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Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 5 Miscellaneous) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 5 विविध)

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 5 Miscellaneous) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 5 विविध)

  

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994

Chapter 5 Miscellaneous

राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994

अध्याय 5 विविध

108. सदस्य और अधिकारी लोक सेवक होंगे :- किसी पंचायत राज संस्था और उसकी किसी स्थायी समिति या उप-समिति के सदस्य, अधिकारी और कर्मचारी भारतीय दण्ड संहिता 1860 (1860 का केन्द्रीय अधिनियम 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जायेंगे।

109. पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् के विरुद्ध वाद आदि :- (1) किसी पंचायती राज संस्था के विरुद्ध या उसके किसी भी सदस्य, अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध या किसी पंचायती राज संस्था या उसके किसी भी सदस्य, अधिकारी या कर्मचारी के निदेश के अधीन कार्य कर रहे किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध उसकी पदीय हैसियत में इस अधिनियम के अधीन की गयी या किये जाने के लिए  तात्पर्यित किसी भी बात के लिए कोई भी वाद या अन्य सिविल कार्यवाही-

(क) तब तक संस्थित नहीं की जायेगी जब तक कि बाद हेतुक आशयित वादी के नाम और निवास स्थान और उस अनुतोष की प्रकृति का, जिसका वह दावा करता है, कथन करने वाला लिखित नोटिस उसके कार्यालय पर परिदत्त कर दिये गये या छोड़ दिये जाने के पश्चात् दो मास समाप्त न हो गये हो, और बाद में, ऐसे प्रत्येक मामले में, यह कथन अंतर्विष्ट होगा कि ऐसा नोटिस इस प्रकार परिदत्त कर दिया गया या छोड़ दिया गया है, या

(ख) यदि वह स्थावर संपत्ति की वसूली के लिए या उसके हक की किसी घोषणा के लिए कोई यदि न हो, तो अभिकथित वाद हेतुक के प्रोद्भूत होने के पश्चात् के छह मास के भीतर से अन्यथा संस्थित नहीं की जायेगी।

(2) उप-धारा (1) में निर्दिष्ट नोटिस, जब वह किसी पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद् के लिए आशयित हो तो क्रमश: सरपंच, विकास अधिकारी या मुख्य कार्यपालक अधिकारी को सम्बोधित होगा।

110. अपराधों के और पंचायतों को सहायता देने के सम्बन्ध में पुलिस की शक्तियाँ और कर्त्तव्य :- प्रत्येक पुलिस अधिकारी, उसकी जानकारी में आने वाले ऐसे अपराध की, जो इस अधिनियम या तदधीन बनाये गये किसी भी नियम या उप विधि के विरुद्ध किया गया हो, सूचना तत्काल पंचायत को देगा और पंचायत के समस्त पंचों, अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके विधिपूर्ण प्राधिकार का प्रयोग करने में सहायता करेगा।

111. पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों, अध्यक्षों और उपाध्यक्षों का दायित्व :- (1) पंचायती राज संस्था का प्रत्येक सदस्य, जिसमें उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष सम्मिलित है, ऐसा पंचायती राज संस्था के प्रति, जिसका वह ऐसा सदस्य या, यथास्थिति, ऐसा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष है, ऐसी पंचायती राज संस्था के किसी भी धन या अन्य सम्पत्ति की हानि, दुरुपयोजन या दुर्व्यय के लिए दायित्वाधीन होगा. यदि ऐसी हानि, दुरुपयोजन या दुर्व्यय ऐसे सदस्य या यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद पर रहते हुए उसकी अपेक्षा या अवचार का सीधा परिणाम हो।

(2) जब कभी, किसी पंचायती राज संस्था द्वारा की गयी शिकायत पर या अन्यथा सक्षम प्राधिकारी की यह राय हो कि किसी भी ऐसे सदस्य या, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष ने पंचायती राज संस्था के किसी धन या सम्पत्ति की हानि, दुरुपयोजन या दुर्व्यय कारित किया है या, किया है तो सक्षम प्राधिकारी सम्बन्धित पदधारी को उसके विरुद्ध किये गये अभिकथनों का नोटिस देगा और उससे उस तारीख और समय पर, जो नोटिस में विनिर्दिष्ट किया जाये. उपस्थित होने और उसके विरुद्ध किये गये अभिकथनों के उत्तर में लिखित कथन फाइल करने की अपेक्षा करेगा।

(3) यदि सदस्य या. यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, उपस्थित होने पर अपने दायित्व और उसकी रकम को स्वीकार करता है तो सक्षम प्राधिकारी ऐसे सदस्य या, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष से ऐसे दायित्व की रकम की वसूली के लिए आदेश पारित करेगा।

(4) यदि सदस्य या, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अपने दायित्व या उसके परिमाण के लिए विवाद करता है तो सक्षम प्राधिकारी या उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी, अभिकथनों के समर्थन में साक्ष्य अभिलिखित करने के पश्चात् और सम्बन्धित पदधारी को साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने और प्रतिरक्षा में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देने के पश्चात् आदेश द्वारा धन या सम्पत्ति की ऐसी हानि, दुर्व्यय या दुरुपयोजन के लिए ऐसे पदधारी के दायित्व के परिमाण और रकम का अवधारण करेगा।

(5) सक्षम प्राधिकारी द्वारा उप-धारा (4) के अधीन किये गये किसी आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति उस तारीख से, जिसको सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे आदेश से संसूचित किया गया है, तीस दिन के भीतर-भीतर राज्य सरकार को उसकी अपील कर सकेगा और राज्य सरकार हितबद्ध पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, आदेश को पुष्ट, उपान्तरित या अपास्त कर सकेगी या मागला सक्षम प्राधिकारी को ऐसी और जाँच, जो वह उचित समझे, करने के लिए प्रेषित कर सकेगी।

(6) वह पंचायती राज संस्था जिसके प्रति ऐसा सदस्य या, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष दायित्वाधीन है, इस धारा के अधीन की किसी जाँच में सक्षम प्राधिकारी के समक्ष या उप-धारा (5) के अधीन किसी अपील में राज्य सरकार के समक्ष पक्षकार होगी और समझी जायेगी।

(7) इस धारा के अधीन कोई जाँच करने या अपील सुनने वाले सक्षम प्राधिकारी या राज्य सरकार को –

(क) शपथ-पत्रों द्वारा तथ्यों के सबूत:

(ख) किसी व्यक्ति को हाजिर कराने और उसकी शपथ पूर्वक परीक्षा

(ग) दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण और

(घ) कमीशन जारी करने- “के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 1908 का केन्द्रीय अधिनियम 5) के अधीन की किसी सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होगी।

(8) उप-धारा (3) के अधीन वसूल किये जाने के लिए आदिष्ट या उप-धारा (4) के अधीन अवधारित किसी दायित्व की रकम सम्बन्धित पंचायती राज संस्था द्वारा ऐसे सदस्य या, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष से भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूलीय होगी।

(9) किसी भी ऐसे विषय में, जिसका इस धारा के अधीन सक्षम प्राधिकारी या राज्य द्वारा विनिश्चित किया जाना, अवधारित किया जाना या निपटाया जाना अपेक्षित है, किसी सिविल या राजस्व न्यायालय की कोई अधिकारिता नहीं होगी और सक्षम प्राधिकारी या राज्य सरकार द्वारा किये गये किसी भी आदेश को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।के सम्बन्ध में लागू होते हैं।

112. विधिक प्रतिनिधित्व का वर्जन :- किसी पंचायती राज संस्था के समक्ष की किसी सिविल कार्यवाही का कोई भी पक्षकार, अधिकार के रूप में, विधि व्यवसायी द्वारा प्रतिनिधित्व किये जाने का हकदार नहीं होगा।

113, नोटिस की विधिमान्यता :- इस अधिनियम के अधीन जारी कोई भी नोटिस उसके प्ररूप की त्रुटि या लोप के कारण अविधिमान्य नहीं होगा।

114. पंचायतों द्वारा प्रवेश और निरीक्षण किसी पंचायत का सरपंच और यदि इस निमित :- प्राधिकृत हो तो, उसका कोई भी पंच, अधिकारी या कर्मचारी, किसी भवन या भूमि में या उस पर सहायकों या कर्मकारों के सहित या रहित, निरीक्षण या सर्वेक्षण करने या किसी ऐसे कार्य को, जिसे निष्पादित करने या करने के लिए कोई पंचायत इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये नियमों या उप-विधियों द्वारा प्राधिकृत है, या जिसका किया या निष्पादित किया जाना किसी पंचायत के लिए इस अधिनियम के या उसके अधीन के नियमों या उप-विधियों के किन्हीं भी प्रयोजनों के लिए या किन्हीं भी उपबन्धों के अनुसार आवश्यक है, करने या निष्पादित करने की दृष्टि से, प्रवेश कर सकेगा

परन्तु – (क) जब इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये नियमों या उप-विधियों में अन्यथा अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित हो, तब के सिवाय कोई भी ऐसा प्रवेश सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच में नहीं किया जायेगा;

(ख) जब इस अधिनियम या इसके अधीन बनाये गये नियमों या उप-विधियों में अन्यथा अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित हो, तब के सिवाय, ऐसे किसी भी भवन में, जो मानव निवास के रूप में उपयोग में लिया जाता है, उसके अधिभोगी की सहमति के सिवाय और उक्त अधिभोगी को ऐसा प्रवेश करने के आशय की पूर्व सूचना दिये बिना प्रवेश नहीं किया जायेगा;

(ग) प्रत्येक स्थिति में पर्याप्त सूचना, महिलाओं के लिए काम में लिए जाने वाले किसी भी खण्ड के निवासियों को परिसर में के किसी ऐसे भाग में, जहाँ उनकी एकान्तता में विघ्न न पड़े, चले जाने में समर्थ बनाने के लिए तब भी दी जायेगी जब किसी परिसर में सूचना दिये बिना अन्यथा भी प्रवेश किया जा सकता हो; और

(घ) प्रवेश के परिसर के अधिभोगियों की सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं का सदैव सम्यक् सम्मान किया जायेगा।

115. प्रत्येक जनगणना के पश्चात् स्थानों का अवधारण :- प्रत्येक जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन होने पर किसी पंचायती राज संस्था के स्थानों की संख्या, राज्य सरकार द्वारा, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था के क्षेत्र की उस जनसंख्या के आधार पर अवधारित की जायेगी, जो उस जनगणना में अभिनिश्चित की गई है परन्तु यथापूर्वीक संख्या के अवधारण से, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की तब की संरचना पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उसने उस समय पदासीन निर्वाचित सदस्यों की पदावधि समाप्त नहीं हो जाती।

116. साधारण निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए यानों इत्यादि की अध्यपेक्षा :- (1) यदि कलक्टर को ऐसा प्रतीत हो कि इस अधिनियम के अधीन किये जाने वाले साधारण निर्वाचनों के सम्बन्ध में कोई भी यान, जलयान या पशु किसी भी मतदान केन्द्र से या उस तक मत पेटियों के परिवहन के, या ऐसे निर्वाचन के किये जाने के दौरान व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस बल के सदस्यों के परिवहन के, या किसी ऐसे निर्वाचन के सम्बन्ध में किन्हीं कर्त्तव्यों के पालन के लिए अधिकारियों या अन्य व्यक्तियों के परिवहन के प्रयोजनार्थ आवश्यक है या आवश्यक होना संभाव्य है तो कलक्टर लिखित आदेश द्वारा ऐसा यान, जलयान, या यथास्थिति, पशु की अध्यपेक्षा कर सकेगा और ऐसे और आदेश कर सकेगा जो उसे अध्यपेक्षा किये जाने के सम्बन्ध में आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो परन्तु ऐसे किसी भी यान, जलयान या पशु की, जो किसी अभ्यर्थी या उसके अभिकर्ता के द्वारा ऐसे अभ्यर्थी के निर्वाचन के सम्बन्ध में किसी भी प्रयोजन के लिए विधिपूर्वक काम में लिया जा रहा है, अध्यपेक्षा इस उप-धारा के अधीन तब तक नहीं की जायेगी जब तक ऐसे निर्वाचन में मतदान पूरा न हो जाये।

(2) अध्यपेक्षा कलक्टर द्वारा यान, जलयान या पशु के स्वामी या उसका कब्जा रखने वाले व्यक्ति के रूप में समझे गये व्यक्ति को सम्बोधित किसी लिखित आदेश द्वारा की जायेगी और ऐसा आदेश उस व्यक्ति पर जिसे वह सम्बोधित है, विहित रीति से तामील कराया जायेगा।

(3) जब कभी किसी यान, जलयान या पशु की उप-धारा (1) के अधीन अध्यपेक्षा की जाये तो ऐसी अध्यपेक्षा उस कालावधि के परे की नहीं होगी जिसके लिए वह उस उपधारा में लिखित प्रयोजनों में से किसी के लिए भी अपेक्षित है।

