचित सदस्य, धारा 56 के तहत गठित प्रशासन स्थापना समिति की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने के वाद ही प्रधान की शक्तियों का प्रयोग, कार्यों और कर्तव्यों का पालन करेगा। यदि राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसा निर्देश देती है।]

35. प्रमुख और उप-प्रमुख की शक्तियां, कार्य और कर्तव्य। – (1) प्रमुख करेगा-

(ए) इस अधिनियम और इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत लगाए गए सभी कर्तव्यों का पालन करें और प्रमुख को प्रदान की गई सभी शक्तियों का प्रयोग करें;

(बी) जिला परिषद की बैठकों का आयोजन, अध्यक्षता और संचालन;

(सी) [मुख्य कार्यकारी अधिकारी और जिला शिक्षा अधिकारी और उनके माध्यम से] जिला परिषद के सभी अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों और उन अधिकारियों और कर्मचारियों पर प्रशासनिक पर्यवेक्षण और नियंत्रण का प्रयोग करें जिनकी सेवा जिला परिषद के निपटारे में रखी जा सकती है राज्य सरकार द्वारा और इसके रिकॉर्ड तक पूर्ण पहुंच है;

(डी) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग, ऐसे अन्य कार्यों का पालन करना और ऐसे अन्य कर्तव्यों का निर्वहन करना जो जिला परिषद, संकल्प द्वारा, निर्देश द्वारा या सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित किया जा सकता है;

(ई) जिला परिषद के वित्तीय और कार्यकारी प्रशासन पर समग्र पर्यवेक्षण का प्रयोग करें और जिला परिषद के समक्ष सभी प्रश्नों को जिला परिषद के समक्ष रखें जो उसे इसके आदेशों की आवश्यकता प्रतीत होती है और इस उद्देश्य के लिए जिला परिषद के रिकॉर्ड की मांग कर सकती है;

(च) जिले में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के उद्देश्य से, मुख्य कार्यकारी अधिकारी के परामर्श से, एक वर्ष में कुल एक लाख रुपये तक की मंजूरी देने की शक्ति है:

बशर्ते कि प्रमुख जिला परिषद की अगली बैठक में इसके अनुसमर्थन के लिए ऐसी मंजूरी का विवरण रखेगा;

(छ) पंचायतयतों में पहल और उत्साह की वृद्धि को प्रोत्साहित करना और उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं और उत्पादन कार्यक्रमों में मार्गदर्शन प्रदान करना और उसमें सहकारी स्वैच्छिक संगठनों के विकास में मदद करना;

(ज) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करना जो उसे इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त हैं या जो उसे प्रत्यायोजित की जा सकती हैं; तथा

(i) उसे जिले में पंचायत समितियों की गतिविधियों का आकलन करने और उनके कार्यक्रमों और समस्याओं का अध्ययन करने में सक्षम बनाने के लिए, समय-समय पर,

(i) जिले के ब्लॉकों का दौरा करें, और

(ii) अनुभाग में पंचायत समितियों, उनके प्रधानों, उनके विकास अधिकारियों और उनके सदस्यों को मार्गदर्शन और सलाह देने की दृष्टि से जिले में पंचायत समितियों द्वारा किए गए कार्यों और अभिलेखों के साथ-साथ उनके कामकाज को सामान्य रूप से बनाए रखा जाता है, इसलिए प्रत्येक ब्लॉक में उनके साथ-साथ पंचायत समितियों और पंचायत के बीच स्वस्थ संबंध विकसित करना और उस संबंध में निर्धारित बोर्ड की नीतियों के अनुसार उत्पादन कार्यक्रमों में वृद्धि करना। इस तरह के निरीक्षण और सक्रिय होने की रिपोर्ट प्रमुख द्वारा जिला परिषद को विशेष रूप से किसी भी दोष के संदर्भ में दी जाएगी जो उसने देखी हो; तथा

(ञ) प्रत्येक वर्ष के अंत में, उस वर्ष के दौरान मुख्य कार्यपालक अधिकारी के कार्य की रिपोर्ट निदेशक, पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास को भेजेगा जो मुख्य कार्यपालक अधिकारी की गोपनीय रिपोर्ट के साथ टिप्पणियों को संलग्न करेगा।

(2) उप-प्रमुख –

(ए) प्रमुख की अनुपस्थिति में, जिला परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करना;

(बी) ऐसी शक्तियों का प्रयोग करें और प्रमुख के ऐसे कर्तव्यों का पालन करें, जो समय-समय पर, ऐसे नियमों के अधीन हो सकते हैं, जो उन्हें लिखित आदेश द्वारा सौंपे जा सकते हैं; तथा

(सी) प्रमुख के चुनाव तक या जिले से प्रमुख की अनुपस्थिति के दौरान, या तीस दिनों से अधिक की अवधि के लिए छुट्टी के कारण, प्रमुख की शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करें।

(3) प्रमुख और उप-प्रमुख दोनों की अनुपस्थिति में, या तो उनके पद खाली रहने के कारण या अन्यथा, प्रमुख की शक्तियों, कार्यों और कर्तव्यों का प्रयोग, पालन और निर्वहन जिला परिषद के ऐसे निर्वाचित सदस्य द्वारा किया जाएगा। और इस तरह से सक्षम प्राधिकारी निर्देशित कर सकते हैं।

[35ए. धारा 35 के तहत कुछ शक्तियों का प्रशासन और स्थापना समिति के अनुमोदन से प्रयोग किया जाना। – (1) प्रमुख धारा 35 की उप-धारा (1) के खंड (ए) और खंड (सी) से (एच) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल धारा 57 के तहत गठित प्रशासन और स्थापना समिति के पूर्व अनुमोदन के वाद ही करेगा। यदि राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसा निर्देश देती है।

(2) उप-प्रमुख धारा 35 की उप-धारा (2) के खंड (बी) और (सी) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग धारा 57 के तहत गठित प्रशासन और स्थापना समिति के पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के वाद ही करेगा यदि राज्य सरकार ऐसा करती है। आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्देश।

(3) धारा 35 की उप-धारा (3) के तहत प्रमुख के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त जिला परिषद का एक निर्वाचित सदस्य खंड (ए) और खंड (सी) से (एच) के तहत प्रदत्त प्रमुख की शक्तियों, कार्यों और कर्तव्यों का प्रयोग करेगा। धारा 35 की उप-धारा (1) की धारा 57 के तहत गठित प्रशासन और स्थापना समिति की पूर्व स्वीकृति लेने के वाद ही, यदि राज्य सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसा निर्देश देती है।]

36. सरपंच, उप-सरपंच, पंच, प्रधान, उप-प्रधान, प्रमुख, उप-प्रमुख और पंचायत समिति या जिला परिषद के सदस्यों का इस्तीफा। – (1) सरपंच, उप-सरपंच या पंच विकास अधिकारी को संबोधित अपने हस्ताक्षर से लिखित रूप में अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।

(2) पंचायत समिति के प्रधान के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य किसी भी समय प्रमुख, जिला परिषद और उप-प्रधान या पंचायत समिति के सदस्य को संबोधित अपने हस्ताक्षर के तहत अपने पद से इस्तीफा दे सकता है, किसी भी समय अपना पद त्याग सकता है। प्रधान, पंचायत समिति को संबोधित अपने हाथ के नीचे लिखकर।

(3) प्रमुख संभागीय आयुक्त को संबोधित अपने हस्ताक्षर के तहत अपने पद से इस्तीफा दे सकता है, और उप-प्रमुख या सदस्य, जिला परिषद प्रमुख को संबोधित अपने हस्ताक्षर के तहत अपने पद से इस्तीफा दे सकता है।

(4) उप-धारा (1), (2) और (3) के तहत प्रत्येक त्यागपत्र, पूर्वोक्त प्राधिकारी द्वारा इसकी प्राप्ति की तारीख से पंद्रह दिनों की समाप्ति पर प्रभावी होगा, जब तक कि पंद्रह दिनों की इस अवधि के भीतर वापस नहीं लिया जाता।

(5) प्रत्येक उप-सरपंच, प्रधान, उप-प्रधान, प्रमुख और उप-प्रमुख, यदि वह पंचायत या पंचायत समिति या जिला परिषद, जैसा भी मामला हो, का सदस्य नहीं रहने पर पद खाली कर देगा।

37. अध्यक्षों और उपाध्यक्षों में अविश्वास प्रस्ताव। – (1) पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में विश्वास की कमी व्यक्त करने वाला प्रस्ताव निम्नलिखित उप-धाराओं में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार हो सकता है।

(2) प्रस्तावित प्रस्ताव की एक प्रति के साथ संबंधित पंचायती राज संस्था के प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों के कम से कम एक तिहाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित, ऐसे प्रारूप में प्रस्ताव करने के इरादे की लिखित सूचना, जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है, सक्षम प्राधिकारी को नोटिस गाते हुए सदस्यों में से किसी एक द्वारा व्यक्तिगत रूप से दिया गया।

(3) सक्षम प्राधिकारी वहाँ होगा-

(i) सरपंच या उप-सरपंच के मामले में पंचायत को प्रस्तावित प्रस्ताव की एक प्रति के साथ नोटिस की एक प्रति, प्रधान या उप-प्रधान के मामले में पंचायत समिति को और जिला को अग्रेषित करें। एक प्रमुख या उप-प्रमुख के मामले में परिषद;

(ii) प्रस्ताव पर विचार के लिए संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय में उसके द्वारा नियत तिथि पर एक बैठक बुलाएगा जो कि उप-धारा (1) के तहत नोटिस जारी होने की तारीख से तीस दिनों के वाद की नहीं होगी। उसे दिया; तथा

(iii) सदस्यों को कम से कम [सात] ऐसे अयाल में बैठक के स्पष्ट दिनों की सूचना दी जाए जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है।

स्पष्टीकरण – इस उप-धारा में निर्दिष्ट तीस दिनों की अवधि की गणना में, जिस अवधि के दौरान एक अदालत द्वारा बैठक के आयोजन पर रोक लगाई जाती है, उसे बाहर रखा जाएगा।

(4) सक्षम प्राधिकारी ऐसी बैठक की अध्यक्षता करेगा:

बशर्ते कि यदि, [****] वह ऐसा करने में असमर्थ है, तो उसके द्वारा नामित अधिकारी अध्यक्षता करेगा।

(5) उप-धारा (3) के तहत बुलाई गई बैठक स्थगित नहीं की जाएगी।

(6) जैसे ही इस धारा के तहत बुलाई गई बैठक शुरू होती है, पीठासीन अधिकारी उपस्थित सदस्यों को पढ़ेगा, जिस पर विचार करने के लिए बैठक बुलाई गई है और इसे बहस के लिए खुला घोषित किया जाएगा।

(7) इस धारा के अधीन प्रस्ताव पर कोई वाद-विवाद स्थगित नहीं किया जाएगा।

(8) इस तरह की बहस बैठक के शुरू होने के लिए नियत समय से दो घंटे की समाप्ति पर स्वतः समाप्त हो जाएगी, यदि पहले समाप्त नहीं हुई है। दो घंटे की उक्त अवधि की समाप्ति पर वाद-विवाद के समापन पर, जो भी पहले हो, प्रस्ताव पर मतदान किया जाएगा।

(9) पीठासीन अधिकारी प्रस्ताव के गुण-दोष पर नहीं बोलेगा और वह उस पर मत देने का हकदार नहीं होगा।

(10) बैठक के कार्यवृत्त की एक प्रति, प्रस्ताव की एक प्रति और उस पर मतदान के परिणाम के साथ, बैठक की समाप्ति पर, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के मामले में पीठासीन अधिकारी द्वारा तत्काल अग्रेषित की जाएगी। . –

(ए) एक पंचायत की – ऐसी पंचायत पर अधिकार क्षेत्र वाली संबंधित पंचायत और पंचायत समिति को;

(बी) एक पंचायत समिति के – संबंधित पंचायत समिति और ऐसी पंचायत समिति पर अधिकार क्षेत्र रखने वाली जिला परिषद को;

(सी) एक जिला परिषद के – संबंधित जिला परिषद और राज्य सरकार को

(11) यदि प्रस्ताव संबंधित पंचायती राज संस्था के कम से कम [तीन चौथाई] निर्वाचित सदस्यों के समर्थन से किया जाता है। –

(क) पीठासीन अधिकारी संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर इसकी सूचना चस्पा कर और राजपत्र में इसकी सूचना देकर तथ्य को प्रकाशित करवाएगा; तथा

(बी) संबंधित अध्यक्ष या उप-अध्यक्ष इस रूप में आधे पद से समाप्त हो जाएंगे और कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर उक्त नोटिस चिपकाए जाने की तारीख से या उस तारीख से कार्यालय में खाली हो जाएंगे।

(12) यदि प्रस्ताव पूर्वोक्त रूप से पारित नहीं किया जाता है या यदि गणपूर्ति के अभाव में बैठक आयोजित नहीं की जा सकती है, तो उसी अध्यक्ष या उप-सभापति में विश्वास की कमी व्यक्त करने वाले किसी भी वाद के प्रस्ताव की समाप्ति के वाद तक कोई नोटिस नहीं दिया जाएगा। ऐसी बैठक की तारीख से एक वर्ष।

(13) इस धारा के तहत किसी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष द्वारा पद ग्रहण करने के दो साल के भीतर प्रस्ताव की कोई सूचना नहीं दी जाएगी।

(14) अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर विचार के लिए एक बैठक का गठन करने के लिए गणपूर्ति, वोट देने के हकदार व्यक्तियों की कुल संख्या का एक तिहाई होगा।

38. हटाना और निलंबन। – (1) राज्य सरकार, लिखित आदेश द्वारा और उसे सुनवाई का अवसर देने के वाद और ऐसी जांच करने के वाद जो आवश्यक समझी जाए, पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष सहित किसी भी सदस्य को पद से हटा सकती है। कौन –

(ए) कार्य करने से इनकार करता है या इस तरह कार्य करने में असमर्थ हो जाता है; या

(बी) कर्तव्यों के निर्वहन या किसी भी अपमानजनक आचरण में कदाचार का दोषी है;

बशर्ते कि इस उप-धारा के तहत कोई जांच, संबंधित पंचायती राज संस्था की अवधि की समाप्ति के वाद भी शुरू की जा सकती है या, यदि ऐसी समाप्ति से पहले पहले ही शुरू हो चुकी है, उसके वाद जारी रखी जा सकती है और ऐसे किसी भी मामले में राज्य सरकार आदेश द्वारा लगाए गए आरोपों पर अपने निष्कर्षों को लिखना।

(2) उप-धारा (1) के तहत हटाए गए अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को भी राज्य सरकार के विवेक पर सदस्यता से हटाया जा सकता है, यदि कोई संबंधित पंचायती राज संस्था है।

(3) उप-धारा (1) के तहत हटाए गए सदस्य या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या जिनके खिलाफ उस उपधारा के परंतुक के तहत निष्कर्ष दर्ज किए गए हैं, इस अधिनियम के तहत चुने जाने के लिए पात्र नहीं होंगे। उसे हटाने की तारीख से पांच साल या, जैसा भी मामला हो, वह तारीख जिस पर इस तरह के निष्कर्ष दर्ज किए जाते हैं।

(4) राज्य सरकार किसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष सहित किसी भी सदस्य को निलंबित कर सकती है, जिसके खिलाफ उप-धारा (1) के तहत जांच शुरू की गई है या जिसके खिलाफ नैतिक अधमता वाले अपराध के संबंध में कोई आपराधिक कार्यवाही की गई है। न्यायालय में विचारण लम्बित है, ऐसे व्यक्ति को पंचायती राज संस्था के किसी भी कार्य या कार्यवाही में भाग लेने से वंचित किया जाएगा [इस तरह के निलंबन के तहत संबंधित पंचायती राज संस्था के किसी भी कार्य या कार्यवाही में भाग लेने से वंचित होना [; ]

[बशर्ते कि राज्य सरकार किसी भी पंच को वार्ड सभा या सरपंच की सिफारिश पर ग्राम सभा की सिफारिश पर निलंबित भी कर सकती है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा तभी करेगी जब वार्ड सभा द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पारित किया जाएगा। या ग्राम सभा, जैसा भी मामला हो, को राज्य सरकार द्वारा कलेक्टर को वार्ड सभा या ग्राम सभा, जैसी भी स्थिति हो, की विशेष बैठक बुलाने के लिए भेजा जाता है, ताकि सदस्यों और सदस्यों की इच्छाओं को अंतिम रूप से सुनिश्चित किया जा सके। कलेक्टर द्वारा बुलाई गई बैठक में उपस्थित और उनके नामिती की अध्यक्षता में, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पंच या सरपंच, जैसा भी मामला हो, को निलंबित करने के प्रस्ताव की पुष्टि करें:

प्रदाता यह भी कि पंच या सरपंच के निलंबन की मांग करने वाला कोई भी प्रस्ताव किसी पंच या सरपंच, जैसा भी मामला हो, द्वारा दो साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले पेश या पारित नहीं किया जाएगा।]

(5) इस धारा के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी मामले पर राज्य सरकार का निर्णय, धारा 97 के तहत किए गए किसी भी आदेश के अधीन, अंतिम होगा और किसी भी न्यायालय में पूछताछ के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

39. सदस्यता की समाप्ति। – (1) [ए] पंचायती राज संस्था का सदस्य ऐसे सदस्य बने रहने के लिए पात्र नहीं होगा यदि वह –

(ए) धारा 19 में निर्दिष्ट किसी भी अयोग्यता के अधीन है या हो जाता है; या

(बी) ऐसी पंचायती राज संस्था को लिखित में सूचना दिए बिना संबंधित पंचायती राज संस्था की लगातार तीन बैठकों से अनुपस्थित रहा है; या

(सी) सदस्यता से हटा दिया गया है; या

(डी) सदस्यता से इस्तीफा देता है; या

(ई) मर जाता है; या

(च) चुनाव या नियुक्ति की तारीख से तीन महीने के भीतर सदस्यता के पद की निर्धारित शपथ या प्रतिज्ञान करने में विफल रहता है।

(2) जब भी सक्षम प्राधिकारी को यह प्रतीत होता है कि कोई सदस्य उप-धारा (1) में निर्दिष्ट किसी भी कारण से सदस्य बने रहने के लिए अपात्र हो गया है, तो संबंधित प्राधिकारी, उसे होने का अवसर देने के वाद कर सकता है सुना है, उसे इतना अपात्र घोषित कर देता है और उसके वाद वह ऐसे सदस्य के रूप में अपना पद छोड़ देगा।

[***]

[***]

बशर्ते कि जब तक इस उप-धारा के तहत घोषणा नहीं की जाती है, तब तक वह अपने पद पर बने रहेंगे।

[40. अयोग्यता के सवालों का फैसला करने के लिए न्यायाधीश। [xxx xxx xxx]

[41. कार्यालय अध्यक्ष और उप सभापति का अवकाश। [xxx xxx]

42. रिक्तियों को भरना। – इस अधिनियम के तहत किसी पंचायती राज संस्था के किसी सदस्य या अध्यक्ष या उपसभापति का पद मृत्यु, निष्कासन, त्यागपत्र या अन्य किसी कारण से रिक्त होने की स्थिति की सूचना तत्काल राज्य निर्वाचन आयोग को दी जाएगी, रिक्ति को भरने के लिए चुनाव होगा। इस तरह से आयोजित किया जा सकता है जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है। इस अधिनियम के पूर्वगामी प्रावधान ऐसे चुनाव पर लागू होंगे और इस प्रकार निर्वाचित सदस्य या अध्यक्ष या उप-सभापति उस शेष अवधि के लिए पद धारण करेंगे, जिसके दौरान निवर्तमान सदस्य या अध्यक्ष या उप सभापति पद धारण करने के हकदार होते। कार्यालय, यदि रिक्ति नहीं हुई होती:

बशर्ते कि रिक्ति को भरने के लिए आवश्यक नहीं होगा यदि ऐसी रिक्ति की अवधि रिक्ति होने की तारीख से छह महीने के साथ समाप्त हो जाएगी।

43. चुनाव के संबंध में विवाद का निर्धारण। – (1) इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत किसी भी उम्मीदवार द्वारा इस तरह के चुनाव में किसी भी उम्मीदवार द्वारा निर्धारित तरीके से जिला न्यायाधीश को इस संबंध में एक याचिका निर्धारित आधार पर और निर्धारित सीमा के भीतर प्रस्तुत करके प्रश्नगत किया जा सकता है। अवधि ;

बशर्ते कि पूर्वोक्त रूप में प्रस्तुत की गई एक चुनाव याचिका, लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, जिला न्यायाधीश द्वारा सुनवाई और निपटान के लिए एक सिविल जज या अतिरिक्त सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) को उनके अधीनस्थ में स्थानांतरित किया जा सकता है।

(2) उप-धारा (1) के तहत प्रस्तुत एक याचिका की सुनवाई और निर्धारित तरीके से निपटारा किया जाएगा और उस पर न्यायाधीश का निर्णय अंतिम होगा।

44. व्यवसाय का संचालन। – कोई पंचायती राज संस्था अपने व्यवसाय के संचालन में ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगी जो विहित की जाए।

45. पंचायत की बैठकें। – (1) पंचायत , जितनी बार आवश्यक हो, व्यवसाय के लेन-देन के लिए बैठक करेगी और पखवाड़े में कम से कम एक बार पंचायत के कार्यालय में और ऐसे समय पर जो सरपंच निर्धारित करे।

(2) सरपंच, जब भी वह ठीक समझे, और सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई के लिखित अनुरोध पर और इस तरह के अनुरोध की प्राप्ति से पंद्रह दिनों के भीतर, विशेष बैठक बुला सकता है।

(3) एक साधारण बैठक की सात स्पष्ट दिन की सूचना और ऐसी बैठक के स्थान, तारीख और समय और उसमें किए जाने वाले कार्य को निर्दिष्ट करते हुए विशेष बैठक की तीन स्पष्ट दिनों की सूचना सचिव द्वारा सदस्यों और ऐसे अधिकारियों को दी जाएगी। सरकार निर्धारित कर सकती है और पंचायत के नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर सकती है।

(4) जिन अधिकारियों को उप-धारा (3) के तहत नोटिस दिया गया है और पंचायत क्षेत्र या उसके किसी हिस्से पर अधिकार क्षेत्र वाले अन्य सरकारी अधिकारी पंचायत की प्रत्येक बैठक में भाग लेने और कार्यवाही में भाग लेने के हकदार होंगे, लेकिन वे वोट देने का अधिकार नहीं है।

(5) यदि सरपंच उप-धारा (2), उप-सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में विशेष बैठक बुलाने में विफल रहता है, तो सक्षम प्राधिकारी ऐसी बैठक को उसके वाद पंद्रह दिनों से अधिक नहीं बुला सकता है और आवश्यकता होगी सचिव को सदस्यों को नोटिस देने और बैठक बुलाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा।

46. पंचायत समिति की बैठकें। – (1) पंचायत समिति महीने में कम से कम एक बार व्यापार के लेन-देन के लिए एक बैठक आयोजित करेगी (इसके वाद इस खंड में सामान्य बैठक कहा जाता है।)

(2) पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक सामान्यतः पंचायत समिति के मुख्यालय में आयोजित की जायेगी।

[(3) प्रधान और उप-प्रधान के चुनाव के वाद पहली बैठक की तारीख प्रधान द्वारा तय की जाएगी] और प्रत्येक वाद की साधारण बैठक की तारीख पंचायत समिति की पिछली बैठक में तय की जाएगी, बशर्ते कि प्रधान पर्याप्त हो कारण, बैठक के दिन को बदल दें या इसे वाद की तारीख के लिए स्थगित कर दें। प्रधान जब भी उचित समझे, और सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई के लिखित अनुरोध पर और इस तरह के अनुरोध की प्राप्ति से पंद्रह दिनों के भीतर एक विशेष बैठक बुला सकता है। ऐसा अनुरोध उस उद्देश्य को निर्दिष्ट करेगा जिसके लिए बैठक बुलाए जाने का प्रस्ताव है। यदि प्रधान विशेष बैठक बुलाने में विफल रहता है, तो उप-प्रधान या सक्षम प्राधिकारी एक दिन के लिए विशेष बैठक बुला सकता है, जो पंद्रह दिनों से अधिक नहीं हो और विकास अधिकारी से सदस्यों को नोटिस देने और ऐसी कार्रवाई करने की अपेक्षा की जा सकती है। बैठक बुलाना आवश्यक होगा।