(4) जब भी कलक्टर किसी यान, जलयान या पशु की अध्यपेक्षा करे तो उसके स्वामी को राज्य की संचित निधि में से प्रतिकर संदत्त किया जायेगा जिसकी रकम कलक्टर के द्वारा, ऐसे यान, जलयान या पशु के भाई के लिए परिक्षेत्र में प्रचलित भाड़े या दरों के आधार पर अवधारित की जायेगी:

परन्तु जहाँ ऐसे यान, जलयान या पशु का स्वामी इस प्रकार अवधारित प्रतिकर की रकम से व्यथित होकर कोई आवेदन विहित समय के भीतर-भीतर राज्य सरकार को करता है, वहाँ संदत्त की जाने वाली प्रतिकर की रकम ऐसी होगी जो राज्य सरकार द्वारा अवधारित की जाये।

(5) जहाँ, अध्यपेक्षा के ठीक पूर्व, यान या जलयान, किसी करार के कारण स्वामी से भिन्न किसी व्यक्ति के कब्जे में हो वहाँ उप-धारा (4) के अधीन, अध्यपेक्षा के सम्बन्ध में संदेय कुल प्रतिकर के रूप में अवधारित रकम को उस व्यक्ति और स्वामी के बीच ऐसी रीति से जिसका वे करार करें, और करार के व्यतिक्रम में, ऐसी रीति से प्रभाजित किया जायेगा जो कलक्टर या राज्य सरकार द्वारा विनिश्चित की जाये

(6) कलक्टर, किसी भी यान, जलयान या पशु की अध्यपेक्षा करने या इस धारा के अधीन संदेय प्रतिकर की रकम अवधारित करने की दृष्टि से, आदेश द्वारा, किसी भी व्यक्ति के ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी को जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाये, ऐसे यान, जलयान या यथास्थिति, पशु से सम्बन्धित उसके कब्जे में की ऐसी जानकारी देने की अपेक्षा कर सकेगा जो इस रूप में विनिर्दिष्ट की जाये।

(7) कलक्टर के द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई भी व्यक्ति यह अवधारित करने के प्रयोजनार्थ कि क्या किसी भी भूमि या परिसर में या घर के किसी भी यान. जलयान या पशु के सम्बन्ध में कोई आदेश उप-धारा (1) के अधीन किया जाये और यदि किया जाये तो किस रीति से, या इस धारा के अधीन किये गये किसी भी आवेश का अनुपालन सुनिश्चित करने की दृष्टि से ऐसी भूमि या परिसर में या पर प्रवेश कर सकेगा और ऐसे यान, जलयान या पशु का निरीक्षण कर सकेगा।

(8) यदि कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन किये गये किसी भी आदेश का उल्लंघन करता है तो वह इतनी अवधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से अथवा होगा।

117. कतिपय विषयों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप किये जाने का वर्जन :- इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होने पर भी –

(क) इस अधिनियम के अधीन किये गये या किये जाने के लिए तात्पर्मित निर्वाचन क्षेत्रों या वाड के परिसीमन से. या ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों अथवा वार्डों को स्थानों के आवंटन से सम्बन्धित किसी भी विधि की विधिमान्यता को किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा, और

(ख) किसी भी पंचायती राज संस्था के किसी भी निर्वाचन को ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई किसी ऐसी निर्वाचन अर्जी के सिवाय, जो इस अधिनियम के द्वारा या अधीन उपबन्धित है. प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।

*117क. सिविल न्यायालयों की अधिकारिता वर्जित किसी भी सिविल न्यायालय को :-

(क) कोई ऐसा प्रश्न कि कोई व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकृत किए जाने के लिए हकदार है या नहीं. ग्रहण करने या न्यायनिर्णीत करने की, अथवा

(ख) किसी निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के प्राधिकार के द्वारा या अधीन की गयी किसी कार्यवाही की या ऐसी नामावली के पुनरीक्षण के लिए इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किसी प्राधिकारी द्वारा किए गए किसी विनिश्चय की वैधता को प्रश्नगत करने की, अथवा

(ग) किसी निर्वाचन के सम्बन्ध में इस अधिनियम के अधीन नियुक्त रिटर्निंग अधिकारी द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई कार्रवाई की या किए गए किसी विनिश्चय की वैधता को प्रश्नगत करने की, अधिकारिता नहीं होगी।

*[1995 का अधिनियम संख्या 7 द्वारा अन्तःस्थापित किया गया एवं दिनांक 28-12-1994 से प्रभावशील राजस्थान राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 26-4-1995 को प्रकाशित]

118. वित्त आयोग :-(1) वित्त आयोग में जिसे इस धारा में आगे “आयोग” कहा गया है, ऐसी रीति से चयनित किये जाने वाले निम्नलिखित सदस्य होंगे, जो विहित किये जाएं-

(क) ऐसे व्यक्तियों में से एक अध्यक्ष जिन्हें लोक मामलों का अनुभव रहा है, और

(ख) ऐसे व्यक्तियों में से जो-

(i) सरकार के वित्त और लेखों का विशेष ज्ञान रखते हों, या

(ii) वित्तीय विषयों में और प्रशासन में व्यापक अनुभव रखते हो, या

(iii) पंचायती राज संस्थाओं और कब्जेदार नगरपालिका निकायों के कृताकरण का विशेष ज्ञान रखते हों, या

(iv) ग्रामीण और नगरीय विकास कार्यक्रमों की तैयारी और / या क्रियान्वयन से निकट से सहबद्ध रहे हो-

चार से अनधिक इतने अन्य सदस्य जितने राज्य सरकार समय-समय पर अवधारित करे।

(2) कोई व्यक्ति आयोग का सदस्य नियुक्त किये जाने या होने के लिए निरहित होगा यदि वह

(क) विकृत चित्त का है,

(ख) कोई दिवालिया है.

(ग) नैतिकता अधमता अन्तर्वलित करने वाले किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जा चुका है,

(घ) ऐसा वित्तीय या अन्य हित रखता है जो आयोग के सदस्य के रूप में उसके कृत्यों सम्भाव्यतः प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

(3) सदस्यों की पदावधि और पुनर्नियुक्ति की पात्रता निम्नलिखित होगी-

(i) आयोग का प्रत्येक सदस्य ऐसी कालावधि के लिए पद धारित करेगा जो उसे नियुक्त करने के सरकार के आदेश में विनिर्दिष्ट की जाये, किन्तु पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा,

(ii) आयोग का कोई सदस्य अपने हस्ताक्षर से लिखित और सरकार को सम्बोधित किसी पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा किन्तु यह अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका त्यागपत्र सरकार द्वारा स्वीकृत नहीं कर लिया जाये और

(iii) खण्ड (ii) के अधीन किसी सदस्य के पद-त्याग द्वारा या किसी भी अन्य कारण से हुई आकस्मिक रिक्ति नयी नियुक्ति द्वारा भरी जा सकेगी और इस रूप में नियुक्त कोई सदस्य उस शेष कालावधि तक ही पद धारित करेगा जिसके लिए वह सदस्य पदधारित करता जिसके स्थान पर उसे नियुक्त किया गया है।

(4) आयोग के सदस्य आयोग को पूर्णकालिक या अंशकालिक ऐसी सेवा प्रदान करेंगे जो सरकार प्रत्येक मामले में विनिर्दिष्ट करे और उन्हें ऐसी फीस या वेतन और ऐसे भत्ते संदत किये जायेंगे जो सरकार इस निमित्त बनाये गये नियमों द्वारा विहित करे।

(5) आयोग अपनी प्रक्रिया अवधारित करेगा और अपने कृत्यों का पालन करने में उसे निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का अधिनियम (5) के अधीन की किसी सिविल न्यायालय की सभी शक्तियों प्राप्त होंगी, अर्थात्-

(क) साक्षियों को समन करना और उन्हें हाजिर करना;

(ख) किसी भी दस्तावेज का पता लगाने और पेश करने की अपेक्षा करना;

(ग) किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी भी लोक अभिलेख की अध्यपेक्षा करनाः

(घ) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना;

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना; और

(च) कोई भी अन्य विषय, जो विहित किया जाये।

(6) आयोग को किसी भी व्यक्ति से ऐसे किसी भी बिन्दु और विषयों पर जानकारी देने की अपेक्षा करने की शक्ति होगी जो आयोग की राय में आयोग के विचाराधीन किसी भी विषय के लिए उपयोगी हों या उससे सुसंगत हों और ऐसे किसी भी व्यक्ति को, जिससे इस प्रकार अपेक्षा की गई हो, तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होने पर भी ऐसी जानकारी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 176 के अर्थान्तर्गत, देने के लिए विधिपूर्वक आबद्ध समझा जायेगा।

(7) आयोग को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का अधिनियम 2) की धारा 345 और 346 के प्रयोजनों के लिए एक सिविल न्यायालय समझा जायेगा।

(8) सरकार आयोग को ऐसे अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध करायेगी जो आयोग के कृत्यों के पालन के लिए आवश्यक हों।

(9) आयोग के प्रयोजनार्थ नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें ऐसी होंगी जो विहित की जायें।

119. राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी और कर्मचारीवृन्द :- (1) एक मुख्य निर्वाचक अधिकारी होगा जो राज्य सरकार का ऐसा अधिकारी होगा जिसे राज्य निर्वाचन आयोग, सरकार के परामर्श से इस निमित्त पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट करे।

(2) राज्य निर्वाचन आयोग के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए, मुख्य निर्वाचक अधिकारी-

(क) इस अधिनियम के अधीन की राज्य में की समस्त निर्वाचक नामावलियों की तैयारी, पुनरीक्षण और शुद्धि का पर्यवेक्षण करेगा:

(ख) इस अधिनियम के अधीन के समस्त निर्वाचनों के संचालन का पर्यवेक्षण करेगा; और (ग) ऐसी अन्य शक्तियों और कृत्यों का प्रयोग करेगा जो राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्दिष्ट किये जायें।

(3) राज्य में के प्रत्येक जिले के लिए, राज्य निर्वाचन आयोग, सरकार के परामर्श से सरकार के किसी अधिकारी को जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट करेगाः परन्तु राज्य निर्वाचन आयोग किसी जिले के लिए एक से अधिक अधिकारियों को पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट कर सकेगा यदि आयोग का यह समाधान हो जाता है कि पद के कृत्यों का पालन एक अधिकारी के द्वारा समाधानप्रद रूप से नहीं किया जा सकता।

(4) जहाँ किसी जिले के लिए एक से अधिक जिला निर्वाचन अधिकारी पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट किये जायें यहाँ आयोग जिला निर्वाचन अधिकारियों को पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट करने के आदेश में वह क्षेत्र भी विनिर्दिष्ट करेगा जिसके सम्बन्ध में प्रत्येक ऐसा अधिकारी अधिकारिता का प्रयोग करेगा।

(5) प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचक नामावली, जिला निर्वाचन अधिकारी के नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए. निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के द्वारा तैयार, पुनरीक्षित, उपांतरित, आदिनांकित और प्रकाशित की जायेगी जो सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण का ऐसा अधिकारी होगा जिसे राज्य निर्वाचन आयोग, सरकार के परामर्श से इस निमित्त पदाभिहित या नामनिर्दिष्ट करे।

(6) राज्य निर्वाचन आयोग निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को उसके कृत्यों के पालन में सहायता करने के लिए एक या अधिक व्यक्तियों को सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों के रूप में नियुक्त कर सकेगा।

(7) सरकार, जब राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा ऐसा निवेदन किया जाये तो राज्य निर्वाचन आयोग को ऐसा कर्मचारीवृन्द उपलब्ध करायेगी जो इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि के द्वारा या अधीन राज्य निर्वाचन आयोग को प्रदत्त कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हो।

*119क – स्थानीय प्राधिकारियों आदि के कर्मचारिवृंद का उपलब्ध किया जाना :- (1) राज्य में का प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी या जिला निर्वाचन अधिकारी (पंचायत) द्वारा ऐसी प्रार्थना किये जाने पर किसी भी निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को ऐसा कर्मचारिवृंद उपलब्ध करेगा जैसा निर्वाचक नामावलियों की तैयारी और पुनरीक्षण से सशक्त किन्हीं कर्त्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक हो।

(2) उप-धारा (3) में विनिर्दिष्ट प्राधिकारी मुख्य निर्वाचन अधिकारी या जिला निर्वाचन अधिकारी (पंचायत) द्वारा ऐसा अपेक्षित किये जाने पर किसी भी रिटर्निंग अधिकारी को ऐसा कर्मचारिवृंद उपलब्ध करेगा जैसा किसी निर्वाचन से सशक्त किन्हीं भी कर्त्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक हो