(4) एक साधारण बैठक की दस स्पष्ट दिन की सूचना और एक विशेष बैठक की सात स्पष्ट दिनों की सूचना, जिसमें उस समय और स्थान को निर्दिष्ट किया जाता है, जिस पर ऐसी बैठक आयोजित की जानी है, सदस्यों को भेजी जाएगी और उस पर चिपका दी जाएगी। पंचायत समिति का नोटिस बोर्ड। इस तरह के नोटिस में विशेष बैठक के मामले में ऐसी बैठक के लिए किए गए लिखित अनुरोध में उल्लिखित कोई प्रस्ताव या प्रस्ताव शामिल होगा।

47. जिला परिषद की बैठक। – प्रत्येक जिला परिषद प्रत्येक तीन महीने में कम से कम एक बार, संबंधित जिले की स्थानीय सीमाओं के भीतर ऐसे समय और ऐसे स्थान पर बैठकें आयोजित करेगी, जो जिला परिषद तत्काल पूर्ववर्ती बैठक में तय करे:

[बशर्ते कि प्रमुख और उप-प्रमुख के चुनाव के वाद पहली बैठक जिला परिषद मुख्यालय में ऐसी तारीख और समय पर होगी जो प्रमुख द्वारा तय की जाए।]

परन्तु यह और कि प्रधान जब भी ठीक समझे और जब जिला परिषद के एक तिहाई सदस्यों द्वारा लिखित रूप में बैठक बुलाने की आवश्यकता हो, तो वह दस दिनों के भीतर ऐसा कर सकेगा, ऐसा न करने पर सक्षम प्राधिकारी सात स्पष्ट समय के वाद बैठक बुला सकता है। जिला परिषद के सदस्यों को दिनों की सूचना।

48. कोरम और प्रक्रिया। – (1) पंचायती राज संस्था की बैठक के लिए गणपूर्ति कुल सदस्यों की संख्या का एक तिहाई होगी। यदि बैठक के लिए नियत समय पर, कोरम मौजूद नहीं है, तो पीठासीन प्राधिकारी तीस मिनट तक प्रतीक्षा करेगा, और यदि ऐसी अवधि के भीतर कोई गणपूर्ति नहीं है, तो पीठासीन प्राधिकारी अगले दिन बैठक को ऐसे समय के लिए स्थगित कर देगा या ऐसा भविष्य का दिन जो वह ठीक कर सकता है। इसी प्रकार, तीस मिनट तक प्रतीक्षा करने के वाद, यदि बैठक शुरू होने के वाद किसी भी समय, कोरम की कमी पर ध्यान आकर्षित किया जाता है, तो वह स्थगित कर देगा। इस प्रकार नियत बैठक की सूचना संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यालय में चस्पा की जायेगी। जिस कार्य पर कोरम के अभाव में स्थगित बैठक में विचार नहीं किया जा सकता है, उसे बैठक में पहले लाया जाएगा और इस तरह तय की गई बैठक में निपटाया जाएगा, भले ही ऐसी बैठक में कोरम हो या न हो।

पंचायती राज की प्रत्येक बैठक में इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अन्यथा उपबंधित के सिवाय, संस्था का अध्यक्ष संबंधित संस्था का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसी संस्था का उपाध्यक्ष अध्यक्षता करेगा और दोनों की अनुपस्थिति में, सदस्य इस अवसर की अध्यक्षता करने के लिए अपने में से किसी एक को चुनेंगे बशर्ते कि ऐसा सदस्य हिंदी पढ़ने और लिखने में सक्षम हो।

(2) सभी प्रश्न, जब तक कि अन्यथा विशेष रूप से प्रदान नहीं किया जाता है, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया जाएगा। अध्यक्ष या उपसभापति या अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति, जैसा भी मामला हो, जब तक कि मतदान से परहेज नहीं किया जाता है, किसी प्रश्न के पक्ष और विपक्ष में मतों की संख्या घोषित करने से पहले अपना वोट देगा और मतों की समानता के मामले में, वह अपना वोट दे सकता है। वोट।

(3) पंचायती राज संस्था का कोई भी सदस्य पंचायती राज संस्था की बैठक में विचार के लिए आने वाले किसी भी प्रश्न पर मतदान नहीं करेगा या चर्चा में भाग नहीं लेगा यदि प्रश्न ऐसा है जिसमें जनता के लिए इसके सामान्य आवेदन के अलावा, उसका कोई आर्थिक हित है और जब ऐसा प्रश्न विचार के लिए आता है तो वह बैठक की अध्यक्षता नहीं करेगा।

(4) यदि अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति को बैठक में उपस्थित किसी भी सदस्य द्वारा चर्चा के तहत किसी भी मामले में ऐसा कोई आर्थिक हित माना जाता है और यदि इस आशय का प्रस्ताव किया जाता है, तो वह इस तरह की चर्चा या वोट के दौरान बैठक की अध्यक्षता नहीं करेगा। या इसमें भाग लें। इस तरह की चर्चा जारी रहने के दौरान संबंधित पंचायती राज संस्था के किसी भी सदस्य को बैठक की अध्यक्षता करने के लिए चुना जा सकता है।

(5) पंचायती राज संस्था का कोई भी संकल्प उसके पारित होने के छह महीने के भीतर संशोधित या रद्द नहीं किया जाएगा, सिवाय एक साधारण या विशेष बैठक में सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम दो तिहाई द्वारा पारित प्रस्ताव के।

(6) प्रत्येक बैठक की कार्यवाही बैठक के विचार-विमर्श के तुरंत वाद कार्यवृत्त पुस्तिका में दर्ज की जाएगी और बैठक के पीठासीन प्राधिकारी द्वारा पढ़ी जाने के वाद उसके द्वारा हस्ताक्षरित की जाएगी। बैठक के निर्णयों पर की गई कार्रवाई की सूचना पंचायती राज संस्था की अगली बैठक में दी जायेगी। कार्यवृत्त पुस्तिका हमेशा पंचायती राज संस्था के कार्यालय में रखी जाएगी। कार्यवृत्त पुस्तिका को किसी भी परिस्थिति में कार्यालय के बाहर नहीं ले जाया जाएगा। पंचायत के मामले में सरपंच, पंचायत समिति के मामले में विकास अधिकारी और जिला परिषद के मामले में मुख्य कार्यकारी अधिकारी ग्रहणशील रूप से कार्यवृत्त का संरक्षक होगा।

(7) पंचायती राज संस्था को अपनी बैठकों में जिला स्तरीय सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति की आवश्यकता हो सकती है। यदि किसी पंचायत समिति या जिला परिषद को यह प्रतीत होता है कि सरकार के किसी ऐसे अधिकारी की उपस्थिति जो किसी जिले के क्षेत्र या किसी जिले से कम क्षेत्र पर अधिकारिता रखता है और पंचायत समिति या जिला परिषद के अधीन कोई कार्य नहीं करता है, की उपस्थिति वांछनीय है। पंचायत समिति या जिला परिषद की बैठक, विकास अधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी, ऐसे अधिकारी को संबोधित पत्र द्वारा, अपेक्षित बैठक से कम से कम पंद्रह दिन पहले उस अधिकारी को बैठक में उपस्थित होने का अनुरोध करेगा और अधिकारी जब तक बीमारी या अन्य उचित कारण से रोका गया, बैठक में शामिल हों:

परन्तु ऐसा अधिकारी ऐसा पत्र प्राप्त होने पर यदि वह पूर्वोक्त कारणों में से किसी कारण से स्वयं उपस्थित होने में असमर्थ है, तो उसका उप या अन्य सक्षम अधीनस्थ अधिकारी बैठक में उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है।

49. पंचायती राज संस्था के किसी अधिनियम का रिक्ति या अनियमितता से अविधिमान्य न होना। – किसी पंचायती राज संस्था के किसी भी कार्य को केवल ऐसी संस्था के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के कार्यालय में या ऐसी पंचायती राज संस्था के लिए निर्धारित संख्या या सदस्यों के रिक्त होने के कारण या किसी त्रुटि, त्रुटि के कारण अवैध नहीं माना जाएगा। ऐसी पंचायती राज संस्था के अध्यक्षों या उपाध्यक्ष या सदस्यों के चुनाव या नियुक्ति में चूक या अनियमितता।

50. पंचायत के कार्य और शक्तियां। – ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो सरकार द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं, पंचायत कार्यों का निष्पादन करेगी और प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग करेगी।

51. पंचायत समिति के कार्य और शक्तियां। – ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो सरकार द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं, पंचायत समिति कार्य करेगी और द्वितीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग करेगी।

52. जिला परिषद के कार्य और शक्तियां। – ऐसी शर्तों के अधीन, जो सरकार द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं, जिला परिषद कार्यों का निष्पादन करेगी और तीसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग करेगी।

53. पंचायत को कार्यों का समनुदेशन। – (ठ) सरकार, अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन, जो ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं-

(ए) किसी पंचायत को पंचायत क्षेत्र में स्थित वन के प्रबंधन और रखरखाव का हस्तांतरण;

(बी) पंचायत क्षेत्र के भीतर स्थित सरकार से संबंधित अपशिष्ट, चारागाह भूमि या खाली भूमि का प्रबंधन पंचायत को सौंपना;

(सी) ऐसे अन्य कार्यों को सौंपना जो निर्धारित किया जा सकता है:

बशर्ते कि जब किसी जंगल के प्रबंधन और रखरखाव का कोई हस्तांतरण खंड (ए) के तहत किया जाता है, तो सरकार निर्देश देगी कि ऐसे प्रबंधन और रखरखाव के लिए आवश्यक कोई भी राशि या ऐसे जंगल से होने वाली आय का पर्याप्त हिस्सा वनों के निपटान में रखा जाए। पंचायत ।

(2) सरकार अधिसूचना द्वारा, इस धारा के तहत सौंपे गए कार्यों को संशोधित कर सकती है।

54. पंचायत समिति या जिला परिषद को कार्यों का समनुदेशन। – (1) सरकार किसी पंचायत समिति या जिला परिषद को ऐसे मामलों के संबंध में कार्य सौंप सकती है, जिन पर राज्य सरकार का कार्यकारी प्राधिकरण विस्तारित होता है या ऐसे कार्य जो केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को सौंपे गए हैं।

(2) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस धारा के तहत सौंपे गए कार्यों को वापस ले सकती है या संशोधित कर सकती है।

55. पंचायत समिति या जिला परिषद की सामान्य शक्तियाँ और उनका प्रतिनिधिमंडल। – (1) पंचायत समिति या जिला परिषद को सौंपे गए या सौंपे गए कार्यों को करने के लिए आवश्यक या आनुषंगिक सभी कार्यों को करने की शक्ति होगी और, विशेष रूप से, और पूर्वगामी शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सभी का प्रयोग करने की शक्ति होगी। इस अधिनियम के तहत निर्दिष्ट शक्तियाँ।

(2) पंचायत समिति संकल्प द्वारा विकास अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन पंचायत समिति को प्रदत्त शक्तियों में से कोई भी अधिकार प्रत्यायोजित कर सकती है।

(3) जिला परिषद, संकल्प द्वारा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी को इस अधिनियम के तहत प्रदान की गई किसी भी शक्ति को जिला परिषद में प्रत्यायोजित कर सकती है।

[55ए. पंचायत की स्थायी समितियाँ। – (1) प्रत्येक पंचायत निम्नलिखित विषयों के समूह के लिए एक-एक स्थायी समितियों का गठन करेगी, अर्थात्: –

(ए) प्रशासन और स्थापना;

(बी) वित्त और कराधान;

(सी) कृषि, पशुपालन, लघु सिंचाई, सहकारिता, कुटीर उद्योग और अन्य संबद्ध विषयों से संबंधित विकास और उत्पादन कार्यक्रम;

(डी) शिक्षा; तथा

(ई) ग्रामीण जलापूर्ति, स्वास्थ्य और स्वच्छता, ग्रामदान, संचार, कमजोर वर्गों और संबद्ध विषयों के कल्याण सहित सामाजिक सेवाएं और सामाजिक न्याय।

(2) पंचायत उप-धारा (1) में उल्लिखित किसी भी समूह या समूहों में शामिल नहीं किए गए विषयों में से किसी के लिए एक छठी स्थायी समिति का गठन कर सकती है।