(3) उप-धारा (2) के प्रयोजनों के लिए प्राधिकारी निम्नलिखित होंगे, अर्थात्-

(i) प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी:

(ii) कोई भी अन्य निगमित निकाय या लोक उपक्रम, जो किसी राज्य अधिनियम या किसी केन्द्रीय अधिनियम के द्वारा या अधीन राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया जाये या जो अन्यथा स्थापित किया. जाये किन्तु राज्य सरकार द्वारा पूर्णतया या सारतः नियंत्रित, सहायता प्राप्त या वित्तपोषित हो।]

*[राजस्थान अधिनियम सं.9 (2000) द्वारा धारा 119 प्रतिस्थापित, राजस्थान राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000 को प्रकाशित व 27-12-1990 से प्रभावी]

*[119ख. अधिकारियों और कर्मचारीवृन्द का राज्य निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्त समझा जाना :-इस अधिनियम के अधीन सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावलियों की तैयारी, पुनरीक्षण और शुद्धियाँ करने और उनका संचालन करने के सम्बन्ध में नियोजित अधिकारी या कर्मचारीवृन्द उस कालावधि में, जिसके दौरान उन्हें इस प्रकार नियोजित किया जाता है, राज्य निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्त समझे जाएं और ऐसे अधिकारी और कर्मचारीवृन्द, उस अवधि के दौरान, राज्य निर्वाचन आयोग के नियंत्रण और अधीक्षण के अध्यधीन होंगे।

*[1995 के अधिनियम संख्या 7 द्वारा धारा 199-ख अन्तस्थापित की गई व 28-12-1994 से प्रभावी]

119ग – कर्मचारिवृंद के लिए शास्ति :- (1) जहां इस अधिनियम के अधीन निर्वाचनों से संसक्त या निर्वाचक नामावलियों की तैयारी, पुनरीक्षण और शुद्धि से संसक्त कर्तव्यों के पालन के लिए तैनात किया गया कोई कर्मचारी कर्तव्य पर उपस्थित नहीं होता है या ऐसे कर्तव्य पर उपस्थित होकर, उसे समनुदेशित कर्तव्यों का पालन नहीं करता है वहां वह ऐसी किसी कालावधि के कारावास से, जो एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपये तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डनीय होगा।

(2) उप-धारा (1) के अधीन दण्डनीय कोई अपराध संज्ञेय होगा।]

*[राजस्थान अधिनियम सं.9 (2000) द्वारा धारा 119-ग जोड़ी गई. राज राजपत्र भाग 4 (क) दिनांक 3-5-2000/- को प्रकाशित व 22-1-2000 से प्रभावी]

120. निर्वाचन आयोग के कृत्यों का प्रत्यायोजन :-इस अधिनियम या तदधीन जारी किये गये नियमों या आदेशों के अधीन राज्य निर्वाचन आयोग के कृत्यों का पालन ऐसे साधारण या विशेष निदेशों के, यदि कोई हो, अध्यधीन रहते हुए. जो राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त दिये जायें, किसी उप निर्वाचन आयुक्त द्वारा, यदि कोई हो, या राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव द्वारा भी किया जा सकेगा।

121. जिला आयोजन के लिए समिति :- (1) सरकार जिले में की पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं को समेकित करने के लिए और सम्पूर्ण जिले के लिए कोई एक विकास योजना प्रारूप तैयार करने के लिए प्रत्येक जिले में एक जिला आयोजन समिति गठित करेगी जिसे इस धारा में आगे “समिति” कहा गया है।

(2) समिति में इतनी संख्या में सदस्य होंगे जितनी राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर राज पत्र में अधिसूचना द्वारा नियत की जाये और समिति के सदस्यों की कुल संख्या इस प्रकार नियत करने में, राज्य सरकार, क्रमशः नामनिर्दिष्ट सदस्यों और निर्वाचित सदस्यों की संख्या विनिर्दिष्ट करेगी : परन्तु ऐसी समिति के सदस्यों की कुल संख्या के चार बटे पाँच से अन्यून, जिले में की जिला परिषद् और नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा, और उनमें से, जिले में के ग्रामीण क्षेत्र और नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या के बीच के अनुपात के समानुपात में निर्वाचित किये जायेंगे।

(3) निर्वाचित सदस्य ऐसी रीति से चुने जायेंगे जो विहित की जाये।

(4) नामनिर्दिष्ट सदस्यों में निम्नलिखित हो सकेंगे-

(क) राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति,

(ख) लोकसभा या राजस्थान विधानसभा के ऐसे सदस्य, जो किसी ऐसे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें सम्पूर्ण जिला या उसका भाग समाविष्ट है:

(ग) राज्य सभा के ऐसे सदस्य, जो जिले में निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकृत है और (घ) ऐसे संगठनों और संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति, जो सरकार द्वारा आवश्यक समझे जायें।

(5) समिति के-

(क) जिला आयोजन से सम्बन्धित ऐसे कृत्य होंगे, जो उसे सरकार द्वारा समनुदिष्ट किये और जायें;

(ख) ऐसी शक्तियाँ होंगी, जो उसे सरकार द्वारा प्रदत्त की जायें।

(6) ऐसी समिति का अध्यक्ष सम्बन्धित जिला परिषद् का प्रमुख होगा।

(7) प्रत्येक समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में—

(क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी-

(i) स्थानिक आयोजन, जल और अन्य भौतिक और प्राकृतिक स्रोतों के अंश बंटन, अधोसंरचना के एकीकृत विकास और पर्यावरण संरक्षण को सम्मिलित करते हुए. पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिकाओं के बीच के सामान्य हित के विषय और

(ii) उपलब्ध स्रोतों को, चाहे ये वित्तीय हो या अन्य विस्तार और प्रकार, और

(ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें सरकार आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे।

(8) प्रत्येक समिति का अध्यक्ष, सरकार को ऐसी समिति द्वारा यथा-अभिशंसित विकास योजना अग्रेषित करेगा।

स्पष्टीकरण- इस के प्रयोजनार्थ शब्द “नगरपालिका” का वह अर्थ होगा जो उसे राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1959 द्वारा समनुदिष्ट किया गया है।

*ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग (जिला आयोजना समिति)

1. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 121 (1) के अनुसारण में प्रत्येक जिले मैं एक जिला आयोजन समिति का गठन विभाग के समसंख्यक पत्र दिनांक 10-7-96 को जारी अधिसूचना द्वारा किया जा चुका है।