(3) स्थायी समितियों का गठन इस प्रकार किया जाएगा कि प्रत्येक सदस्य को कम से कम एक ऐसी समिति में जगह मिले।

(4) प्रत्येक स्थायी समिति में पंचायत के निर्वाचित सदस्यों में से विहित रीति से निर्वाचित पांच सदस्य होंगे।

(5) सरपंच उप-धारा (1) के खंड (ए) में निर्दिष्ट विषयों के समूह के लिए पदेन सदस्य और स्थायी समिति के अध्यक्ष होंगे और अन्य स्थायी समिति के अध्यक्ष के पदेन सदस्य होंगे प्रशासन और स्थापना समिति।

(6) उप-सरपंच यदि वह किसी स्थायी समिति का सदस्य चुना जाता है, जिसका सरपंच सदस्य नहीं है, तो वह उसका पदेन अध्यक्ष होगा।

(7) प्रत्येक अन्य स्थायी समिति का अध्यक्ष, जिसका कोई पदेन अध्यक्ष नहीं है, निर्धारित तरीके से निर्वाचित किया जाएगा।

(8) एक स्थायी समिति, जिसका एक पदेन या निर्वाचित अध्यक्ष होता है, उसकी प्रत्येक बैठक में, जिसमें ऐसा अध्यक्ष उपस्थित नहीं होता है, अपने सदस्यों में से ऐसी बैठक के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव करेगी।

(9) प्रत्येक स्थायी समिति उसे सौंपे गए विषय के संबंध में, ऐसी शक्तियों का प्रयोग और पंचायत के ऐसे कार्यों का पालन करेगी जो वह समय-समय पर ऐसी स्थायी समिति को सौंपे।

(10) यदि किसी स्थायी समिति का कोई सदस्य, उसके अध्यक्ष की पूर्व अनुमति के बिना, स्थायी समिति की लगातार पांच बैठकों से अनुपस्थित रहता है, जिसकी उसे उचित सूचना थी, तो स्थायी समिति में उसका स्थान रिक्त घोषित होने के लिए उत्तरदायी होगा :

परन्तु यदि अध्यक्ष स्वयं इस प्रकार अनुपस्थित है तो वह ऐसी अनुपस्थिति के लिए सरपंच का अनुमोदन प्राप्त करेगा या यदि अध्यक्ष स्वयं सरपंच है तो उसके लिए पंचायत का अनुमोदन प्राप्त किया जाएगा।

(11) उप-धारा (10) के प्रयोजन के लिए, स्थायी समिति के सदस्य, जो इस प्रकार अनुपस्थित रहते हैं, उनकी ऐसी लगातार चार बैठकों से स्वयं को, चौथी बैठक की समाप्ति के तुरंत वाद एक नोटिस के साथ तामील किया जाएगा, जिसमें विवरण निर्दिष्ट किया जाएगा। जिन बैठकों में वह उपस्थित नहीं हुए और उन्हें सूचित किया कि अगली बैठक में उपस्थित न होने पर स्थायी समिति में उनका स्थान रिक्त घोषित कर दिया जाएगा और यदि ऐसा सदस्य पांचवीं बैठक में शामिल नहीं होता है या इसके विपरीत कारण नहीं बताता है, तदनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक घोषणा की जाएगी।]

[56. पंचायत समिति की स्थायी समितियाँ। – (1) प्रत्येक पंचायत समिति धारा 55-ए की उप-धारा (1) में निर्दिष्ट विषयों के समूहों के लिए पांच स्थायी समितियों का गठन करेगी और किसी भी ऐसे विषय के लिए छठी समिति का गठन कर सकती है जो किसी भी समूह में निर्दिष्ट नहीं है। उपरोक्त के रूप में विषय।

(2) ऐसी समितियों के गठन, कार्यकाल और कार्य संचालन के संबंध में और अन्य संबंधित मामलों में, धारा 55-ए के प्रावधान परिवर्तन के अधीन लागू होंगे, परिवर्तन के अधीन कि अभिव्यक्ति “सरपंच”, उप-सरपंच के लिए और “पंचायत ” अभिव्यक्ति “प्रधान”, “उप-प्रधान और “पंचायत समिति” को क्रमशः प्रतिस्थापित किया जाएगा।]

[रंग। जिला परिषद की स्थायी समितियाँ। – (1) प्रत्येक जिला परिषद धारा 55-ए की उप-धारा (1) में निर्दिष्ट विषयों के समूहों के लिए पांच स्थायी समितियों का गठन करेगी और किसी भी समूह में निर्दिष्ट नहीं किए गए किसी भी विषय के लिए छठी समिति का गठन कर सकती है। या पूर्वोक्त के रूप में विषयों के समूह।

(2) ऐसी समितियों और अन्य संबंधित मामलों के गठन, पद की अवधि और कार्य संचालन के संबंध में, धारा 55-ए के प्रावधान परिवर्तन के अधीन लागू होंगे, जो कि “सरपंच”, उप-सरपंच पदों के लिए भिन्नता के अधीन हैं। और “पंचायत ” अभिव्यक्ति “प्रमुख”, “उप-प्रमुख” और “जिला परिषद”

क्रमशः प्रतिस्थापित किया जाएगा।]

58. स्थायी समितियों से अभिलेख मंगवाने की शक्ति। – [एक पंचायत , एक पंचायत समिति या, जैसा भी मामला हो, एक जिला परिषद] किसी भी समय कॉल या कोई दस्तावेज जिसमें किसी स्थायी समिति की बैठकों की कार्यवाही से उद्धरण और कोई विवरणी, विवरण खाता या संबंधित या संबंधित रिपोर्ट शामिल है किसी भी मामले के साथ जिसके साथ ऐसी स्थायी समिति को अधिकृत या निपटने के लिए निर्देशित किया गया है, और ऐसी हर मांग का अनुपालन स्थायी समिति द्वारा किया जाएगा।

59. स्थायी समितियों के निर्णयों को संशोधित करने की शक्ति। – (1) [एक पंचायत , एक पंचायत समिति या, जैसा भी मामला हो, एक जिला परिषद] आवेदन करने पर या अन्यथा, अपनी किसी स्थायी समिति के किसी भी निर्णय के रिकॉर्ड की जांच कर सकता है और पुष्टि कर सकता है, सम्मान कर सकता है या इस तरह के निर्णय को संशोधित करें:

बशर्ते कि इस उप-धारा के तहत कोई कार्रवाई संशोधित किए जाने वाले निर्णयों की तारीख से तीन महीने की समाप्ति के वाद शुरू नहीं की जाएगी।

(2) उप-धारा (1) के तहत [पंचायत , पंचायत समिति या, जैसा भी मामला हो, जिला परिषद] आदेश, अपनी स्थायी समिति के निर्णय को उलटने या संशोधित करने के लिए कम से कम बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए। इसके सदस्यों की कुल संख्या का दो-तिहाई नहीं होने पर स्थायी समिति का निर्णय मान्य होगा।

60. स्थायी समिति की बैठकें। – अपनी बैठकों में कार्य संचालन के संबंध में, एक स्थायी समिति ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगी जो ऐसी बैठकों के संचालन के लिए निर्धारित की जा सकती है।

[60ए. सतर्कता समिति। – (1) राज्य सरकार प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र और प्रत्येक जिला परिषद क्षेत्र के लिए एक सतर्कता समिति का गठन कर सकती है और ऐसी समितियों में पांच सदस्य होंगे जिनमें से तीन सदस्य संबंधित पंचायती राज संस्था के निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे।

(2) उप-धारा (1) के तहत गठित सतर्कता समिति संबंधित पंचायती राज संस्था के कार्यों, योजनाओं और अन्य गतिविधियों का पर्यवेक्षण करेगी।

(3) सतर्कता समिति अपनी रिपोर्ट संबंधित पंचायती राज संस्था के अध्यक्षों को प्रस्तुत करेगी।]

61. पंचायतयतों के आदेशों की अपीलें। – (1) इस अधिनियम के तहत या उसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या उप-नियम के तहत किसी पंचायत के किसी आदेश या निर्देश से व्यथित कोई भी व्यक्ति, ऐसे आदेश या निर्देश की अपील करने की तारीख से तीस दिनों के भीतर अधिकार क्षेत्र वाली पंचायत समिति को अपील कर सकता है। ऐसे आदेश या निर्देश की प्रति प्राप्त करने के लिए अपेक्षित समय को छोड़कर।

(2) उप-धारा (1) के तहत एक अपील की सुनवाई धारा 56 की उप-धारा (1) के खंड (ए) के तहत गठित पंचायत समिति की स्थायी समिति द्वारा की जाएगी।

(3) उप-धारा (2) में निर्दिष्ट स्थायी समिति, पीड़ित व्यक्तियों को सुनने के वाद, पंचायत और आदेश या निर्देश से प्रभावित किसी अन्य व्यक्ति को अलग-अलग करने, अलग करने या ऐसे आदेश या निर्देश की पुष्टि करने के लिए अपील कर सकती है और पुरस्कार भी दे सकती है अपील दायर करने वाले व्यक्तियों को या उनके विरुद्ध लागत।

(4) इस प्रयोजन के लिए स्थायी समिति का निर्णय पंचायत समिति का निर्णय समझा जाएगा।

62. शास्ति अधिरोपित करने की पंचायत की शक्ति। – यदि कोई पंचायत इस बात से संतुष्ट है कि किसी व्यक्ति ने पंचायत द्वारा पारित किसी सामान्य या विशेष आदेश की अवज्ञा की है, तो वह यह निर्देश दे सकती है कि वह व्यक्ति शास्ति के रूप में एक ऐसी राशि का भुगतान करेगा जो दो सौ रुपए तक हो सकती है और, अवज्ञा एक निरंतर है, एक और रम जो पहले दिन के वाद हर दिन के लिए दस रुपये तक बढ़ सकती है, जिसके दौरान अवज्ञा जारी रहती है।

63. संपत्तियों के अधिग्रहण, धारण और निपटान की शक्ति। – (1) पंचायती राज संस्था को संपत्ति अर्जित करने, धारण करने और बेचने और अनुबंध करने की शक्ति होगी:

बशर्ते कि अचल संपत्ति के अधिग्रहण या निपटान के सभी मामलों में संबंधित पंचायती राज संस्थान राज्य सरकार का पूर्व अनुमोदन प्राप्त करेगा।

(2) पंचायती राज संस्था द्वारा अपनी निधि से निर्मित सभी सड़कें, भवन या अन्य कार्य उसमें निहित होंगे।

(3) राज्य सरकार किसी पंचायती राज संस्था को ऐसी पंचायती राज संस्था के अधिकार क्षेत्र में स्थित कोई सार्वजनिक संपत्ति आवंटित कर सकती है और उसके वाद ऐसी संपत्ति ऐसी पंचायती राज संस्था में और उसके नियंत्रण में निहित होगी।

(4) जहां पंचायती राज संस्था को इस अधिनियम के किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए भूमि की आवश्यकता होती है, वह उक्त भूमि में रुचि रखने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ बातचीत कर सकती है या राज्य सरकार या इस में अधिकृत अधिकारी को आवेदन कर सकती है। भूमि के अधिग्रहण के लिए, जो, यदि वह संतुष्ट है कि भूमि एक सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक है, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (1894 का केंद्रीय संख्या 1) के प्रावधानों के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए कदम उठा सकता है और ऐसी भूमि अधिग्रहण पर संबंधित पंचायती राज संस्था में निहित हो जाएगी।

64. निधि। – (1) प्रत्येक पंचायती राज संस्था के लिए संबंधित पंचायती राज संस्था के नाम की एक निधि का गठन किया जाएगा और उसे जमा किया जाएगा:

(ए) केंद्र या राज्य सरकार द्वारा किए गए योगदान और अनुदान, यदि कोई हो, जिसमें राज्य में एकत्र किए गए भूमि राजस्व के ऐसे हिस्से शामिल हैं जो सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है;

(बी) राज्य वित्त आयोग द्वारा अनुमोदित करों या अन्य राजस्व का हिस्सा;

(ग) किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा दिया गया अंशदान और अनुदान, यदि कोई हो;

(डी) ऋण, यदि कोई हो, जो केंद्र या राज्य सरकार द्वारा दिया गया हो या संबंधित पंचायती राज संस्थान द्वारा उठाया गया हो;

(ई) संबंधित पंचायती राज संस्थान द्वारा लगाए गए टोल, करों और शुल्क के कारण सभी प्राप्तियां;

(च) संबंधित पंचायती राज संस्थान के नियंत्रण और प्रबंधन में निहित, निर्मित या रखे गए किसी स्कूल, अस्पताल, औषधालयों, भवन संस्थानों या कार्यों के संबंध में सभी रसीदें;

(छ) उपहार या योगदान के रूप में प्राप्त सभी राशि और संबंधित पंचायती राज संस्थान के पक्ष में किए गए किसी ट्रस्ट या बंदोबस्ती से सभी आय;

(ज) इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए उप-नियमों के प्रावधानों के तहत लगाए गए और वसूल किए गए सभी जुर्माने या दंड; तथा

(i) संबंधित पंचायती राज संस्था द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त अन्य सभी राशियाँ।

(2) प्रत्येक पंचायती राज संस्था अधिकारियों और कर्मचारियों को वेतन, भत्ता, भविष्य निधि और उपदान के भुगतान सहित, अपने स्वयं के प्रशासन की लागत को पूरा करने के लिए आवश्यक राशियों को अलग रखेगी और लागू करेगी। स्थापना पर कुल व्यय संबंधित पंचायती राज संस्था के कुल व्यय के तीस प्रतिशत से अधिक नहीं होगा:

बशर्ते कि ऋणों की अदायगी संबंधित पंचायती राज संस्था को वार्षिक बजट अनुमानों में प्रदान की जाएगी।

[बशर्ते कि राज्य सरकार द्वारा विशिष्ट योजनाओं या कार्यक्रमों में स्थापना पर तीस प्रतिशत व्यय की सीमा में छूट दी जा सकती है।]

(3) एक पंचायती राज संस्था को इस अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसी राशि खर्च करने की शक्ति होगी जो वह उचित समझे और वर्तमान खर्चों को चुकाने के लिए रखी जाने वाली अग्रदाय की राशि का निर्धारण कर सकती है।

[(4) पंचायती राज संस्था निधि संबंधित पंचायती राज संस्था में निहित होगी और निधि के जमा की शेष राशि किसी भी अनुसूचित बैंक के निकटतम कोषागार/उप कोषागार, डाकघर या शाखा में व्यक्तिगत जमा खाते में रखी जाएगी। ।]

(5) ऐसे सामान्य नियंत्रण के अधीन रहते हुए, जो पंचायत समिति या जिला परिषद समय-समय पर प्रयोग कर सकती है, पंचायत समिति या जिला परिषद निधि से भुगतान के लिए सभी आदेश और चेक, क्रमशः विकास अधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होंगे और जिला परिषद की पंचायत समिति द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उसकी अनुपस्थिति

बशर्ते कि पंचायत या जिला परिषद के ऐसे सभी आदेश और चेक रुपये से अधिक की राशि के लिए। 20,000 – यथास्थिति, प्रधान या प्रमुख द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जाएगा और पंचायत के मामले में सभी निकासी सरपंच और सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर के साथ होगी।

65. कर जो एक पंचायत द्वारा लगाया जा सकता है। – (1) इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा दिए गए नियमों और किन्हीं आदेशों के अधीन रहते हुए कोई पंचायत निम्नलिखित में से एक या अधिक कर लगा सकती है, अर्थात्:-

(ए) व्यक्तियों के स्वामित्व वाले भवन पर ऐसी दर से अधिक नहीं जो निर्धारित की जा सकती है;

(बी) उपभोग या उपयोग के लिए पंचायत सर्कल के भीतर लाए गए जानवरों या सामानों पर एक चुंगी;

(सी) वाहन कर उन पर छोड़कर जो खेती के उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाते हैं;

(डी) तीर्थ कर;

(e) पंचायत सर्किल के भीतर पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था के लिए एक कर;

(च) वाणिज्यिक फसलों पर कर;

(छ) कोई अन्य कर जो संविधान के तहत राज्य विधानमंडल के पास है, राज्य में लगाने की शक्ति है और जिसे सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है।

(2) उप-धारा (1) के तहत करों को इस तरह से निर्धारित और बढ़ाया जाएगा और ऐसे समय पर भुगतान या वसूल किया जाएगा जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है।

(3) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उप-धारा (2) के प्रावधानों के अधीन, किसी भी पंचायत से उप-धारा (1) में निर्दिष्ट किसी भी कर को ऐसी तारीख से और पर लागू करने की अपेक्षा कर सकती है। ऐसी दरें, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं।

(4) जब उप-धारा (3) के तहत कोई अधिसूचना लागू होती है, तो पंचायत उसमें निर्दिष्ट कर या कर लगाने के लिए आगे बढ़ेगी जैसे कि पंचायत के प्रस्ताव को लागू करने के लिए पारित किया गया था और यह वैध नहीं होगा इसके लिए इस प्रकार लगाए गए किसी भी कर को त्यागने, संशोधित करने या समाप्त करने के लिए:

बशर्ते कि राज्य सरकार किसी भी समय ऐसी किसी मांग को रद्द कर सकती है या इसे किसी भी तरह से संशोधित कर सकती है:

बशर्ते कि जब उप-धारा (3) के तहत राज्य सरकार की मांग पर कोई कर लगाया गया है, तो पंचायत द्वारा पहले से ऐसी मांग के बिना लगाया गया कोई अन्य कर उस तारीख से लगाया और वसूल किया जाना बंद हो जाएगा, जिस तारीख से उक्त मांग पर लगाया गया कर लगाया और वसूल किया जाना है:

बशर्ते कि उप-धारा (1) के खंड (सी) के तहत कर मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (1988 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 59) या किसी अन्य यांत्रिक रूप से चालित वाहन में परिभाषित मोटर वाहन पर नहीं लगाया जाएगा।

व्याख्या। – इस खंड के प्रयोजन के लिए “वाणिज्यिक फसलें” हैं मिर्च, कपास, सरसों, गन्ना ज़ीरा और मूंगफली।

66. सामुदायिक सेवा के लिए विशेष कर। – पंचायत उक्त क्षेत्र के निवासियों के लिए सामान्य उपयोगिता के किसी भी सार्वजनिक कार्य के निर्माण के लिए पंचायत क्षेत्र के वयस्क पुरुष सदस्यों पर विशेष कर लगा सकती है:

बशर्ते कि यह किसी सदस्य को स्वैच्छिक श्रम करने या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए जाने के बदले इस कर के भुगतान से छूट दे सकता है।

67. फीस वसूल करने की पंचायत की शक्ति। – कोई भी पंचायत अस्थायी निर्माण करने के लिए या कोई प्रक्षेपण करने के लिए या पंचायत में निहित किसी सार्वजनिक या अन्य भूमि के अस्थायी कब्जे के लिए या उसके द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा के लिए किसी भी लाइसेंस या अनुमति के लिए शुल्क ले सकती है या इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसके द्वारा किए गए किसी भी कर्तव्य के संबंध में।

(2) ऐसी फीस ऐसी दरों पर और ऐसी रीति से प्रभारित की जाएगी जो पंचायत द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या उप-नियमों में उपबंधित की जाए और पंचायत के लिए ऐसी किसी भी वसूली को पट्टे पर देना वैध होगा। सार्वजनिक नीलामी द्वारा शुल्क।

68. कर लगाने की पंचायत समिति की शक्तियाँ। – (1) पंचायत समिति कृषि भूमि के उपयोग या कब्जे के लिए देय किराए पर पचास पैसे की दर से ऐसे किराए के रूप में निर्धारित तरीके से कर लगा सकती है, ऐसा कर व्यक्ति द्वारा देय है या व्यक्तियों को अलग-अलग या संयुक्त रूप से ऐसी भूमि के कृषि कब्जे में या उससे किसी भी आय के संबंध में।

(2) कला के प्रावधान के अधीन। भारत के संविधान के 276 और राज्य सरकार के किसी भी सामान्य या विशेष आदेश के लिए, एक पंचायत समिति भी निर्धारित तरीके से सभी या निम्नलिखित में से कोई भी कर लगा सकती है, अर्थात्: –

(ए) ऐसे ट्रेडों, कॉलिंग, पेशे और उद्योगों पर कर जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है;

(बी) एक प्राथमिक शिक्षा उपकर; तथा

(सी) अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा के भीतर आयोजित पंचायत समिति मेलों के संबंध में एक कर।

69. कर और फीस अधिरोपित करने की जिला परिषद की शक्ति। – ऐसी अधिकतम दरों के अधीन रहते हुए, जैसा कि सरकार विहित करे, कोई जिला परिषद लगा सकती है:-

(ए) मेले या मेटा के लिए लाइसेंस के लिए शुल्क;

(बी) पानी की दर, जहां पीने, सिंचाई या किसी भी उद्देश्य के लिए पानी की आपूर्ति के लिए प्रबंधन जिला परिषद द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में किया जाता है।

(सी) अधिभार –

(i) ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति की बिक्री पर स्टांप शुल्क पर पांच प्रतिशत तक; तथा

(ii) राजस्थान कृषि उत्पाद बाजार अधिनियम, 1961 (1961 का राजस्थान अधिनियम संख्या 38) की धारा 17 में निर्दिष्ट बाजार शुल्क पर आधा प्रतिशत तक।

70. भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली योग्य कर एवं शुल्क। – इस अधिनियम के तहत पंचायत , पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा लगाए जाने वाले सभी उपकर, कर शुल्क और शुल्क या उनके द्वारा दिए गए ऋण [या किसी भी सदस्य/अध्यक्ष/उप अध्यक्ष/किसी भी अधिकारी के खिलाफ देय या वसूली योग्य कोई राशि पंचायती राज संस्था की चूक के कारण, उसके द्वारा की गई धोखाधड़ी या उसके द्वारा पंचायती राज संस्था की निधि से अन्य प्रकार से देय] भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली योग्य होगी।

71. आकलन से अपील। – (1) इस अधिनियम के तहत किसी भी कर या शुल्क के निर्धारण, उद्ग्रहण या अधिरोपण से व्यथित कोई भी व्यक्ति सक्षम प्राधिकारी से अपील कर सकता है।

(2) उप-धारा (1) के तहत एक अपील, निर्धारण, लेवी या लगाए जाने की अपील की तारीख से नब्बे दिनों के भीतर की जा सकती है और उस पर सक्षम प्राधिकारी का निर्णय अंतिम होगा।

72. लेवी को निलंबित करने की शक्ति। – राज्य सरकार किसी भी कर या शुल्क के उद्ग्रहण या अधिरोपण को निलंबित कर सकती है और किसी भी समय ऐसे निलंबन को रद्द कर सकती है।

73. आय में वृद्धि की अपेक्षा करने के लिए राज्य सरकार को शक्ति। – यदि राज्य सरकार की राय में, पंचायत , पंचायत समिति या जिला परिषद की आय इस अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों के उचित निर्वहन के लिए आवश्यक से कम हो जाती है, तो राज्य सरकार पंचायत , पंचायत समिति की आवश्यकता कर सकती है। या जिला परिषद को ऐसी अवधि के भीतर कदम उठाने के लिए, जो छह महीने से कम नहीं हो, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा आवश्यक समझी जाने वाली अपनी आय में वृद्धि करने के लिए मांग में निर्दिष्ट किया जा सकता है।

74. वार्षिक बजट। – (1) यथास्थिति, सरपंच या विकास अधिकारी या मुख्य कार्यपालक अधिकारी, प्रत्येक वर्ष में निर्धारित तिथि के पूर्व, क्रमशः पंचायत , पंचायत समिति या जिला परिषद के समक्ष एक प्रतिस्पर्धा लेखा तैयार करेगा और प्रस्तुत करेगा। 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित, तिथि और अपेक्षित प्राप्तियों और व्यय तक वास्तविक प्राप्तियां और व्यय, वित्तीय वर्ष के लिए संबंधित पंचायती राज संस्थान की आय, व्यय और अन्य प्राप्तियों के बजट अनुमानों के साथ शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के साथ अगले अप्रैल का पहला दिन।

(2) संबंधित पंचायती राज संस्था उसके वाद विनियोगों और बजट अनुमानों में निहित तरीकों और साधनों पर निर्णय करेगी।