2. समिति में 25 सदस्य होंगे जिनमें से 20 सदस्य जिला परिषद् और नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा और उनमें से जिले के ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या के बीच के अनुपात में समानुपात में निर्वाचित किये जायेंगे। जिलेवार ग्रामीण क्षेत्र और नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या व तदनुसार निर्वाचित किये जाने वाले सदस्यों की संख्या अनुसूची-1 के अनुसार है।

3. निर्वाचित सदस्य उसी रीति से चुने जायेंगे जैसे राजस्थान पंचायती राज (निर्वाचन नियम ) 1994 के नियम 64 के अनुसार पंचायत समितियों और जिला परिषदों की स्थायी समितियों के सदस्यों का निर्वाचन होता है। ऐसी बैठक कलक्टर / नामांकन अधिकारी इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे। ऐसा अधिकारी अतिरिक्त कलक्टर के पद से कम का नहीं होगा। आगे इस अधिकारी को पीठासीन अधिकारी के नाम से सम्बोधित किया गया है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी उनकी सहायता करेगा ऐसी बैठक जिला परिषद् के कार्यालय में आयोजित की जायेगी।

4. निर्वाचन हेतु उक्त बैठक के दिनांक और समय की सूचना कम से कम पूरे सात दिन पहिले जिला परिषद् व जिले की नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों को दी जायेगी। नगर पालिका में नगर निगम, नगर परिषद, नगर पालिका मण्डल सम्मिलित हैं।

5. ऐसी सचूना में निम्नांकित वर्णन होगा-

(1) वह स्थान और दिनांक तथा वह समय जिसके बीच मनोनयन पत्र दाखिल किये जायेंगे।

(2) वह स्थान और दिनांक तथा वह समय जिसके बीच मनोनयन पत्रों की जाँच की जायेगी।

(3) वह स्थान और दिनांक तथा वह समय जिसके बीच मनोनयन पत्र वापिस लिये जा सकेंगे।

(4) वह स्थान और दिनांक तथा वह समय जिसके बीच सदस्यों के मत लिये जायेंगे, यदि मतदान हो ।

6. ऐसी सूचना प्रत्येक सदस्य को जो निर्वाचन में भाग लेने योग्य हो रजिस्टर्ड डाक द्वारा अथवा ऐसे अन्य स्थान पर भेजी जायेगी। ऐसी सूचना जिला परिषद् व नगर पालिका संबंधित के नोटिस बोड़ों पर भी प्रकाशित करवाई जायेगी। जिला आयोजन समिति के चुनाव की सम्पूर्ण प्रक्रिया 31-1-97 तक पूर्ण कर ली जाये।

7. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 121 की उप-धारा (6) के अनुसार जिला आयोजन समिति का अध्यक्ष संबंधित जिले का जिला प्रमुख होगा। इस समिति के अनुसूची प्रथम में अंकित ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के निर्धारित संख्या में सदस्यों का निर्वाचन करने हेतु निर्वाचक मण्डल में ये समस्त सदस्य होंगे जो जिला परिषद् / नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्य है। अर्थात् इस समिति में ग्रामीण क्षेत्र के सदस्यों को निर्वाचित करने के लिए ग्रामीण निर्वाचक मण्डल होगा। जिसमें जिला परिषद् के निर्वाचित व्यक्ति सम्मिलित होंगे। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र के सदस्यों के निर्वाचन हेतु एक शहरी निर्वाचक मण्डल होगा जिसमें जिले की समस्त नगर पालिकाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होंगे।

8. प्रत्येक उम्मीदवार अनुसूची-2 में निर्धारित प्रपत्र में नाम निर्देशन पत्र भर कर पेश करेगा। इस पर दो निर्वाचित सदस्यों द्वारा प्रस्तावक और अनुमोदक के रूप में हस्ताक्षर किये जायेंगे और उम्मीदवार निर्वाचन के लिए अपनी सहमति प्रकट करते हुए घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करेगा। ऐसा नाम निर्देशन पत्र सूचना में भेजे गये दिनांक को निर्धारित समय के अन्दर पेश किया जायेगा। बाद में पेश किये गये नाम निर्देशन पत्रों पर विचार नहीं होगा।

9. मनोनयन पत्रों की जाँच के बाद ठीक पाये गये मनोनीत उम्मीदवारों की नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों की अलग-अलग सूचियों नोटिस बोर्ड पर प्रकाशित की जायेगी, जो अनुसूची-3 में होगी। सूचना में निर्धारित समय तक कोई उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी लिखित में सूचना देकर वापिस ले सकता है।

10. शेष बचे उम्मीदवारों की संख्या यदि अनुसूचि-1 में निर्धारित संख्या के बराबर हो, तो ऐसे सभी उम्मीदवारों को जिला आयोजन समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचित घोषित किया जायेगा।यदि उम्मीदवारों की संख्या कम हो तो शेष बचे सदस्यों के निर्वाचन हेतु अगली तारीख घोषित की जायेगी। यदि उम्मीदवारों की संख्या चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या में अधिक हो तो गुप्त मतदान द्वारा चुनाव होगा और बैठक में उपस्थित सदस्यों के मत लिये जायेंगे। अधिकतम प्राप्त मतो की संख्या के आधार पर निर्धारित संख्या में सदस्य निर्वाचित घोषित किये जायेंगे व उनकी सूची नोटिस पोर्ट पर प्रकाशित की जायेगी। उम्मीदवारों द्वारा बराबर मत प्राप्त करने की स्थिति में पीठासीन अधि लाटरी द्वारा निर्वाचित सदस्य तय करेंगे। एक भी मत प्राप्त नहीं करने वाले अभ्यार्थियों के मध्य ला नहीं होगी।

11. जिला आयोजन समिति के निम्न कृत्य होंगे-

(1) आवश्यकतानुसार समिति की बैठक बुलाना।

(2) पंचायतों, पंचायत समितियों, नगरपालिकाओं द्वारा वार्षिक योजना तैयार करने हेतु दिशा-निर्देश जारी करना एवं ग्राम सभा व ग्राम पंचायत, पंचायत समिति नगरपालिका की सामान्य बैठक के अनुमोदन पश्चात् जिला आयोजन समिति को भेजने हेतु कार्यक्रम निर्धारित करना।

(3) योजना निर्माण हेतु विभागों को आधारभूत सूचनाएं संकलित कर भेजने हेतु आवश्यक निर्देश जारी करना।