(3) ऐसे अनुमानों में, संबंधित पंचायती राज संस्था अन्य बातों के अलावा: –

(ए) इस अधिनियम या किसी अन्य कानून द्वारा संबंधित पंचायती राज संस्थान पर लगाए गए कई कर्तव्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक सेवाओं के लिए पर्याप्त और उपयुक्त प्रावधान करना;

(बी) मूलधन और ब्याज की सभी किस्तों के भुगतान के लिए, जैसा कि वे देय हैं, प्रदान करें, जिसके लिए संबंधित पंचायती राज संस्थान इसके द्वारा अनुबंधित ऋणों के संबंध में उत्तरदायी हो सकता है;

(सी) उक्त वर्षों के अंत में राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाने वाली राशि से कम की शेष राशि की अनुमति नहीं है।

(4) पंचायत द्वारा अंतिम रूप से पारित बजट अनुमान विकास अधिकारी और पंचायत समिति को मुख्य कार्यकारी अधिकारी और जिला परिषद को [निदेशक, ग्रामीण विकास और पंचायती राज] को या उससे पहले प्रस्तुत किया जाएगा। जो निर्धारित किया जा सकता है, जो जांच के वाद, उसे अपनी टिप्पणियों के साथ पंचायत समिति या जिला परिषद या राज्य सरकार, जैसा भी मामला हो, स्वीकृति के लिए निर्धारित समय के भीतर रखेगा। यदि स्वीकृति प्राधिकारी संतुष्ट है कि इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी करने के लिए बजट अनुमानों में पर्याप्त प्रावधान नहीं किया गया है, तो उसे ऐसे संशोधनों का सुझाव देने की शक्ति होगी जो इस तरह के प्रावधान को पूरा करने और संबंधित को वापस करने के लिए आवश्यक हो सकते हैं। पंचायती राज संस्था उसमें किए जाने वाले संशोधनों के संबंध में अपनी टिप्पणियों के साथ। संबंधित पंचायती राज संस्था ऐसी टिप्पणियों पर विचार करेगी और बजट को ऐसे संशोधनों के साथ पारित करेगी जो वह उचित समझे:

बशर्ते कि, यदि स्वीकृति प्राधिकारी संबंधित पंचायती राज संस्थान को इस संबंध में निर्धारित समय के भीतर बजट वापस करने में विफल रहता है, तो संबंधित पंचायती राज संस्था प्रतिबद्ध मदों और व्यय की अन्य मदों पर व्यय कर सकती है जिसके लिए संबंधित पंचायती राज संस्थान राज्य योजना में विभिन्न कार्यक्रमों को दी गई प्राथमिकताओं के अनुरूप शुरू किए जाने वाले कार्यक्रमों के अध्यधीन अपने स्वयं के संसाधन जुटाता है या जुटाएगा:

परन्तु यह और कि पंचायती राज संस्था द्वारा व्यय की किसी भी मद पर, जिसके लिए समान अनुदान प्राप्त किया जाना है, तब तक कोई व्यय नहीं किया जायेगा जब तक कि स्वीकृति प्राधिकारी द्वारा बजट वापस नहीं कर दिया जाता है।

(5) यदि, एक वर्ष के दौरान, एक पंचायती राज संस्था इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए खर्च की जाने वाली राशि के वितरण या प्राप्ति के संबंध में बजट में कोई परिवर्तन करना आवश्यक पाती है, एक पूरक या संशोधित उप-भागों में प्रदान किए गए तरीके से बजट तैयार, पारित, प्रस्तुत और संशोधित किया जा सकता है। (1), (2) और (4)।

75. लेखा और लेखा परीक्षा। – (1) पंचायती राज संस्था ऐसे लेखा रखेगी और ऐसे विवरण ऐसे प्राधिकारियों को प्रस्तुत करेगी जो विहित किए जाएं।

(2) प्रत्येक पंचायती राज संस्था की प्राप्ति और व्यय के लेखे प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित प्रपत्र में रखे जायेंगे।

(3) एक पंचायती राज संस्था के वार्षिक खातों का एक सार, जिसमें प्रत्येक के पास अपनी आय या रसीद, स्थापना के लिए शुल्क, किए गए कार्य, प्रत्येक कार्य पर खर्च की गई राशि, शेष, यदि कोई हो, अव्यक्त शेष और ऐसे अन्य नियमों के अनुसार आवश्यक जानकारी को निर्धारित तरीके से तैयार और अंतिम रूप दिया जाएगा।

(4) पंचायती राज संस्था द्वारा रखे और रखे गए सभी खातों की लेखा परीक्षा, प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के वाद जितनी जल्दी हो सके, निदेशक, राज्य के लिए स्थानीय निधि लेखा परीक्षा और राजस्थान स्थानीय निधि के प्रावधानों द्वारा की जाएगी। लेखापरीक्षा अधिनियम, 1954 (1954 का राजस्थान अधिनियम 28) लागू होगा:

बशर्ते कि भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक भी [ऐसे खातों की लेखापरीक्षा कर सकते हैं और ऐसी लेखापरीक्षा रिपोर्ट राज्य सरकार द्वारा राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाएगी।]

(5) संबंधित पंचायती राज संस्था अपनी निधि से ऐसी लेखा परीक्षा के लिए प्रभारों के रूप में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राशि का भुगतान करेगी।

76. ऋण और डूबती निधि। – (1) पंचायती राज संस्था, स्थानीय प्राधिकरण द्वारा ऋण लेने से संबंधित किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, समय-समय पर इस उद्देश्य के लिए राज्य सरकार के ऋण के अनुमोदन से उठा सकती है। अधिनियम और ऐसे ऋणों के पुनर्भुगतान के लिए एक डूबती हुई निधि बनाएं।

(2) पंचायती राज संस्था अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ऐसी पंचायती राज संस्था द्वारा तैयार की गई विशिष्ट योजनाओं के आधार पर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार से या सरकार की पूर्व स्वीकृति से बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थाओं से धन उधार ले सकती है। उद्देश्य।

77. ऋण देने की शक्ति। – कोई पंचायती राज संस्था अपनी निधि से ऐसे व्यक्तियों, संस्थाओं या सोसायटियों को अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए और ऐसे नियमों और शर्तों के अधीन, जो विहित की जाएं, ऋण प्रदान कर सकती है।

78. सचिव [***] और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति। – (1) इस अधिनियम के प्रावधानों और तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए –

(ए) प्रत्येक पंचायत के लिए एक सचिव [xxx] होगा जिसे निर्धारित तरीके से नियुक्त किया जाएगा,

(ख) प्रत्येक पंचायत , पंचायत समिति के पूर्वानुमोदन से, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उस पर अधिरोपित कर्तव्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक सेवा शर्तों पर, जो विहित की जाए, ऐसे अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकती है।

(2) प्रत्येक पंचायत के सचिव का यह कर्तव्य होगा [***], सरपंच के नियंत्रण के अधीन-

(ए) पंचायत के रिकॉर्ड और रजिस्टर को अपनी हिरासत में रखने के लिए;

(बी) पंचायत की ओर से प्राप्त राशि के लिए अपने हस्ताक्षर के तहत रसीदें जारी करने के लिए;

(सी) पंचायत निधि के खातों को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होना;

(डी) पंचायत निधि की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए जिम्मेदार होना;

(ई) इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत या इसके तहत आवश्यक सभी बयान और रिपोर्ट तैयार करने के लिए;

(च) पंचायत द्वारा स्वीकृत सभी भुगतान करना;

(छ) ऐसे अन्य कार्यों और कर्तव्यों का पालन करना जो इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित या प्रत्यायोजित किए जा सकते हैं।

79. विकास अधिकारी और अन्य अधिकारी। – (1) राज्य सरकार प्रत्येक पंचायत समिति के लिए एक विकास अधिकारी [एक प्रखंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी] और ऐसे अन्य विस्तार अधिकारियों के साथ-साथ लेखाकारों और कनिष्ठ लेखाकारों की नियुक्ति करेगी जो वह आवश्यक समझे।

(2) उप-धारा (1) के तहत नियुक्त विकास अधिकारी, विस्तार अधिकारी, लेखाकार और कनिष्ठ लेखाकार होंगे –

(ए) या तो राज्य सेवा में शामिल व्यक्ति या राज्य सरकार के तहत पद धारण करने वाले व्यक्ति;

(बी) ऐसे नियमों और शर्तों पर पंचायत समिति में प्रतिनियुक्ति पर माना जाता है जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है; तथा

(सी) राज्य सरकार द्वारा हस्तांतरण के लिए उत्तरदायी।

80. पंचायत समिति के कर्मचारी। – (1) राज्य सरकार धारा 79 में निर्दिष्ट पदों के अलावा प्रत्येक श्रेणी के पदों की संख्या निर्धारित करेगी, जिसे वह प्रत्येक पंचायत समिति के लिए आवश्यक समझे और व्यक्तियों के वेतनमान और भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें निर्धारित करेगी। ऐसे पदों पर नियुक्त

(2) राज्य सरकार के पूर्वानुमोदन से, प्रत्येक पंचायत समिति, यदि आवश्यक समझे, प्रत्येक ऐसी श्रेणी के अतिरिक्त पद सृजित कर सकती है, जिनके वेतन भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें उप-धारा के तहत निर्धारित हैं। 1) ।

(3) उप-धारा (1) के तहत निर्धारित या उप-धारा (2) के तहत बनाई गई चतुर्थ श्रेणी सेवाओं में पद पर नियुक्ति विकास अधिकारी द्वारा निर्धारित तरीके से की जाएगी।

(4) उप-धारा (1) के तहत निर्धारित या उप-धारा (2) के तहत सृजित अन्य पदों पर नियुक्तियाँ पंचायत समिति द्वारा राजस्थान पंचायत समिति और गठित जिला परिषद सेवा के लिए चयनित व्यक्तियों में से निर्धारित तरीके से की जाएगी। धारा 89 के तहत

81. विकास अधिकारी की शक्तियां और कार्य। – (1) विकास अधिकारी –

(ए) पंचायत समिति और उसकी स्थायी समितियों की बैठकों के लिए प्रधान और स्थायी समितियों के अध्यक्ष के निर्देशों के तहत नोटिस जारी करना;

(बी) ऐसी सभी बैठकों में भाग लें और रिकॉर्ड करें और उनके कार्यवृत्त को बनाए रखें;

(ग) ऐसी बैठकों में विचार-विमर्श में भाग लेना; तथा

(डी) पंचायत समिति निधि से धन निकालना और वितरित करना:

परन्तु प्रधान लिखित कारणों से ऐसे भुगतान को रोक सकता है और मामले को पंचायत समिति या संबंधित स्थायी समिति के समक्ष रख सकता है; तथा

(ई) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करें और ऐसे अन्य कार्यों का प्रदर्शन करें जो उसे इस अधिनियम द्वारा या उसके तहत या उसे प्रत्यायोजित किए जा सकते हैं।

(2) यदि किसी कारण से विकास अधिकारी पंचायत समिति या उसकी स्थायी समिति की किसी बैठक में उपस्थित नहीं हो पाता है तो उसके अधीनस्थ वरिष्ठतम अधिकारी जो बैठक के स्थान पर उपस्थित हो सकता है, ऐसी बैठक में भाग लेगा।

[81-ए ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी की शक्तियां और कार्य। – प्रखंड प्रारंभिक अधिकारी –

(ए) पंचायत समिति के लिए प्रारंभिक शिक्षा के प्रभारी अधिकारी के रूप में कार्य करना; तथा

(बी) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करें और ऐसे अन्य कार्यों का पालन करें जो राज्य सरकार द्वारा उसे प्रदत्त या सौंपे गए हैं।]

82. मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अन्य अधिकारी। – (1) भारतीय प्रशासनिक सेवा या राजस्थान प्रशासनिक सेवा का एक अधिकारी [या ग्रामीण विकास विभाग द्वारा विशेष रूप से चयनित परियोजना निदेशक] जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा जिसे सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। इसी तरह, सरकार एक जिला परिषद के लिए एक अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी को ऐसे नियमों और शर्तों पर नियुक्त कर सकती है जो निर्धारित की जा सकती हैं।

[व्याख्या। #नाम? अधिकारी।]

(2) सरकार प्रत्येक जिला परिषद के लिए एक मुख्य लेखा अधिकारी, [एक जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी] और एक मुख्य योजना अधिकारी भी नियुक्त करेगी।

(3) सरकार समय-समय पर प्रत्येक जिला परिषद में अपने अधिकारियों की उतनी ही संख्या में नियुक्ति करेगी जितनी सरकार आवश्यक समझे।

(4) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य कानून में किसी बात के होते हुए भी सरकार या इसके द्वारा इस संबंध में अधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी के किसी अन्य अधिकारी को एक जिले से इस प्रकार तैनात अधिकारियों और अधिकारियों के स्थानांतरण को प्रभावित करने की शक्ति होगी। दूसरे करने के लिए।

83. जिला परिषद के कर्मचारी। – धारा 80 के प्रावधान किसी जिला परिषद के कर्मचारियों के संबंध में लागू होंगे, इस परिवर्तन के अधीन कि “धारा 79”, “पंचायत समिति” और “विकास अधिकारी” पदों के लिए, अभिव्यक्ति “धारा 82″, ” क्रमशः जिला परिषद” और “मुख्य कार्यकारी अधिकारी” को प्रतिस्थापित किया जाएगा।

84. मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अन्य अधिकारी की शक्ति और कार्य। – (1) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित के सिवाय, मुख्य कार्यपालक अधिकारी –

(ए) जिला परिषद की नीतियों, निर्णयों और निर्देशों का पालन करना और जिला परिषद के सभी कार्यों और विकास योजनाओं के त्वरित निष्पादन के लिए आवश्यक उपाय करना;

(बी) इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों द्वारा या उसके तहत उस पर लगाए गए कर्तव्यों का निर्वहन;

(सी) जिला परिषद के सामान्य अधीक्षण और नियंत्रण और ऐसे नियमों के अधीन जिला परिषद के अधिकारियों और सेवकों को नियंत्रित करना और ऐसे नियम बनाए जा सकते हैं;

(डी) जिला परिषद से संबंधित सभी कागजात और दस्तावेजों की हिरासत में है; तथा

(e) जिला परिषद की निधि से संवितरण राशि का आहरण करना और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करना और ऐसे अन्य कार्य करना जो विहित किए जाएं।

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी प्रमुख के निर्देश पर जिला परिषद और स्थायी समितियों की प्रत्येक बैठक में उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी करेगा और चर्चा में भाग ले सकता है लेकिन उसे कोई प्रस्ताव पेश करने या वोट देने का अधिकार नहीं होगा। यदि मुख्य कार्यकारी अधिकारी की राय में, जिला परिषद के समक्ष कोई प्रस्ताव इस अधिनियम या किसी अन्य कानून या उसके तहत बनाए गए नियमों या आदेश या राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देशों के प्रावधानों का उल्लंघन या असंगत है, तो यह होगा उसे जिला परिषद के संज्ञान में लाने का उसका कर्तव्य।

(3) मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद या उसकी किसी समिति की बैठक की तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर सरकार को जिला परिषद या उसकी किसी भी समिति के हर संकल्प को प्रस्तुत करेगा जो उसकी राय में असंगत है इस अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधान और वह इस तरह के संकल्प को सरकार द्वारा निर्देशित के अलावा अन्यथा लागू नहीं करेगा।

(4) मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रवेश कर सकता है और निरीक्षण कर सकता है –

(ए) किसी पंचायत या पंचायत समिति के नियंत्रण में कोई अचल संपत्ति या कोई कार्य प्रगति पर है;

(बी) किसी पंचायत या पंचायत समिति द्वारा या उसके नियंत्रण में रखे गए अन्य संस्थानों के स्कूल, अस्पताल, औषधालय, टीकाकरण स्टेशन, पोल्ट्री फार्म और ऐसी संस्था में रखे गए किसी भी रिकॉर्ड, रजिस्टर या अन्य दस्तावेज; तथा

(ग) किसी पंचायत या पंचायत समिति का कार्यालय और उसमें रखे कोई अभिलेख रजिस्टर या अन्य दस्तावेज।

(5) पंचायत या पंचायत समिति मुख्य कार्यकारी अधिकारी को उसकी संपत्ति या परिसर में सभी उचित समय पर और सभी दस्तावेजों तक पहुंच प्रदान करने के लिए बाध्य होगी, जैसा कि आवश्यक हो, वह उप के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम हो। -धारा (4)।

(6) मुख्य लेखा अधिकारी वित्तीय नीति के मामलों में जिला परिषद को सलाह देगा और वार्षिक लेखा और बजट तैयार करने सहित जिला परिषद के खातों से संबंधित सभी मामलों के लिए जिम्मेदार होगा।

(7) मुख्य लेखा अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि उचित मंजूरी के अलावा और इस अधिनियम और इसके तहत नियमों और विनियमों के अनुसार कोई भी खर्च नहीं किया गया है और इस अधिनियम या नियमों और विनियमों के अनुसार किसी भी व्यय को अस्वीकार नहीं करेगा या जिसके लिए कोई प्रावधान नहीं है बजट में किया गया।

(8) अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी मुख्य कार्यपालक अधिकारी को उसके कर्तव्यों के पालन में सहायता करेगा।

(9) मुख्य योजना अधिकारी योजना निर्माण के मामले में जिला परिषद को सलाह देगा और जिला परिषद की योजना से संबंधित सभी मामलों के लिए जिम्मेदार होगा जिसमें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना तैयार करना और जिले की वार्षिक योजना शामिल है।

[(10) जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी जिला परिषद के लिए प्रारंभिक शिक्षा के प्रभारी अधिकारी के रूप में कार्य करेगा और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे अन्य कार्यों का पालन करेगा जो उसे राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त या सौंपे गए हैं।]

85. विकास अधिकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की आपातकालीन शक्ति। – प्रधान और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अनुपस्थिति में मुख्यालय से प्रमुख की अनुपस्थिति में विकास अधिकारी आग, बाढ़, महामारी या इस तरह की आपात स्थिति के मामले में किसी भी कार्य के निष्पादन या कार्य को करने का निर्देश दे सकता है। कोई भी कार्य जिसके लिए सामान्यतः संबंधित पंचायती राज संस्था या उसकी स्थायी समिति की स्वीकृति की आवश्यकता होती है और जिसका निष्पादन या करना, उसकी राय में जनता के कल्याण या सुरक्षा या संपत्ति के नुकसान की रोकथाम के लिए आवश्यक है और हो सकता है यह भी निर्देश दें कि ऐसा कार्य करने पर ऐसे कार्य के निष्पादन के व्यय का भुगतान संबंधित पंचायती राज संस्था की निधि से किया जाएगा। ऐसे प्रत्येक मामले में, वह की गई कार्रवाई और उसके कारणों की रिपोर्ट तत्काल ऐसे कार्य या ऐसे कार्य को करने की मंजूरी देने वाले सक्षम प्राधिकारी को देगा।

86. सरकारी अधिकारियों की शक्ति। – राज्य सरकार के सभी राजपत्रित अधिकारी पंचायत समिति या जिला परिषद और उनकी स्थायी समितियों की बैठकों में भाग लेने और अपने विभाग से संबंधित मामलों से संबंधित ऐसी बैठकों के विचार-विमर्श में भाग लेने के हकदार होंगे।

87. पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा पंचायत के माध्यम से कार्यों और कार्यक्रमों का निष्पादन। – इस अधिनियम के किन्हीं अन्य प्रावधानों में किसी भी बात के होते हुए भी, कोई भी कार्यक्रम जिसे पंचायत समिति या जिला परिषद किसी एक पंचायत सर्कल के लाभ के लिए चलाने का निर्णय लेती है, की जिम्मेदारी होगी और जैसा भी मामला हो, निष्पादित या निष्पादित किया जाएगा। उस पंचायत अंचल की पंचायत की एजेंसी के माध्यम से हो।

88. अभिलेखों की मांग का अधिकार। – (1) पंचायती राज संस्था से संबंधित धन, लेखा, अभिलेख या अन्य संपत्ति रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस प्रयोजन के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी की लिखित मांग पर ऐसे धन को तत्काल सौंपेगा या ऐसे खातों, अभिलेखों या अन्य संपत्ति मुख्य कार्यकारी अधिकारी या मांग में अधिकृत व्यक्तियों को प्राप्त करने के लिए।

(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी भी ऐसे किसी व्यक्ति से देय धन की वसूली के लिए उसी तरीके से और उन्हीं प्रावधानों के अधीन कदम उठा सकता है, जो राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम में बकाए या भू-राजस्व की वसूली के लिए बकाएदारों से और या किसी पंचायती राज संस्था से संबंधित खातों, अभिलेखों या अन्य संपत्ति की वसूली का उद्देश्य तलाशी वारंट जारी कर सकता है और उसके संबंध में ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जो दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय VII के प्रावधानों के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा कानूनी रूप से प्रयोग की जा सकती हैं। , 1973, (1974 का केंद्रीय अधिनियम 2)।

(3) प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि पंचायती राज संस्था से संबंधित कोई धन, लेखा, अभिलेख या अन्य संपत्ति कहाँ छिपाई गई है, इसकी जानकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी को देने के लिए बाध्य होगा।

(4) इस धारा के तहत मुख्य कार्यकारी अधिकारी के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार को अपील की जाएगी।

89. राजस्थान पंचायत समिति और जिला परिषद सेवा का गठन। – (1) राजस्थान पंचायत समिति और जिला परिषद सेवा के रूप में नामित राज्य सेवा के लिए गठित किया जाएगा और इसके वाद सेवा के रूप में संदर्भित इस अनुभाग में और उसकी भर्ती जिलेवार की जाएगी:

[बशर्ते कि उप-धारा (2) के पदों के लिए चयन [खंड (i), (iii) और (iv) में निर्दिष्ट]) राज्य स्तर पर किया जाएगा।]

[XXX]

(2) सेवा को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, ऐसी श्रेणी को विभिन्न ग्रेडों में विभाजित किया जा सकता है, और इसमें शामिल होंगे –

(i) “ग्राम विकास अधिकारी” (पढ़ें अधिसूचना सं. एफ. 2(38)/ विधि /2/2020)

(ii) [हटाया गया] (पढ़ें अधिसूचना सं. एफ. 2(38)/ विधि /2/2020)

(iii) [प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय] शिक्षक; [***]

(iv) मंत्रिस्तरीय स्थापना (लेखाकारों और कनिष्ठ लेखाकारों को छोड़कर) [; तथा]

[(v) प्रबोधक और वरिष्ठ प्रबोधक।]

(3) राज्य सरकार पंचायत समितियों और ज़िउला परिषदों के अधिकारियों और कर्मचारियों की किसी अन्य श्रेणी या ग्रेड की सेवा में संलग्न है और चतुर्थ श्रेणी सेवाओं में शामिल नहीं है।

(4) राज्य सरकार सेवा में शामिल प्रत्येक श्रेणी और प्रत्येक श्रेणी के अधिकारियों और कर्मचारियों के कर्तव्यों, कार्यों और शक्तियों को निर्धारित कर सकती है।

(5) सेवा में पदों पर नियुक्त सभी को-

(ए) सीधी भर्ती द्वारा; या

(बी) पदोन्नति द्वारा; या

(सी) स्थानांतरण द्वारा।

(6) सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति [उप-धारा (2) के खंड (ii) में निर्दिष्ट पदों पर] और उप-धारा (3) के तहत संवर्गित पदों पर] [XXX] एक पंचायत समिति या जिला द्वारा की जाएगी। परिषद, जैसा भी मामला हो, राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों के अनुसार उप-धारा में निर्दिष्ट जिला स्थापना समिति द्वारा जिले में एक ग्रेड या श्रेणी में पदों के लिए चुने गए व्यक्तियों में से ( 1) धारा 90।

[XXX।]

[(6ए) उप-धारा (2) के खंड (i) और (iv) में निर्दिष्ट पदों पर सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति, पंचायत समिति या जिला परिषद, जैसा भी मामला हो, नियमों के अनुसार की जाएगी। राजस्थान अधीनस्थ एवं मंत्रिस्तरीय सेवा चयन बोर्ड द्वारा पदों के लिए चुने गए व्यक्तियों में से राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त ऐसी रीति से, जो विहित की जाए।]