(4) जिला स्तर पर हर विभाग में योजना कार्यों हेतु समन्वय अधिकारी निश्चित करना।

(5) संस्थाओं, संगठनों, तकनिकी अधिकारियों से योजना के संबंध में परामर्श करना।

(5) राजकीय भौतिक तथा प्राकृतिक संसाधनों के उपयुक्त विकास को ध्यान में का आवंटन निर्धारित करना।

(7) पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना।

(8) समिति ग्रामीण एवं शहरी दोनों के विकास हेतु योजना बनायेगी।

(9) ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की गोजना को समन्वित कर जल और अन्य भौतिक तथा प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन निर्धारित करना।

(10) गत वर्ष की योजना राशि के 125 प्रतिशत के बराबर योजना प्रस्ताव तैयार करना।

(11) जिले के भौगोलिक एवं प्राकृतिक साधनों के दोहन और आधारभूत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकताएं निर्धारित करना।

(12) गत वर्ष की अनुपयुक्त राशि हेतु नये वर्ष की प्राथमिकताओं के अनुसार योजना प्रस्तावित करना।

(13) पंचायती राज संस्थाओं एवं नगरपालिकाओं के बीच सामान्य हित के विषयों का ध्यान रखना।

(14) उपलब्ध वित्तीय एवं अन्य स्रोतों के विस्तार का ध्यान रखना।

(15) तद्नुसार योजना तैयार कर राज्य सरकार को प्रेषित करना।

12. जिला आयोजन समितियों की शक्तियां-

(1) आयोजन समिति जिला स्तर पर योजना तैयार करने हेतु पंचायती राज संस्थाओं, नगरपालिकाओं, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों से संबंधित जिला स्तरीय अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दे सकेगी।

(2) उपर्युक्त संस्थाओं व अधिकारियों से विकास कार्यों से संबंधित सूचनायें मंगवा सकेगी व समस्त जिला स्तरीय अधिकारी समिति द्वारा चाही गई सूचनायें उपलब्ध करायेंगे।

*अधिसूचना संख्या एफ. 4 (5) ग्राविप / विधि/ 95 / 2055, जुलाई 10, 1996 ‘राजस्थान पंचायती राज अधिनियिम, 1994 (1994 का अधिनियम संख्या 13) की धारा 121 के प्रावधानों अनुसरण में राज्य के प्रत्येक जिले में जिला आयोजन समिति का गठन करती है, जिसमें कुल 25 सदस्य होंगे। समिति के 25 सदस्यों में से 20 सदस्य अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जिला परिषद् एवं संबंधित जिले की नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों में से निर्वाचित किये जायेंगे। प्रत्येक जिले में जिस परिषद् तथा नगरपालिकाओं के सदस्यों में से उक्त चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या का निर्धारण ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या के अनुपात में राज्य सरकार द्वारा अलग से अधिसूचित किया जायेगा। शेष 5 सदस्य राज्य एवं सरकार द्वारा नामित होंगे।

*[अधिसूचना संख्या एफ. 4 (5) ग्राविप / विधि/95/2055, 10 जुलाई, 1995 तथा राज. राजस्थान राजपत्र भाग-1 (ख) 18-7-96 पर प्रकाशित]

*| राज्य सरकार द्वारा नामित किये जाने वाले पांच सदस्यों में से सम्बन्धित जिले का कलेक्टर, अति. कलेक्टर (विकास) एवं पदेन परियोजना निदेशक, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद् एवं अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद् को स्थाई रूप से नामित करती है।]

*[अधिसूचना सं. एफ. 4(5) पं. राज / विधि/95/3451 दिनांक 16-9-1999: राज, राजपत्र भाग-4 दिनांक 23-9-1999 पर प्रकाशित]

122. वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट :- (1) प्रत्येक वर्ष में अप्रैल के प्रथम दिन के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र और ऐसी तारीख के पश्चात्, जो सरकार द्वारा नियत की जाये, सरपंच, विकास अधिकारी और मुख्य कार्यपालक अधिकारी पंचायत, पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् के समक्ष, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान पंचायत, पंचायत समिति या, यथास्थिति, जिला परिषद् के प्रशासन की रिपोर्ट, ऐसे प्ररूप में और ऐसे ब्यौरों के साथ जो सरकार निर्दिष्ट करे, रखेगा और सम्बन्धित पंचायती राज संस्था के संकल्प के साथ रिपोर्ट राज्य सरकार को आगे पारेषण किये जाने के लिए, विहित प्राधिकारी को अग्रेषित करेगा।

(2) उप-धारा (1) के अधीन सरकार को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट, सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की कार्य-प्रणाली का पुनर्विलोकन करते हुए राज्य सरकार द्वारा एक ज्ञापन के साथ, राज्य विधान मण्डल के सदन के समक्ष रखी जायेगी।

123. कठिनाईयों का निराकरण :- (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी, प्रवृत्त या कार्यान्वित करने में कोई कठिनाई उत्पन्न हो तो राज्य सरकार, राज पत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे निदेश दे सकेगी या ऐसी बात कर सकेगी जो उसे ऐसी कठिनाइयों का निराकरण करने के लिए आवश्यक प्रतीत हो

परन्तु ऐसे कोई भी आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किये जायेंगे।

(2) उप-धारा (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश राजस्थान विधान सभा के सदन के समक्ष रखा जायेगा।

*124. निरसन और व्यावृत्तियां :- (1) इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख को, जिसे इस धारा में आगे प्रारम्भ की तारीख कहा गया है, राजस्थान पंचायत अधिनियम, 1953 (1953 का राजस्थान अधिनियम 21 ) और राजस्थान पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1959 (1959 का राजस्थान अधिनियम 37.) निरसित हो जायेंगे और निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात्:-

(क) ऐसी, जंगम और स्थावर, सारी सम्पत्ति और उसमें के किसी भी प्रकार के सभी हित जो प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था में निहित थे, प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व प्रवृत्त या विद्यमान सभी सीमाओं, शर्तों और किसी व्यक्ति, निकाय या प्राधिकरण के अधिकारों या हितों के अध्यधीन रहते हुए उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था को अन्तरित हुए समझे जायेंगे और उसमे निहित होंगे

(ख) किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था के सभी अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ (जिनमें के सम्मिलित हैं, जो किसी करार या संविदा के अधीन उद्भूत हो) उत्तस्वतीं पंचायती राज संस्था के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ समझी जायेंगी; (ग) विद्यमान पंचायती राज संस्था के सभी कृत्य, चाहे वे यथापूर्वोक निरसित अधिनियमों के अधीन के हो या तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि के अधीन के, इस अधिनियम के अधीन की उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था को अन्तरित किए हुए समझे जाएंगे;