[(6एए)] उप-धारा (2) के खंड (iii) में निर्दिष्ट पदों पर सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति पंचायत समिति या जिला परिषद द्वारा की जाएगी, जैसा भी मामला हो, इस में बनाए गए नियमों के अनुसार राज्य सरकार की ओर से, ऐसी एजेंसी द्वारा पदों के लिए चुने गए व्यक्तियों में से ऐसी रीति से जो विहित की जाए।]

[(6बी. उपखण्ड (2) के खंड (v) में विनिर्दिष्ट पदों पर नियुक्ति जिला संबध के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालक कार्यालय-सह-जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक-शिक्षा) द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार की जायेगी। इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार सरकार द्वारा गठित भर्ती समिति द्वारा पदों के लिए चयनित व्यक्तियों में से राज्य सरकार द्वारा इस ओर से:

प्रावधान खिड़की और तलाकशुदा महिलाओं के लिए आरक्षित पदों के मामले में चयन इस तरह से और ऐसी स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा किया जाएगा जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।]

(7) नियुक्ति प्राधिकारी, जब तक जिला स्थापना समिति द्वारा चयन नहीं किया जाता है या चयनित व्यक्ति नियुक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है, अस्थायी आधार पर छह महीने से अधिक की अवधि के लिए निर्धारित तरीके से नियुक्तियां कर सकता है और कहा जा सकता है जिला स्थापना समिति के परामर्श के वाद ही बढ़ाया गया:

[बशर्ते कि उप-धारा (2) के खंड (iii) में निर्दिष्ट पदों पर अस्थायी आधार पर कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।]

(8) नियुक्तियां-

(i) पंचायत समिति या जिला परिषद, जैसा भी मामला हो, द्वारा निर्धारित तरीके से उन व्यक्तियों के बीच पदोन्नति की जाएगी जिनके नाम जिला स्थापना समिति द्वारा तैयार सूची में दर्ज किए गए हैं; तथा

(ii) स्थानान्तरण प्रधानों या प्रमुखों, जैसा भी मामला हो, पंचायत समितियों या जिला परिषद् के परामर्श से किया जाएगा और जहाँ से ऐसा स्थानांतरण किया जाना प्रस्तावित है।

[(8क. उप-धारा (8) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार सेवा के किसी भी सदस्य को [किसी भी स्थान से तैनाती के किसी अन्य स्थान पर, चाहे वह उसी पंचायत समिति के भीतर हो या] एक पंचायत समिति से स्थानांतरित कर सकती है। एक अन्य पंचायत समिति, चाहे वह उसी जिले के भीतर हो या उसके बाहर एक जिला परिषद से दूसरी जिला परिषद, या पंचायत समिति से जिला परिषद या जिला परिषद से पंचायत समिति तक और संचालन को रोक सकती है, या रद्द कर सकती है, उप-धारा (8) या उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत किए गए स्थानांतरण का कोई आदेश।]

(9) सेवा में संवर्ग के पद धारण करने वाले व्यक्ति भी राज्य सेवा में या राज्य सरकार के अधीन पदों पर नियुक्ति या पदोन्नति के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार और निर्धारित नियमों और शर्तों के अधीन पात्र होंगे। ऐसे नियमों में, और इस प्रकार नियुक्त या पदोन्नत व्यक्ति वरिष्ठता और पेंशन के प्रयोजन के लिए इस धारा के तहत गठित सेवा में अपने पद धारण करने की अवधि की गणना करेंगे।

(10) राज्य सेवा में नियुक्ति धारण करने वाले व्यक्ति भी राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों के अनुसार और उन में निर्धारित नियमों और शर्तों के अनुसार इस धारा के तहत गठित सेवा में संवर्ग के पद पर स्थानांतरण द्वारा नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। नियम।

(11) इस धारा के तहत गठित सेवा में एक पद धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों के अनुसार राज्य की संचित निधि से पेंशन के भुगतान का हकदार होगा।

90. जिला स्थापना समिति का गठन और कार्य। – (1) प्रत्येक जिले के लिए एक जिला स्थापना समिति होगी जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे –

(i) जिला प्रमुख, अध्यक्ष के रूप में;

(ii) मुख्य कार्यकारी अधिकारी; तथा

(iii) [जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी] (जहां उक्त समिति के समक्ष मामला प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक की नियुक्ति या उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही से संबंधित है); तथा

(iv) सक्षम प्राधिकारी द्वारा नामित एक अधिकारी।

(2) जिला स्थापना समिति –

(ए) सेवा में मौजूद विभिन्न ग्रेड और श्रेणियों में चयन या पद [खंड (i), (iii), (iv) और (v) की उप-धारा (2) के खंड में निर्दिष्ट पदों को छोड़कर] इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार जिले में पंचायत समिति और जिला परिषद में;

(बी) अस्थायी नियुक्ति के तरीके को विनियमित करना और ऐसी नियुक्तियों को छह महीने से आगे बढ़ाने के लिए व्यक्तियों के नामों की सिफारिश करना;

(सी) निर्धारित तरीके से पदोन्नति के लिए व्यक्तियों की सूची तैयार करना; तथा

(डी) जिले की पंचायत समितियों और जिला परिषद को उन सभी अनुशासनात्मक मामलों की सलाह देगा जो अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को प्रभावित करते हैं, जो कि अनुभागों में निर्दिष्ट हैं। 79 और 82, जो धारा 91 के तहत उत्पन्न हो सकते हैं।

91. पंचायत समितियों और जिला परिषदों के कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही और दंड का प्रावधान। – (1) धारा 79 और 82 में निर्दिष्ट अधिकारियों के अलावा अन्य पंचायत समितियों और जिला परिषदों के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शुरू की जा सकने वाली अनुशासनात्मक कार्यवाही का संचालन और इस तरह की कार्यवाही में दिए जाने वाले दंड शासित होंगे। और इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विनियमित।

(2) ऐसे नियमों के अधीन –

(ए) चतुर्थ श्रेणी सेवाओं में पद धारण करने वाले सभी व्यक्तियों पर सभी या कोई भी निर्धारित दंड दिया जा सकता है –

(i) किसी पंचायत समिति के विकास अधिकारी द्वारा, यदि ऐसे व्यक्ति उस पंचायत समिति के सेवक हैं; [***]

(ii) किसी जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा, यदि वे उस जिला परिषद के सेवक हैं; [***]

[(iii) जहां ऐसी सेवाएं प्रारंभिक शिक्षा के संबंध में हैं और ऐसी सेवाएं पंचायत समिति के नियंत्रण में हैं, वहां पंचायत समिति के प्रखंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी द्वारा; तथा

(iv) जहां ऐसी सेवाएं प्रारंभिक शिक्षा के संबंध में हैं और ऐसी सेवाएं जिला परिषद के नियंत्रण में हैं, वहां जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी द्वारा; तथा]

(बी) धारा 89 के तहत गठित सेवाओं में संवर्ग के पदों पर नियुक्ति रखने वाले सभी व्यक्तियों पर संबंधित पंचायती राज संस्थानों के अध्यक्ष के अनुमोदन से निंदा या वेतन वृद्धि या पदोन्नति को रोकने का दंड लगाया जा सकता है

(i) पंचायत समिति के विकास अधिकारी द्वारा, यदि ऐसे व्यक्ति पंचायत समिति के अधीन अपनी नियुक्ति रखते हैं; तथा

(ii) जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा, यदि वे उस जिला परिषद के अधीन अपनी नियुक्ति रखते हैं।

(3) जिला स्थापना समिति द्वारा पंचायत समिति या जिला परिषद में सेवा में संवर्ग के पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को अन्य सभी निर्धारित दंड दिए जा सकते हैं।

(4) एक अपील की जा सकती है –

(क) जिला परिषद के [विकास अधिकारी/पंचायत समिति के ब्लॉक प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी/जिला प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी] द्वारा धारा 90 के तहत गठित जिला स्थापना समिति को दिए गए आदेश के खिलाफ; तथा

(ब) जिला स्थापना समिति द्वारा उप-धारा (3) के तहत राज्य सरकार को दिए गए आदेश के खिलाफ।

(5) उप-धारा (4) के तहत अपील किए गए आदेश की तारीख से 90 दिनों की अवधि के भीतर अपील की जा सकती है और ऐसे आदेश की एक प्रति प्राप्त करने का समय उक्त अवधि से बाहर रखा जाएगा।

[91ए. जिला कार्यक्रम समन्वयक एवं कार्यक्रम अधिकारी की अनुशासनिक शक्तियाँ – (1) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य कानून में किसी बात के होते हुए भी, –

(क) पंचायती राज संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अलावा अन्य सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के मामले में, चाहे ऐसी पंचायती राज संस्था या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया हो, जिला कार्यक्रम समन्वयक और

(ख) किसी पंचायती राज संस्था के प्रखंड एवं ग्राम स्तर पर धारा 79 में निर्दिष्ट अधिकारियों को छोड़कर अन्य सभी अधिकारियों एवं सेवकों की दशा में कार्यक्रम अधिकारी को ।

ऐसे अधिकारियों या सेवकों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना या केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी अन्य योजना के तहत:

परन्तु किसी भी व्यक्ति को इस उपधारा के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए सेवा से तब तक बर्खास्त या हटाया नहीं जाएगा जब तक कि इस उपधारा के अधीन शक्ति का प्रयोग करने वाला प्राधिकारी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति प्राधिकारी न कर रहा हो।

(2) राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1958 की उप-धारा (1), नियम 13, 14, 16, 17 और 18 के प्रावधानों के अधीन, समय-समय पर संशोधित, लागू होंगे। इस धारा के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही और दंड के लिए इस तरह के संशोधन के साथ आवश्यक हो सकता है जिसमें संशोधन शामिल है कि नियुक्ति प्राधिकारी या अनुशासनात्मक प्राधिकारी के संदर्भ को जिला कार्यक्रम समन्वयक और कार्यक्रम अधिकारी के संदर्भ सहित माना जाएगा।

(3) एक अपील को प्राथमिकता दी जा सकती है-

(ए) कार्यक्रम अधिकारी द्वारा जिला कार्यक्रम समन्वयक को दिए गए आदेश के खिलाफ, और

(बी) जिला कार्यक्रम समन्वयक द्वारा राज्य सरकार को दिए गए आदेश के खिलाफ।

(4) उप-धारा (3) के तहत अपील किए गए आदेश की तारीख से नब्बे दिनों की अवधि के भीतर अपील की जा सकती है और ऐसे आदेश की एक प्रति प्राप्त करने में लगने वाले समय को उक्त अवधि से बाहर रखा जाएगा।

(5) जिला कार्यक्रम समन्वयक या कार्यक्रम अधिकारी द्वारा किया गया प्रत्येक आदेश नियुक्ति प्राधिकारी को तत्काल पृष्ठांकित और संसूचित किया जाएगा और जिस अधिकारी या सेवक के खिलाफ आदेश दिया गया है, वह अधीनस्थ है और ऐसा वरिष्ठ अधिकारी होगा इस तरह के आदेश को निष्पादित करने के लिए बाध्य हो।

(6) शंकाओं को दूर करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि इस धारा में कुछ भी इस अधिनियम या किसी अन्य कानून के तहत किसी अन्य अनुशासनात्मक प्राधिकारी की शक्तियों को कम करने के रूप में नहीं माना जाएगा, हालांकि, यदि कोई कार्रवाई की गई है इस धारा के तहत किसी अधिकारी या सेवक के खिलाफ पहल या की गई कार्रवाई, उसी तथ्य या आचरण के आधार पर किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा शुरू या की गई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

व्याख्या – इस धारा के प्रयोजनों के लिए, –

(i) “जिला कार्यक्रम समन्वयक” का अर्थ है जिला कार्यक्रम समन्वयक जैसा कि में परिभाषित किया गया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (2005 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 42) और केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी भी योजना में या उसके तहत नामित अधिकारी शामिल हैं।

(ii) “कार्यक्रम अधिकारी” का अर्थ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (2005 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 42) में परिभाषित कार्यक्रम अधिकारी से है और इसमें केंद्र सरकार की किसी भी योजना में या या राज्य सरकारउसके तहत नामित एक अधिकारी शामिल है ।

(iii) “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना” का अर्थ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (2005 का केंद्रीय अधिनियम संख्या 42) की धारा 4 की उप-धारा (1) के तहत राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित योजना है। ।”]

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