(घ) किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था को देव समस्त राशियों, चाहे वे किसी कर के मद्दे हों या अन्यथा, उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था ऐसा कोई अध्युपाय करने या ऐसी कोई भी कार्यवाहियाँ संस्थित करने के लिए सक्षम होगी जिन्हें प्रारम्भ की तारीख के पूर्व करने या संस्थित करने के लिए कोई विद्यमान पंचायती राज संस्था या उसका कोई भी प्राधिकारी स्वतंत्र होता;

(ङ) विद्यमान पंचायती राज संस्थाओं की निधियों में अव्ययित रहा अतिशेष और ऐसी संस्थाओं को देय समस्त राशियों तथा किसी भी अन्य निकाय या निकायों की ऐसी राशियाँ, जो राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, तत्स्थानी उत्तरवती पंचायती राज संस्थाओं की निधियों की भाग रूप होंगी और उनमें संदत्त की जायेगी,

(च) किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था के साथ की गई समस्त संविदाएँ और उसके द्वारा या की ओर से निष्पादित समस्त लिखते उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था के साथ की गई या उसके द्वारा या की ओर से निष्पादित समझी जायेंगी, और उनका प्रभाव तदनुसार होगा;

(छ) निरसित अधिनियमों के अधीन प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था या किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था के किसी भी प्राधिकारी के समक्ष लंबित समस्त कार्यवाहियों और विषय उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था या ऐसे प्राधिकारी के समक्ष संस्थित किये गये.. और लंबित हुए समझे जायेंगे जिसे उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था निर्दिष्ट करे (ज) प्रारम्भ की तारीख को लंबित ऐसे सभी यादों और विधिक कार्यवाहियों में, जिनमें कोई विद्यमान पंचायती राज संस्था एक पक्षकार है, उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था उसके स्थान पर प्रतिस्थापित दुई समझी जायेगी

(झ) निरसित अधिनियमों के अधीन किसी भी विद्यमान पंचायती राज संस्था या उसके स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में की गई, जारी, अधिरोपित या मंजूर की गई और प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व प्रवृत कोई भी नियुक्ति, अधिसूचना, नोटिस, कर, फीस, आदेश, स्कीम, अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा, नियम, उप-विधि, विनियम या प्ररूप वहाँ तक जहाँ तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं है, तब तक ऐसे प्रवृत्त बना रहेगा मानों उसे इस अधिनियम के अधीन उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था के या उसके तत्स्थानी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में किया गया, जारी, अधिरोपित या मंजूर किया गया हो, जब तक कि इस अधिनियम के अधीन की गयी, जारी अधिरोपित या मंजूर की गई किसी भी नियुक्ति, अधिसूचना, नोटिस, कर, फीस, आदेश, स्कीम, अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा, नियम, उपविधि, विनियम या प्ररूप द्वारा अतिष्ठित या उपान्तरित न कर दिया जाये

(ञ) निरसित अधिनियमों के अधीन किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था के द्वारा या सम्बन्ध में किये गये या अधिप्रमाणित और प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व प्रवृत्त समस्त बजट प्राक्कलन, निर्धारण, निर्धारण सूचियाँ, मूल्यांकन या माप, वहाँ तक जहाँ तक वे इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं हैं, उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था द्वारा किये गये या अधिप्रमाणित किये गये समझे जायेंगे;

(ट) प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व किसी विद्यमान पंचायती राज संस्था के नियोजन में के समस्त अधिकारी और कर्मचारी इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था की सेवा में स्थानान्तरित हुए समझे जायेंगे; और

(ठ) किसी भी विधि में या किसी भी लिखत में, निरसित अधिनियम के किसी भी उपबंध या उनके अधीन गठित निर्वाचित या नियुक्त किसी भी प्राधिकारी के प्रति कोई भी निर्देश तब तक जब तक कोई भिन्न आशय प्रतीत न हो, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंध के या, यथास्थिति, इस अधिनियम के अधीन गठित निर्वाचित या नियुक्त तत्स्थानी प्राधिकारी के प्रति किसी निर्देश के रूप में अर्थान्वित किया जायेगा।

स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजनों के लिए-

(क) “विद्यमान पंचायती राज संस्था” से प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व विद्यमान कोई पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद् अभिप्रेत है और जहाँ ऐसी कोई भी पंचायती राज संस्था अतिष्ठित या विघटित कर दी गयी हो या उसकी अवधि समाप्त हो गई हो यहाँ ऐसी पंचायती राज संस्था की शक्तियों का प्रयोग या कृत्यों का पालन करने के लिए नियुक्त व्यक्ति उसके अन्तर्गत आता है या आते हैं; और

(ख) “उत्तरवर्ती पंचायती राज संस्था” से ऐसे स्थानीय क्षेत्र के लिए इस अधिनियम के अधीन गठित कोई पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद् अभिप्रेत है जो विद्यमान पंचायत, पंचायत समिति या जिला परिषद् के सम्बन्धित स्थानीय क्षेत्र का तत्स्थानी है।

** (2) राजस्थान पंचायत राज अध्यादेश, 1994(1994 का राज. अध्यादेश सं. 23) के प्रारम्भ की तारीख को राजस्थान ग्रामदान अधिनियम, 1971 1971 का अधिनियम सं. 12) की धारा 435 जायेगी और ऐसे हट जाने के परिणामस्वरूप उप धारा (1) के खण्ड (क) से (ठ) तक में प्रगणित परिणाम इस प्रकार होंगे मानों उपयुक्त हट गयी धारा में निर्दिष्ट किसी ग्रामदान गांव की ग्राम सभा कोई विद्यामन पंचायती राज संस्था हो।”]

*[अधि. सं. 23 सन् 1994 द्वारा संख्याक्ति राज राजपत्र विशेषांक भाग 4 (क) दि. 6-10-04 पर प्रकाशित]

**[राज राजपत्र भाग 4 (क) के पृष्ठ 322 पर अधिनियम संख्या 23 दिनांक 6-10-04 द्वारा निविष्ट तथा 26-7-94 से प्रभावी]

Rajasthan Panchayati Raj Act 1994 in Hindi (Chapter 5 Miscellaneous) | राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 (अध्याय 5 विविध)

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